देहरादून: 9 नवंबर को उत्तराखंड ने अपना 22 वा स्थापना दिवस मनाया. 22 साल के इस उत्तराखंड की राजनीति आज भी गढ़वाल और कुमाऊं के इर्द-गिर्द घूमती हुई दिखाई देती है. गढ़वाल और कुमाऊं के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हमेशा चर्चा में रही है. शायद यही वजह है कि दोनों ही क्षेत्रों के नेताओं राजनीतिक रस्साकशी एक आम बात है. लेकिन कई बार यही आपसे कशमकश उत्तराखंड की राजनीति पर भी भारी पड़ी है. मौजूदा हालात राज्य में एक बार फिर इसी ओर इशारा कर रहे हैं.
उत्तराखंड सत्तारूढ़ भाजपा मैं इन दिनों चल रही बयानबाजी से राज्य मैं पार्टी के अंदर दो गुड दिखाई पड़ रहे हैं. अलग-अलग रीजन यानी गढ़वाल और कुमाऊं से आने वाले नेताओं की हाल की बयानबाजी और पुराने चर्चाओं का मिलान करें तो यह समीकरण मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी भारी पड़ता हुआ रहा है.
कमीशन खोरी और सड़कों की खस्ता हाल बयान से हमला
पिछले दिनों भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के कमीशन खोरी वाले बयान और उसके बाद मौजूदा कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत के सड़कों की खस्ता हालत वाले बयान को जोड़कर देखें तो कहीं ना कहीं मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार के खिलाफ ही जाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी वापसी की तैयारी
कमीशन खोरी और सड़कों की खस्ता हाल बयान बाजी के बाद मौजूदा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से दायर एसएलपी को वापस लेने की जो तैयारी की है. उसे इन बयानों की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की नैनीताल हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच कराने के आदेश दिए थे.
जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने पहले एसएलपी दायर की. लेकिन अब दायर एसएलपी को राज्य सरकार वापस लेने जा रही है. जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. हालांकि इस मामले में पहले किसी भी तरह का कोई बयान न पार्टी फोरम से और ना ही सरकार की ओर से आया है. लेकिन पार्टी अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि पूरी पार्टी त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ खड़ी है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी जाने का यह था कारण!
अब जब मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सरकार के खिलाफ उड़ रही हवाओं पर गौर करें तो उन चर्चाओं का भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी चली गई थी त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम थी कि त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा गैरसैण कमिश्नरी मैं अल्मोड़ा को शामिल करना उनके लिए घातक सिद्ध हुआ हालांकि उस समय की इन चर्चाओं में कितनी सच्चाई है इस बात कि कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन मौजूदा समय में दो बड़े नेताओं के आए बयान और उसके बाद अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश को लेकर एसएलपी को वापस लिए जाने की अर्जी देना कहीं ना कहीं उत्तराखंड की सत्ता की सियासत को दो रीजन में बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. जिसका खामियाजा हमेशा उत्तराखंड और राज्य हितों को ही भुगतना पड़ा है.