Nobel Prize in Medicine: चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली कारिको 13 वीं महिला हैं कारिको। जिन्होंने अपने नोबल पुरस्कार जीतने की रोचक बात बताई। कैटलिन कारिको ने नोबल पुरस्कार जीतने के बाद स्वीडिश रेडियो से बात करते हुए बताया कि 10 साल पहले जब वे प्रोफेसर नहीं थी। तब उनकी मां नोबेल पुरस्कार की घोषणा को सुनती थीं और कहती थीं, शायद तुम्हारा नाम आएगा।
हंगरी मूल की अमेरिका वैज्ञानिक 68 साल की कैटलिन कारिको चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली 13वीं महिला बनीं हैं। वो जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं। जिसने कोविड-19 टीके बनाने के लिए फाइजर के साथ मिलकर काम किया। 64 साल की ड्रू वीसमैन पेन इंस्टीट्यूट फॉर आरएनए इनोवेशन के प्रोफेसर और निदेशक भी है।
कारिको ने पुरस्कार जीतने के बाद स्वीडिश रेडियो से एक बातचीत में कहा कि उनकी मां नोबेल पुरस्कार के लिए कहती थीं कि एक दिन तुम्हारा नाम आएगा। तब वे मां की बातें सुनकर सिर्फ मुस्करा देती थीं। लेकिन, आज मां ने कहीं ऊपर यह जरूर सुना होगा।
फोटोकॉपी कराते हुए मिले दोनों
कारिको एमआरएनए के जरिए पुरानी बीमारियों के लिए टीके और दवाएं बनाने के लिए पेन्सिल्वेनिया विवि में शोध कर रही थीं। लेकिन,1990 में फंड की कमी हो गई। 1997 में ड्रू वीसमैन पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी आए और एक दिन फोटोकॉपी कराते हुए कारिको से मिले। वीसमैन ने कारिको को फंडिंग उपलब्ध कराई और साझेदारी में तकनीक पर काम शुरू किया।
2005 में शोध को नहीं मिली अहमियत
2005 में ड्रू और कारिको ने शोधपत्र में दावा किया गया कि मॉडिफाइड एमआरएनए के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है। उस समय किसी ने इस शोध को कोई अहमियत नहीं दी थी। लेकिन 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड एमआरएनए आधारित वैक्सीन बनाने को मॉडर्ना कंपनी स्थापित की।
1990 के दशक में पहली बार चूहों पर शोध…
1990 के दशक में पहली बार दवाइयों और वैक्सीन के लिए चूहों पर शोध शुरू हुआ। इसके लिए एमआरएनए फ्लू वैक्सीन का परीक्षण चूहों पर किया गया। इसके बाद 2013 में मनुष्यों पर रेबीज के लिए पहली एमआरएनए वैक्सीन का परीक्षण भी चूहों पर ही किया गया। आखिर में 2020 में कोविड महामारी के दौरान इस टैक्नोलाजी पर आधारित वैक्सीन का इंसानों पर पहली बार उपयोग किया गया।