तौक़ीर सिद्दीक़ी
शब्दबाण, वो हथियार है जो ऐसा घाव पहुंचाता है जो शरीर पर नहीं दिल पर वार करता है, विवेक पर वार करता है, चेतना पर वार करता है. ये शब्दबाण कब किसी बड़ी तबाही का कारण बन जाय कहा नहीं जा सकता। इंसान के मुंह से निकला हुआ कोई शब्द कभी किसी को इतना बुरा लग सकता है कि वो कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता है. “रज़ाकार” एक ऐसा ही शब्दबाण था जिसने हसीना की हुकूमत को हिला दिया, ऐसा हिलाया कि पूरा बांग्लादेश पिछले 15 दिनों से हिल रहा है.
बांग्लादेश में, “रजाकार” एक बेहद आपत्तिजनक शब्द है, उर्दू के इस शब्द का अर्थ हिंदी में स्वयंसेवक होता है जो कहीं से भी गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन बांग्लादेश में ये शब्द यह उन लोगों के लिए बोला जाता है जिन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना के अभियान का समर्थन किया था और जिन पर जघन्य अपराधों का आरोप लगाया गया था। 76 वर्षीय प्रधानमंत्री शेख हसीना, जिन्होंने व्यापक अशांति के बीच सोमवार को इस्तीफ़ा देकर सेना के हेलीकॉप्टर से देश छोड़कर भाग गईं, अपने 15 से अधिक वर्षों के सत्ता में रहने के दौरान किसी भी व्यक्ति को अपने लिए खतरा मानने या उससे असंतुष्ट होने पर इस शब्द का इस्तेमाल करने के लिए जानी जाती हैं। देश के संस्थापक पिता और पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हसीना लोकतंत्र समर्थक विद्रोह की नेता थीं, जिसने 1990 में सैन्य शासक और तत्कालीन राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका था।
हसीना पहली बार 1996 में अपनी अवामी लीग पार्टी के चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री बनी थीं। वह 2009 में फिर से सत्ता में आईं, उनके कार्यकाल में बांग्लादेश को आर्थिक विकास हासिल करने में मदद मिली मगर इस दौरान दुनिया के आठवीं सबसे बड़ी आबादी वाले देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, असहमति और विपक्ष पर नकेल कसते हुए निरंकुशता भी बढ़ती गई। एक लोकतान्त्रिक देश में तानाशाही की गूँज सुनाई देने लगी.
बांग्लादेश में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के रूप में शेख हसीना का कार्यकाल सुरक्षा बलों के इस्तेमाल के लिए जाना जाने लगा, जिसमें कुख्यात रैपिड एक्शन बटालियन अर्धसैनिक बल भी शामिल था जिसका इस्तेमाल विपक्षी सदस्यों और असंतुष्टों को अगवा करने और यहां तक कि उनकी हत्या करने और कथित तौर पर चुनावों में धांधली करने के लिए किया गया था। यहाँ तक इस दौर में न्यायपालिका भी समझौतावादी हो गई जिसके कारण एक मुख्य न्यायाधीश को देश छोड़कर भागना पड़ा क्योंकि उसने हसीना के एक फैसले का विरोध किया था। जैसा कि आमतौर पर होता है कि निरंकुश शासक मेनस्ट्रीम मीडिया को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है, हसीना ने अपने विरोधियों के खिलाफ़ कहानी गढ़ने और उसे बनाए रखने के लिए मीडिया को कंट्रोल किया। भारत की तरह बांग्लादेश का भी अधिकांश मुख्यधारा का मीडिया बिजनेसमैनों के पास है, जिनका सम्बन्ध सत्ताधारी अवामी लीग से बताया जाता है। मीडिया पर कंट्रोल ने हसीना को अपने समर्थकों को देश की स्वतंत्रता और उसकी उपलब्धियों की विरासत के वैध उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने की इजाज़त दी, जबकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के असंतुष्टों और विपक्षी सदस्यों को देशद्रोही और “चरमपंथी” गुटों के अवशेष के रूप में पेश किया। पूर्व प्रधानमंत्री और प्रमुख विपक्षी नेता बेगम खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोपों में 2018 में जेल में डाल दिया गया, जबकि जमात-ए-इस्लामी के एक प्रमुख व्यक्ति को 2016 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
कहते हैं निरकुंशता कभी कभी इंसान से ऐसी गलती करा देती है जिसकी भरपाई नामुमकिन होती है, हसीना से भी वो गलती हो गयी, नौकरी कोटा सुधारों के लिए विरोध करने वाले छात्रों को “रजाकार” कहकर वह ऐसी सीमा लांघ गई कि वापसी का रास्ता ही बंद हो गया. 14 जुलाई का दिन हसीना की बर्बादी का पैगाम लेकर आया. देश में कोटा के खिलाफ छात्रों का आंदोलन चल रहा था, एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान हसीना से एक रिपोर्टर ने नौकरी कोटा के खिलाफ छात्रों के एक हफ्ते से जारी विरोध पर सवाल पूछ लिया जिसके जवाब में हसीना ने कहा कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को नौकरी में कोटा का लाभ नहीं मिलेगा तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को मिलेगा?” बस यही वो पल था और यही वो शब्द था जिसने पलक झपकते ही पूरे बांग्लादेश को हिंसा की आग में झोंक दिया। आंदोलित छात्रों को लगा कि हसीना ने उनको गाली दी है, उन्हें देशद्रोही कहा है. कुछ ही घंटों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, ढाका विश्वविद्यालय के परिसर में मार्च करते हुए, एक भड़काऊ नारा निकला “आप कौन हैं? मैं रजाकार।”
16 जुलाई को हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई। अगले चार दिनों में, 200 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश छात्र और आम नागरिक थे, क्योंकि पुलिस और BCL के सशस्त्र कार्यकर्ताओं ने गोलियां चलाईं। हिंसा की निंदा करने के बजाय, हसीना ने सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान पर अपने बयान जारी किये जिसने छात्रों के गुस्से को और भड़का दिया, हसीना से माफी और गृह मंत्री असदुज्जमां खान को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग उठी मगर निरंकुश हसीना अपने फैसले पर अटल रहीं और फिर एक नया नारा उभरा, हसीना का इस्तीफा। जो नहीं आया और फिर बांग्लादेश पूरी तरह जल उठा, हसीना को भागना पड़ा और उनकी पार्टी अवामी लीग के नेताओं को अब भोगना पड़ रहा. ढाका में आवामी लीग का बहुमंज़िला पार्टी दफ्तर नज़रे आतिश कर दिया गया है, कहा जा रहा है कि 24 लोग ज़िंदा जलकर मरकर गए. हसीना अभी भारत की शरण में हैं, दुनिया के दरवाज़े भी उनके लिए बंद हो रहे हैं. अमेरिका ने वीज़ा रद्द कर दिया है, ब्रिटेन ने भी हाथ खींच लिए हैं। सिर्फ एक शब्द “रज़ाकार” ने हसीना का ये हाल कर दिया। ये उन सभी लोकतान्त्रिक देशों के सत्ता में बैठे नेताओं के लिए एक बहुत बड़ा सबक है. असहमति जताने वालों, विरोध करने वालों को देशद्रोही बताना किसी को कभी भी भारी पड़ सकता है क्योंकि देश की जनता जब बदलती है तो बहुत कुछ बदल जाता है. एक ‘शब्द’ भी कभी कभी सत्ता गंवाने की वजह बन सकता है.