Land subsidence news: पिछले दिनों उत्तराखंड के जोशीमठ में जिस तरह ज़मीन धंसने का मामला आया। उसने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में नई चिंताओं को जन्म दिया है। हिमाचल प्रदेश के कई इलाक़े पारिस्थितकीय तौर पर संवदेनशील माने जाते हैं। हाल में हिमाचल प्रदेश में बनी कांग्रेस सरकार ने एक उच्चस्तरीय बैठक करके जोशीमठ की स्थिति का जायज़ा लिया। इसके बाद हिमाचल प्रदेश में ऐसी आशंकाओं वाली जगहों को लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का फ़ैसला किया।
मैकलॉडगंज हिमाचल के धर्मशाला से ऊंचाई पर
राज्य सरकार ने डूब आशंका, भूकंप और ज़मीन धंसने वाले क्षेत्रों की पहचान करके वहां आपदा प्रबंधन क्षमता और चेतावनी की व्यवस्था को बेहतर करने का निर्देश दिया है। राज्य के जाने-माने भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद् डॉ. एके महाजन ने कहा कि समय आ चुका है कि स्थानीय प्रशासन मैकलॉडगंज जैसी जगह को जोशीमठ बनने से रोकने के लिए जल्दी क़दम उठाए।
मैकलॉडगंज हिमाचल के धर्मशाला से ऊंचाई पर स्थित है। जो कि तिब्बती धार्मिक गुरु दलाई लामा के शरण लिए जाने से मशहूर है। विशेषज्ञों के मुताबिक धर्मशाला से मैकलॉडगंज जाने वाली सात किलोमीटर लंबी सड़क धंस रही है। उस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। डॉ. महाजन सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हिमाचल प्रदेश पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हैं। इससे पहले देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी में वो काम कर चुके हैं। उनके अनुसार मैकलॉडगंज, धंस रहा है। उन्होंने धर्मशाला के इलाक़ों को भूस्खलन के लिहाज़ से आपदाग्रस्त इलाक़ा माना।
क्यों बढ़ रहा है ख़तरा?
विशेषज्ञों के अनुसार धर्मशाला से मैकलॉडगंज जाने वाली सड़क पर ट्रैफ़िक का बोझ अधिक है। बीते कई सालों से यह सड़क क्षमता से अधिक परिवहन को सह रही है। इलाक़े में भूस्खलन आम है। इन चिंताओं की वजह से कांगड़ा उपायुक्त ने धर्मशाला नगर निगम के आयुक्त और नगर योजना विभाग को धंसने वाली सड़कों पर रिपोर्ट जमा करने को कहा है।
इसके अलावा विशेषज्ञों को मैकलॉडगंज पहाड़ी पर रिपोर्ट तैयार करके इलाक़े में ख़तरे के स्तर को आंकने के लिए कहा है। कांगड़ा उपायुक्त डॉ. निपुल जिंदल ने बताया कि यह काफ़ी संवेदनशील मामला है। इसलिए इसको संज्ञान लिया है। ज़मीन से विस्तृत रिपोर्ट मिलने के बाद हम लोग क्या कर सकते हैं इस पर आगे विचार किया जाएगा।
यहां-यहां है ज़्यादा ख़तरा?
हिमाचल में प्राकृतिक आपदाएं आती रही हैं। आपदा प्रबंधन राज्य सरकार के सामने चुनौती रहीं हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 17,120 ऐसी जगहें हैं। जहां भूस्खलन की आशंका बनी रहती है। इसमें सिरमौर ज़िले में सबसे अधिक 2,559 जगहें चिन्हित हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर चंबा है। जहां 2,389 ऐसी संवेदनशील जगहें हैं। इनमें 675 ऐसी जगहें हैं। जहां पास में निर्माण के बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं या फिर लोगों का निवास है। चंबा में ऐसी 113 जगहें हैं। जबकि मंडी में 110 जगहें ऐसे जगहे ख़तरे से भरी हैं। इनमें 27 जगहें ऐसी हैं, जहां भूस्खलन या ज़मीन धंसने की आशंका सबसे अधिक है। ऐसी 27 जगहों में 10 जगहें शिमला और दो कांगड़ा ज़िले में हैं। जिला कांगड़ा में शामिल दो जगहों में मैकलॉडगंज की पहाड़ी का इलाक़ा शामिल है।
2022 में 117 जगहों पर ज़मीन धंसने का मामला सामने आया
हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्राधिकरण के मुताबिक़ 2022 में 117 जगहों पर ज़मीन धंसने का मामला सामने आया था। जिसमें सबसे अधिक 21 मामले कुल्लू में देखने को मिले थे। जबकि 2021 में 100 जगहों पर ज़मीन धंसने का मामला सामने आया था। बीते तीन सालों में ज़मीन धंसने और भूस्खलन से 180 लोगों की मौत हुई है। जबकि अचानक आयी बाढ़ के चलते 26 लोगों की मौत हुई। हालांकि, राज्य में बीते तीन सालों में आपदाओं में 5012 लोगों की मौत दर्ज की गई। जिसमें 2858 मौतें सड़क दुर्घटना के चलते हुई। अध्ययन में कहा गया है कि भूकंप सबसे बड़ी आपदा है। आंकड़े बताते हैं कि रिक्टर स्केल पर चार से अधिक की तीव्रता वाले भूकंप 80 से अधिक बार आ चुके हैं। चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू और मंडी में भूकंप का ख़तरा सबसे अधिक है।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
रिपोर्ट में कहा गया था कि मॉनसून के मौसम में हिमाचल प्रदेश में एक भूस्खलन का बड़ा मामला सामने आता है। यह मकान, सड़क, पुल और टेलीकॉम व्यवस्था को प्रभावित करता है। इससे ना केवल राज्य अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। बल्कि जनजीवन भी थम जाता है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में भूस्खलन की आशंका बड़ी वजहों में लगातार बारिश का होना, भूकंप गतिविधियां, नदियों और झरनों के कटाव, वनों की कटाई और ऊंचे पहाड़ों में बढ़ता अतिक्रमण शामिल है। एके. महाजन के अनुसार राज्य के नीति निर्माताओं को भूस्खलन और ज़मीन धंसने के मामले को समग्रता से देखना चाहिए और ये पता लगाना चाहिए कि इसकी वजह क्या है। क्या बहुत ज़्यादा निर्माण इसकी वजह है? ये देखना चाहिए।