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योगी के खिलाफ क्या पक रही है कोई खिचड़ी?

आर्टिकल/इंटरव्यूयोगी के खिलाफ क्या पक रही है कोई खिचड़ी?

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अमित बिश्नोई
सरकार संगठन से बड़ी कभी नहीं हो सकती। बात बहुत सीधी सी है. ये बात हर राजनेता कहता है, सबको मालूम है, लेकिन क्या ऐसा होता है और अगर ऐसा होता है तो फिर ये बात किसी को कहने की ज़रुरत क्यों पड़ती है? क्यों कोई नेता किसी को याद दिलाता है कि संगठन आप से बड़ा है, आप संगठन से कभी बड़े नहीं हो सकते। दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी की बैठक में नेताओं और कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए ये बात कही थी, ज़ोरदार तालियां भी बजी थीं और जयश्रीराम के नारे भी लगे थे. सवाल ये उठ रहा है कि ऐसी क्या बात हो गयी जो केशव प्रसाद मौर्य को ये बात कहनी पड़ी, वो किसे ये बात सुना रहे थे. लोगों का साफ़ कहना है कि वो ये बात मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को सुना रहे थे. पार्टी के मंच पर केशव मौर्य का खुले आम ये कहना मुख्यमंत्री योगी के लिए एक चैलेन्ज माना जा रहा है. चैलेन्ज इसलिए भी कि केशव प्रसाद मौर्य आज रात दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर रहे हैं, उन्हें बुलाया गया है, साथ में प्रदेश अध्यक्ष भूपिंदर चौधरी भी तलब किये गए हैं. तो क्या इन मुलाकातों और केशव प्रसाद मौर्या के तेवरों को भगवा वस्त्रधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक खतरा माना जाय.

दरअसल हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सरकार तो ज़रूर बना ली लेकिन उत्तर प्रदेश में उसे जो झटका लगा है उससे पूरी भाजपा हिल गयी है और साथ में योगी आदित्यनाथ भी हिल गए हैं यही वजह है कि इस हार को लेकर सरकार में भी और पार्टी में भी मंथन का दौर चल रहा है। कोढ में खाज वाली बात ये हुई कि पिछले दिनों विभिन्न राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को सिर्फ 2 सीटें ही मिल पाई। इन नतीजों से भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई। वहीँ लोकसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को यूपी के मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के कयास लगाए जाने लगे थे। सियासी गलियारों में चर्चा तो यह भी है कि भाजपा हाईकमान ने इसको लेकर योजना भी बना ली है। तो क्या भाजपा के विधायकों, नेताओं और यहाँ तक कि सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में पदासीन केशव प्रसाद के बयान और दिल्ली में उनकी तलबी इसी की एक कड़ी है. क्या वाकई योगी आदित्यनाथ से भाजपा छुटकारा चाहती है, भाजपा न सही तो अमित शाह ज़रूर छुटकारा चाहते हैं. क्या योगी आदित्यनाथ की पकड़ सरकार में कमज़ोर हो गयी है.

पिछले दो तीन दिनों की भाजपा के अंदर की सियासी सरगर्मियों को अगर देखा जाय तो ऐसा साफ़ लग रहा है कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कोई जाल तो बुना जा रहा है. अचानक संगठन सरकार से बड़ा है की बातें यूँ ही नहीं होने लगी हैं. वैसे भी आज जिस तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दो फैसलों पर यू टर्न मारा है उससे भी लग रहा है कि मुख्यमंत्री भी अपनी स्थिति को लेकर थोड़ा डांवाडोल हैं, उनका भी विशवास थोड़ा डगमगाया है. योगी आदित्यनाथ ने आज शिक्षकों की डिजिटल अटेंडेंस के फैसले को फिलहाल के लिए रोक दिया है वहीँ लखनऊ में कुकरैल नाले के किनारे बसी कालोनियों के चिन्हित मकानों पर बुलडोज़र कार्रवाई को फैसले को वापस ले लिया है. मुख्यमंत्री योगी जिन्हे कहा जाता है कि वो अपने फैसलों से पलटते नहीं हैं लेकिन आज जिस तरह वो अपने फैसलों से पलटे हैं उससे भी साफ़ लग रहा है कि कहीं न कहीं वो सियासी नफा नुक्सान का आंकलन कर रहे हैं क्योंकि इस समय सियासी हालात उनके पक्ष में बिलकुल नहीं हैं. ये वही सीएम योगी हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले इसी कुकरैल नाले के किनारे बसी दशकों पुरानी बस्ती अकबर नगर को ज़मींदोज़ कर दिया लेकिन चुनाव बाद वही सीएम योगी इसी प्रोजेक्ट में आने वाली अन्य कालोनियों पर बैकफुट पर चले गए.

योगी आदित्यनाथ के इन दो यू टर्न वाले फैसलों से स्पष्ट होता है कि लोकसभा चुनाव से पहले और बाद वाले मुख्यमंत्री योगी में कितना अंतर है. यूपी में आधी सीटें गंवाने का सीधा असर योगी आदित्यनाथ पर दिख रहा है. बूयरोक्रेसी के सहारे सरकार चलाने के लिए जाने जाने वाले योगी आदित्यनाथ अब पार्टी के विधायकों के लिए उपलब्ध हैं, सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं ज़िले के प्रशासनिक और पुलिस के बड़े छोटे अधिकारी भी भाजपा विधायकों , नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं, उन्हें मुख्यमंत्री दफ्तर से निर्देश हुए हैं कि सबकी बातों को सुना जाय. लोकसभा चुनाव से पहले नज़ारा उल्टा था, मुख्यमंत्री का विधायकों से मिलना तो बहुत दुर्लभ घटना मानी जाती थी, अधिकारी भी विधायकों को समय नहीं देते थे लेकिन समय ने पलटा खाया, एक झटके ने मिज़ाज और कार्यशैली में बदलाव कर दिया। ये बात सही है कि पिछले सात सालों से योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह सरकार चलाई है उससे उन्होंने विधायकों का विशवास खोया है, संगठन का विशवास तो उनमें पहले से ही नहीं था क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति संगठन से नहीं कहीं और से हुई थी जिसके बारे में अब पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा कहते हैं कि भाजपा को अब उसकी ज़रुरत नहीं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ के लिए ये एक मुश्किल घड़ी है. हालाँकि विधायकों और संगठन का सपोर्ट न होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक कद बहुत बड़ा है इसलिए उन्हें गद्दी से हटाने के लिए मोदी और शाह को सौ बार सोचना होगा। फिलहाल यूपी की राजनीतिक वीथिकाओं में जो बातें चल रही हैं वो कितनी सच्ची हैं इनके बारे में यकीन से कोई कुछ नहीं कह सकता।

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