तौकीर सिद्दीकी
जब से कांग्रेस समेत 28 विपक्षी पार्टियां एक मंच पर आयी हैं और जब से विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया अलायन्स पड़ा है, केंद्र की भाजपा सरकार की नींद उड़ गयी है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं , 6 महीनों में आम चुनाव भी होने वाले हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस के नेतृत्व में बना विपक्ष का ये गठबंधन आने वाले चुनावों में कारगर साबित होगा. इसको जानने के लिए अभी देश के कई राज्यों में हुई सात विधानसभा सीटों पर आये चुनावी नतीजों को पैमाना बनाया जा सकता है. एक तरह से आने वाले चुनावों से पहले INDIA बनाम NDA के बीच ये पहला टेस्ट था और आज इन सातों सीटों के लिए घोषित चुनावी नतीजों को देखकर कहा जा सकता है कि फैसला इंडिया के हक़ में 4- 3 से आया यानि जीत इंडिया की हुई. इन सातों सीटों में सबसे महत्वपूर्ण सीट यूपी की घोसी असेंबली सीट थी जिसपर पूरे देश की नज़रें थीं. यहाँ से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह जो इंडिया के आधिकारिक उम्मीदवार थे का मुकाबला सपा छोड़ भाजपा में गए दारासिंह चौहान से था जिन्हें 40 हज़ार से भी ज़्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा इंडिया अलायन्स की अगर बात करें तो उसे केरल, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में भी कामयाबी हासिल हुई वहीँ भाजपा कहें या NDA उसे त्रिपुरा की दोनों सीटें और उत्तराखंड की एक सीट पर कामयाबी मिली। इस तरह देखा जाय तो इस पहले लिटमस टेस्ट में INDIA, NDA भारी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. तो चलिए देश की इन सात असेंबली सीटों पर आये चुनावी नतीजों को मौजूदा राजनीतिक परिपेक्ष्य में देखने की कोशिश करते हैं.
राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा से देश के राजनीतिक माहौल में बदलाव की आहट हुई, जैसे जैसे ये यात्रा आगे बढ़ती गयी इस बदलाव पर छाया कुहासा थोड़ा साफ़ होने लगा, देश में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता भी बढ़ने लगी, न सिर्फ आम जनमानस में बल्कि उन राजनीतिक दलों में भी जो अब तक राहुल गाँधी से बचने की कोशिश करते रहे थे. इसी के बाद विपक्षी पार्टियों का एक मंच पर लाने का ताना बाना बना बुना जाने लगा जिसने इंडिया अलायन्स का रूप लिया और यहीं केंद्र में बैठी भाजपा सरकार, प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह में बेचैनी शुरू हुई और इसके बाद तमाम तरह के मुद्दे उछाले जाने लगे जिसमें INDIA बनाम भारत का मुद्दा भी शामिल है. जिसके बाद इन सातों सीटों पर हुए उपचुनावों को इंडिया अलायन्स का पहला टेस्ट माना जाने लगा और कहा जाने लगा कि इन उपचुनावों के नतीजे आने वाले राज्यों, और 2024 में होने वाले आम चुनावों का संकेत देंगे। इन नतीजों से यह पता चलेगा कि ये नया विपक्षी गठबंधन क्या सचमुच मोदी मैजिक को चुनौती दे पायेगा।
इन सातों सीटों को अगर देखें तो INDIA बनाम NDA की लड़ाई को सिर्फ यूपी की घोसी और झारखण्ड की डुमरी विधानसभा सीट पर ही थी, वरना केरल में लड़ाई कांग्रेस गठबंधन और लेफ्ट गठबंधन के बीच थी, त्रिपुरा में इंडिया गठबंधन की कोई वैल्यू नहीं है, उत्तराखंड में भाजपा बनाम कांग्रेस मुकाबला था, हालाँकि यहाँ से समाजवादी पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था, इसके बावजूद यहाँ भाजपा और कांग्रेस के बीच काफी तगड़ा मुकाबला हुआ और इन सातों सीटों में सबसे कम मार्जिन का नतीजा यहीं पर आया. इसलिए देखा जाय तो यूपी और झारखण्ड में ही भाजपा के सामने INDIA अलायन्स का उम्मीदवार था और दोनों ही जगह विपक्षी गठबंधन को कामयाबी मिली। देखने वाली बात यह भी है कि झारखण्ड में जहाँ सत्ताधारी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के उम्मीवार को कामयाबी मिली वहीँ यूपी की घोसी में मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह को सफलता मिली।
इन सभी सीटों में ख़ास सीट घोसी की ही थी. इस सीट पर इंडिया अलायन्स के टेस्ट के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी परीक्षा थी. घोसी सीट पर भाजपा की हार को अब कहा जा रहा है कि यह समाजवादी पार्टी का गढ़ है इसलिए सपा उम्मीदवार को जीत मिली, ये इंडिया बनाम एनडीए का मुकाबला नहीं था लेकिन ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि रामपुर और आज़मगढ़ भी समाजवादी पार्टी का गढ़ थे लेकिन वहां से सपा का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सफाया किया। जिस तरह वहां चुनाव को सरकारी तौर पर प्रभावित किया गया वही सारे हथकंडे घोसी में अपनाये गए लेकिन इसके बावजूद जनता ने इंडिया उम्मीदवार को भारी मतों से जिताकर आने वाली राजनीति का सन्देश भी दिया है, इसे सिर्फ एक उपचुनाव का नतीजा ही नहीं समझना चाहिए, घोसी का नतीजा इंडिया अलायन्स को और एकजुट करेगा। इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि अगर एक होकर लड़े तो भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी से लड़ना, उसे टक्कर देना और हराना भी संभव है.
घोसी उपचुनाव की अहमियत क्या थी ये इस बात से भी समझा जा सकता है कि भाजपा और योगी सरकार ने इसे अपनी नाक का सवाल बनाया हुआ था. भाजपा और योगी सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के अलावा 10 मंत्री वहां नुक्कड़ सभाएं कर रहे थे . यहीं नहीं, सपा का साथ छोड़कर भाजपा के साथ गए सुभासपा के ओ पी राजभर ने भी पूरे दमखम से भाजपा उम्मीदवार के लिए पूरा ज़ोर लगाया। इसके बावजूद घोसी का नतीजा सत्ताधारी भाजपा के लिए 440 वॉल्ट का झटका ही कहा जायेगा। बहरहाल घोसी उपचुनाव के नतीजे ने एक सन्देश तो दिया ही है जिससे यकीनन इंडिया अलायन्स के हौसले बुलंद होंगे और भाजपा को चिंतित करेंगे.