तौक़ीर सिद्दीक़ी
ऐसा लग रहा है कि इंडिया ब्लॉक् के घटक दलों का रुख एकबार फिर बदलने लगा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के बाद इंडिया ब्लॉक् में शामिल पार्टियों के बीच एक होड़ सी लगी हुई थी और वो सब कांग्रेस पार्टी को नीचा दिखाने में जुट गयी थीं. एक के बाद इंडिया ब्लॉक् की कई पार्टियों ने कांग्रेस की तरफ उँगलियाँ उठाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी की वजह से ही आम आदमी पार्टी को हार मिली है. सबको यही लग रहा था कि कांग्रेस पार्टी को निशाना बनाया जाय ताकि आगे राज्यों के होने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी को डिफेंसिव कर दिया जायगा और कांग्रेस ज़्यादा सीटों की मांग न कर सके और वो बचाव की मुद्रा में रहे लेकिन दस दिन बाद ही मामला बदल गया और एक चिंतन फिर शुरू हो गया है. नए चिंतन का ताज़ा बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव का है, उन्होंने खुलकर कहा है कि इंडिया गठबंधन बना हुआ है और बना हुआ रहेगा। साथ उन्होंने यह भी कहा कांग्रेस भी यूपी में एक पार्टी है उसका अपना एक जनाधार है. हमारा और उसका सम्बन्ध बना हुआ है और बना रहेगा. यह एक बड़ा स्टेटमेंट है क्योंकि 2027 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने हैं. और इन दोनों दलों के अलग होने से इंडिया गठबंधन और इन दोनों पार्टियों पर बड़ा फर्क पड़ सकता है।
इससे कुछ समय पहले तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को निशाना बनाया लेकिन उसके तुरंत बात TMC के बड़े नेता अभिषेक बनर्जी ने कहा कि इंडिया गठबंधन बना हुआ है और कांग्रेस के साथ तालमेल की सम्भावना भी बनी हुई है. वहीँ सामना में छापे एक लेख में शिवसेना यूबीटी के प्रवक्ता संजय राउत ने दिल्ली चुनाव का विश्लेषण किया है और उसमें बताया है कि कैसे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच हरियाणा के बाद दिल्ली में बात नहीं बन पायी। पहले वो पूरी तरह से आप और केजरीवाल की वकालत करते थे और कांग्रेस पर निशाना साधते थे. लेकिन इस लेख में संजय राउत ने बैलेंस करने की कोशिश की है, दोनों पक्षों के तर्कों को सामने रखने की कोशिश की है और किसी एक को कटघरे में नहीं खड़ा किया है, किसी एक को दोषी नहीं ठहराया है. ये तीन प्रमुख घटक दल दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ थे और उनके नेताओं ने केजरीवाल के पक्ष में प्रचार तक किया था । अब वह ये महसूस कर रहे हैं कि इंडिया ब्लॉक् बना रहना चाहिए, कांग्रेस के साथ रिश्ते बने रहने चाहिए, कांग्रेस के साथ बातचीत को आगे बढ़ाना चाहिए चाहिए लेकिन इधर कांग्रेस पार्टी का रुख काफी ठंडा रहा है. शायद इसलिए कि इंडिया गठबंधन के दल कांग्रेस पर ही निशाना साधते रहे हैं लेकिन हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी के इसी ठंडेपन की वजह से इंडिया ब्लॉक के घटक दलों को यह एहसास हुआ हो कि वो कांग्रेस के साथ ज़्यादती कर रहे हैं और कांग्रेस के बिना उनका भी गुज़ारा नहीं होगा।
दिल्ली में कामयाबी के बाद चर्चा शुरू हो गयी है कि भाजपा का अगला निशाना पश्चिम बंगाल है, पश्चिम बंगाल से ममता को हटाना उसका लक्ष्य है, उस प्रदेश में भाजपा अभी तक सरकार नहीं बना पायी है और इसबार वो इस लक्ष्य को हासिल करना चाहती है जिससे ममता बनर्जी को चिंता ज़रूर होगी. TMC को लग रहा होगा चूँकि पूरी चुनावी मशीनरी पर मोदी और अमित शाह का कब्ज़ा है, चुनाव आयोग उनके हिसाब से काम करता है. हरियाणा और दिल्ली की तरह पश्चिम बंगाल का चुनाव भी भाजपा पलट सकती है. चौथे टर्म में ममता को एंटी इलमबेंसी का नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है. किस हद तक ममता सरकार के प्रति लोगों में नाराज़गी बढ़ सकती है। ऐसे में जो वोट TMC से छिटकेगा वो कांग्रेस या लेफ्ट की जगह भाजपा की तरफ ही जा सकता है क्योंकि TMC को हराने की स्थिति में भाजपा ही बंगाल में है. भाजपा जो पोलरीज़ेशन की पॉलिटिक्स में माहिर है और पश्चिम बंगाल में वोट का ध्रूवीकरण हो भी रहा है, यह बात ममता बनर्जी भी अच्छी तरह जानती हैं। हालाँकि ममता को अपने उस 35 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक पर पूरा भरोसा है, उसका मानना है कि अन्य धर्म और समुदाय के 15-20 प्रतिशत वोट मिल जाने पर उसे हराना नामुमकिन हो जायेगा. लेकिन ममता को इस बात की आशंका है कि भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वह खेल न कर जाय जो उसने अन्य राज्यों में चुनाव आयोग के साथ मिलकर किया है, ऐसे में उसे कांग्रेस के 4-5 प्रतिशत वोट की ज़रुरत पड़ सकती है जो उसकी जीत को यकीनी बना सकती है.
वहीँ उत्तर प्रदेश की बात करें तो समाजवादी के प्रमुख अखिलेश यादव को मालूम है कि 2027 में अगर उसे सत्ता में आना है तो उसे राहुल गाँधी और कांग्रेस का समर्थन चाहिए। जिस तरह लोकसभा में अखिलेश और राहुल की जोड़ी हिट रही थी. सपा को लोकसभा में 37 सीटें इसीलिए मिलीं क्योंकि उनके साथ राहुल गाँधी जो पदयात्राओं से यूपी में एक माहौल बना रहे थे जिसका फायदा समाजवादी पार्टी को मिला और वो पांच से सीधे 37 सीटों पहुँच गयी, हालाँकि कांग्रेस को भी फायदा मिला लेकिन शायद उतना नहीं। बेशक यह साथ मिलकर चुनाव लड़ने का कमाल था कि भाजपा 62 से 36 सीटों पर सिमट गयी. अखिलेश यादव जिस PDA की बात करते हैं वो अपनी जगह सही है लेकिन राहुल गाँधी जिस तरह दलितों और OBC के हक़ की बात कर रहे हैं और लोग उनकी बातों को सुन रहे हैं ऐसे में अखिलेश यादव को 2027 के चुनाव में राहुल गाँधी के साथ की बहुत ज़रुरत है. अखिलेश ने गलती से भी अगर कांग्रेस को किनारे करने की कोशिश की तो अखिलेश के लिए इंतज़ार और लम्बा हो सकता है. कुछ ऐसा ही केस बिहार का भी है, राजद के नेताओं के सुर कांग्रेस के प्रति इधर काफी बदले हुए हैं, विशेषकर लालू यादव के लेकिन राहुल गाँधी ने अभी से ही बिहार के दौरे शुरू कर बिहार में इंडिया गठबंधन के घटक दलों को एहसास करा दिया है कि कांग्रेस पार्टी को नज़र अंदाज़ करने की भूल न करें। भले ही बिहार में कांग्रेस पार्टी का कोई बड़ा जनाधार नहीं है लेकिन जितना भी है वो सत्ता और विपक्ष के अंतर को कम करने के लिए काफी है. यही वजह है कांग्रेस के बिना जाने की बात करने वाले अब कांग्रेस के साथ की बात करने लगे हैं, भले ही मजबूरी में कर रहे हों. इंडिया ब्लॉक् के घटक दलों को फैसला करना ही होगा की वो कांग्रेस के बिना जायेंगे या कांग्रेस के साथ, उन्हें यह भी तय करना होगा कि उन्हें कांग्रेस की ज़रुरत है या फिर कांग्रेस को उनकी ज़रुरत है, मेरे हिसाब से तो कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि इंडिया ब्लॉक को कांग्रेस की ज़रुरत है।