अमित बिश्नोई
कांग्रेस कार्यसमिति यानि CWC की 29 नवंबर को दिल्ली में एक अहम बैठक हुई, अहम् इसलिए कि इस बैठक में महाराष्ट्र की करारी हार पर मंथन होने वाला था. अब पता नहीं मंथन हुआ या नहीं, हुआ भी तो किस तरह का मंथन हुआ मगर जो बात इस बैठक से निकलकर सामने आयी वो ये है कि कांग्रेस पार्टी ने अब EVM से चुनाव को एक बड़ा मुद्दा बनाने का फैसला कर लिया है और इसके लिए एक देशव्यापी अभियान चलाने का फैसला किया है. बकौल प्रियका गाँधी अब आर पार की लड़ाई लड़नी पड़ेगी , अब बैलेट पेपर से चुनाव के अलावा और कोई बात मंज़ूर नहीं। यानि कांग्रेस पार्टी ने अब पूरी तरह से मन बना लिया है कि EVM को चुनावी प्रक्रिया से हटवाना ही पड़ेगा, जबतक EVM नहीं हटेगी, भाजपा इसी तरह चुनावी सफलता हासिल करती रहेगी। हालाँकि इस बैठक में कुछ नेता ऐसे भी रहे जो EVM पर पूरी तरह ठीकरा फोड़ने से बचे और अपने को बदलने की बात पर ज़ोर दिया।
इस बैठक में कांग्रेस के सभी बड़े नेता शामिल हुए। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले तो ये कहा कि हार से निराश होने की जरूरत नहीं और पार्टी को मजबूत करने के लिए ऊपर से नीचे तक बदलाव की जरूरत है। इसके बाद वो EVM के मुद्दे पर आ गए और कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ने चुनाव प्रक्रिया को संदिग्ध बना दिया है. उन्होंने महाराष्ट्र के नतीजों को सिरे से ख़ारिज कर दिया और कहा कि कोई भी अंकगणित महाराष्ट्र के नतीजों को सहीं नहीं ठहरा सकता और ऐसा इसलिए कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा के चुनाव के नतीजों में ज़मीन आसमान का फर्क है और ऐसा फर्क इतने कम समय संभव नहीं हो सकता और इसलिए महाराष्ट्र के नतीजों से हर कोई अचंभित है. खड़गे की इन बातों का सबसे ज़्यादा समर्थन प्रियंका गाँधी ने किया जिन्होंने कल ही संसद की सदस्यता की शपथ न लेकर प्रतिज्ञान किया है. प्रियंका ने स्पष्ट रूप से कहा है कि निष्पक्ष चुनाव EVM से संभव नहीं हैं, इसलिए एकमात्र विकल्प बैलेट पेपर से चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग पर ज़ोर देना होगा। इस बैठक में चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए घेरने का भी फैसला किया गया. कांग्रेस पार्टी समेत सारे विपक्ष का मानना है कि चुनाव आयोग ईमानदार नहीं है, उसके कार्यकलाप संदेह के घेरे में रहते हैं. ऐसे में चुनाव आयोग के खिलाफ भी अब लड़ाई छड़ने का समय आ गया है. हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान चुनाव आयोग का जो रुख रहा उसके बाद ये कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव नतीजों के बाद चीफ इलेक्शन कमिश्नर के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है।
कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र चुनाव को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की है और तथ्यात्मक तौर पर कई सबूतों के साथ उस रिपोर्ट को चुनाव आयोग को भेजा गया है और बताया गया है कि महाराष्ट्र चुनाव में किस तरह की धांधलियां की गयी हैं जिनमें वोट काटने से लेकर वोट जोड़ने तक की प्रक्रिया शामिल है और इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग शामिल रहता है, तो एकतरह से कांग्रेस पार्टी ने सीधे चुनाव आयोग पर धांधली करने का आरोप लगाया है. वहीँ प्रधानमंत्री मोदी ने इसे विपक्ष की हताशा बताते हुए कहा कि सत्ता से बाहर होने के कारण उनमें लोगों के प्रति गुस्सा है, जिसके कारण वे देश के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। विपक्ष ने अपना गुस्सा और हताशा लोगों पर निकाली है, लोगों का ध्यान भटकाया है और पिछले 10 सालों से उनका झूठ का अभियान जारी है। महाराष्ट्र में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने इस अभियान को और तेज कर दिया है। प्रधानमंत्री मंत्री ने कहा कि ये लोग अब संविधान और राष्ट्रवाद को सीधे चुनौती दे रहे है। EVM पर तो पहले ही सवाल उठाते थे, अब तो पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि इनका संविधान में भरोसा ही नहीं है.
हालाँकि खड़गे ने इस बैठक में कुछ ज़रूरी मुद्दों पर ध्यान दिलाया और ये वो मुद्दे हैं जो EVM से भी बड़े हैं और जिनपर कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले कभी गंभीर नहीं होती। खड़गे ने कहा कि हमारा ध्यान सिर्फ चुनाव लड़ने पर ही नहीं होना चाहिए बल्कि उससे बड़ी बात उसकी तैयारी होती है और तैयारी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू वोटर लिस्ट है जिसपर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत होती है. खड़गे की बात में बहुत दम है. महाराष्ट्र की बात करें तो लोकसभा चुनाव में 37 लाख वोटरों का इज़ाफ़ा हुआ था यानि पिछले पांच साल में 37 लाख नए मतदाता वोटर लिस्ट में शामिल हुए थे लेकिन सिर्फ कुछ महीनों बाद जब विधानसभा के चुनाव हुए तो वोटर लिस्ट में 47 लाख नए वोटर और जुड़ गए. यहाँ पर सवाल उठता है कि पांच सालों 37 लाख और चंद महीनों में 47 लाख वोटर। ये आंकड़ा अपने आप में ही संदेह पैदा करता है लेकिन कांग्रेस पार्टी या MVA को तो ये बात मतदान से पहले ही पता हो गयी होगी कि 47 लाख वोटर जोड़े गए तो उसने चुनाव से पहले ही ये बात क्यों नहीं उठाई, अब चुनाव बाद ये बात उठाने से क्या फायदा। खड़गे को भी मालूम है कि भले ही उसने चुनाव आयोग में इस बात को भी रखा है लेकिन ये मुद्दा बेकार है. असली बात ये है कि इसे उस समय रोका जा सकता है जब वोटर लिस्ट तैयार की जा रही होती है और नाम काटे और जोड़े जा रहे होते हैं, इस प्रक्रिया के दौरान बहुत बड़ा खेल हो सकता और शायद होता भी है. खड़गे का बैठक में यही कहना था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उस समय सबसे ज़्यादा सजग रहने की ज़रुरत होती है जब वोटर लिस्ट की तैयारी की प्रक्रिया चल रही होती है. दरअसल खड़गे का ज़ोर इस बात पर था कि कार्यकर्ता जी जान लगाके पार्टी समर्थकों का नाम वोटर लिस्ट में ज़रूर सुनिश्चित करें।
बैठक में खड़गे ने एक बात पर और भी बहुत ज़ोर दिया। खड़गे ने कहा कि राज्य के चुनाव कब तक राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाएंगे। खड़गे का कहना था कि राज्यों के चुनाव के समय स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर काम करना बहुत ज़रूरी है और इसके लिए कम से कम एक साल पहले से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। खड़गे ने ये भी कहा कि अब चुनाव इस बात से नहीं जीते जाते कि आप क्या कर रहे हैं बल्कि ये भी ज़रूरी होता है कि आपका विपक्षी क्या कर रहा है. समय के साथ बदलाव की ज़रुरत है क्योंकि अब पुराने ढर्रे पर चलकर चुनाव जीतना बड़ा मुश्किल है. खड़गे ने ये भी कहा कि ये काम अब आपको रोज़ करना होगा, आपको आराम नहीं मिलेगा, समय पर फैसले लेने होंगे और सबसे बड़ी बात जवाबदेही तय करनी होगी। खड़गे की कही गयी बातों में बड़ा दम है मगर अफ़सोस की बात ये है कि इन बातों पर अमल करना कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा टेढ़ा काम है. खड़गे की इन बातों पर कांग्रेस पार्टी अगर वाकई अमल करना शुरू करे, अगर वाकई जवाबदेही तय करे, अगर वाकई कड़े और समय से फैसले लेने शुरू करे तो कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस अपनी वापसी न कर सके. जहाँ तक EVM की बात है तो अगर उसे वाकई EVM से परेशानी है तो यह बात सिर्फ चुनावी नतीजों तक न रहे. जैसा कि आजतक होता आ रहा है कि कुछ चुनाव हारे तो EVM हाय हाय और फिर कोई एक चुनाव जीता तो ख़ामोशी। अगर EVM का विरोध करना है तो फिर खुलकर कीजिये और लगातार कीजिये, अंतरालों में नहीं या फिर अपनी सुविधानुसार नहीं। यही वजह है कि देश की शीर्ष अदालत में EVM पर विपक्षी पार्टियों को मुंह की खानी पड़ी है क्योंकि जीत मिलते ही उनका सारा विरोध गायब हो जाता है. फिलहाल तो EVM से ज़्यादा कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो खड़गे ने इस महत्वपूर्ण बैठक में कही हैं. EVM का राग अलापने से बेहतर चुनाव पूर्व की तैयारियों पर ध्यान दें और अगर EVM को हटाना ही है तो फिर उसके लिए आखरी हद तक जाना होगा, भले ही वो चुनाव का बॉयकॉट ही क्यों न हो लेकिन उसके लिए बड़े कलेजे और हिम्मत की ज़रुरत है. क्या उतनी हिम्मत और कलेजा कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों में है.