अमित बिश्नोई
लगभग 6 महीने पहले जो सर्वे आ रहे थे उसमें साफ़ तौर पर कहा जा रहा था कि मध्य प्रदेश में भारी बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है, मगर अब कहा जा रहा कि मौसम में बदलाव हो रहा है, हर आने वाले सर्वे में सीटों का अंतर कम हो रहा है, मध्य प्रदेश के मामा की स्वीकार्यता जो दिल्ली दरबार में काफी कम हो चुकी थी वो अब काफी बढ़ चुकी है और इस बदलाव की वजह शिवराज चौहान की लाड़ली बहना योजना को बताया जा रहा है.
दरअसल कर्नाटक और हिमाचल के चुनावों में कांग्रेस पार्टी महिलाओं के लिए कई अच्छी योजनाएं लेकर आयी जिसमें परिवार की महिला मुखिया को आर्थिक मदद भी शामिल थी, दोनों ही राज्यों में ये योजना लागू भी हो गयी और लोगों के खातों में पैसे भी पहुँचने लगे, इधर मध्य प्रदेश में ज़बरदस्त एंटी इंकम्बेंसी के चलते परेशान शिवराज चौहान ने भी कुछ ऐसा ही करने की सोचा और प्रदेश की महिलाओं के लिए लाड़ली बहना स्कीम लेकर आये और उनकी आर्थिक मदद के लिए हर महीने एक हज़ार रूपये उनके खाते में डालना शुरू कर दिया। इस योजना के क्रियान्यवन ने शिवराज के लिए संजीवनी बूटी का काम किया, जो शिवराज प्रधानमंत्री मोदी और अमितशाह को एक काँटा लग रहे थे, अंततः उन्हीं शिवराज में उन्हें सत्ता वापसी की झलक दिखाई देने लगी. जिन शिवराज का मोदी जी मंच से नाम लेना भी गंवारा नहीं कर रहे थे उन्ही शिवराज की लाड़ली बहना योजना का वो अब अपनी हर चुनावी सभा में ज़िक्र करते थकते नहीं। ये वही शिवराज हैं जो भाजपा के चुनावी प्रोपगंडे से बिलकुल गायब थे, प्रदेश का चार बार का मुख्यमंत्री हाशिये पर डाल दिया गया था, उन्ही शिवराज का कद अब चुनावी पोस्टरों में बड़ा होता जा रहा है, जबकि मोदी जी पोस्टरों से लगभग गायब से हो गए हैं.
मध्य प्रदेश की राजनीति में आज इसे चमत्कार ही कहा जा रहा है. क्योंकि तीन चार महीने पहले ये साफ़ लग रहा था कि भाजपा आला कमान शिवराज चौहान से पीछा छुड़ाना चाह रहा है, हर मामले में शिवराज चौहान की अनदेखी होने लगी. महत्वपूर्ण बैठकों से भी वो नदारद रहने लगे. केंद्र से नेता निर्यात किये जाने लगे मगर हर आने वाला सर्वे भाजपा को पिछड़ता ही दिखा रहा था. इधर शिवराज चौहान का दर्द भी छलकने लगा था, वो भरी सभाओं में लोगों से अपना दर्द शेयर करने लगे थे, पूछने लगे थे कि मैं चुनाव लड़ूँ या न लड़ूँ, लड़ूँ तो कहाँ से लड़ूँ, अधिकारीयों से बोलने लगे कि चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा। लोगों के मन में उनके लिए एक सहानुभूति पैदा होने लगी, उनकी लाचारी, उनकी मज़बूरी देखकर मध्य प्रदेश के लोगों भी लगने लगा कि उनके मामा के साथ भाजपा आला कमान गलत कर रहा है. पीएम मोदी और अमित शाह को भी लगने कि शिवराज को किनारे करना सही रणनीति नहीं, दूसरी तरफ लाड़ली बहना योजना की भी लोगों के बीच चर्चा धीरे धीरे बढ़ने लगी, राजनीति के पंडित इसे गेम चेंजर के रूप में देखने लगे, महिलाओं के खातों में पैसा आने लगा तो उनका भी भरोसा बढ़ने लगा, लाड़ली बहनों की नाराज़गी थोड़ी कम होने लगी, हालाँकि कांग्रेस ने 1500 रूपये देने का वादा किया है लेकिन वो अभी वादा है लाड़ली बहना योजना धरातल पर उतर चुकी है.
यही वजह है कि पीएम मोदी और अमित शाह को मजबूरी में ही सही शिवराज चौहान के महत्व को स्वीकारना पड़ा है. कहा जा रहा है कि दो महीने पहले मध्य प्रदेश में जो राजनीतिक माहौल था उसमें काफी बदलाव आया है, बेशक ओपिनियन पोल्स में कांग्रेस पार्टी को अब भी बढ़त दिख रही है मगर दोनों के बीच अंतर काफी कम हुआ है और लड़ाई कांटे की दिखने लगी है. भाजपा आलाकमान को भी लगने लगा है कि क्षेत्रीय नेतृत्व को नज़र अंदाज़ करना कर्नाटक और हिमाचल की तरह पार्टी को भारी पड़ सकता है. वहीँ कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनावों में क्षत्रपों को बहुत महत्त्व दे रही है और उसका फल भी उसे कर्नाटक और हिमाचल में मिला और इन पांचों राज्यों के चुनावों में मिलता हुआ दिखाई दे रहा है. चाहे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल हों, टी एस सिंह देव हों, तेलंगाना में रेवांथा रेड्डी हों, राजस्थान में अशोक गेहलोत हों, सचिन पायलट हों या फिर मध्य प्रदेश में कमलनाथ। इन प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी इन्हीं क्षत्रपों को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है वहीँ मोदी जी सिर्फ अपने चेहरे पर लोगों से वोट मांग रहे हैं. कर्नाटक और हिमाचल में भी मांगे थे मगर नतीजे विपरीत आये. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी मोदी जी का ही चेहरा है. राजस्थान में कोई सीएम चेहरा नहीं है, वसुंधरा को भी सीएम चेहरा नहीं बनाया गया , छत्तीसगढ़ में रमण सिंह भी हाशिये पर हैं, यहाँ भी कोई स्थानीय चेहरा नहीं हैं और मध्य प्रदेश में भी लोकप्रियता के बावजूद शिवराज चौहान की उपेक्षा की जा रही थी लेकिन लगता है कि भाजपा आला कमान को इस बात का एहसास हो गया है कि मध्य प्रदेश की लड़ाई बिना शिवराज जीती नहीं जा सकती। बीते कुछ समय से शिवराज का बढ़ता कद इस बात का सबूत है, पोस्टरों में उनका कद बड़ा हो गया है, मोदी जी ने अपने को थोड़ा पीछे कर लिया है, उनके चुनावी भाषणों में शिवराज चौहान और उनकी योजनाओं का ज़िक्र होने लगा है, निराश और हताश दिखने वाले शिवराज चौहान की भाषा भी बदल गयी है, विपक्ष को चेतावनी भी देने लगे हैं और ये सब लाड़ली बहना के बढ़ते असर का नतीजा दिख रहा है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि लाड़ली बहना क्या मध्य प्रदेश में भाजपा की नैया पार लगाएगी, क्या मामा को एकबार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुचायेगी. समय अब ज़्यादा नहीं है, 17 नवंबर को चुनाव हैं, देखना होगा कि ओपिनियन पोल्स में दोनों पार्टियों बीच दिखने वाला अंतर और कितना कम होने वाला है.