तौकीर सिद्दीकी
आने वाले पांच राज्यों में से चार के विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए जहाँ काफी ख़राब स्थिति दिख रही है वहीँ राजस्थान में गेहलोत सरकार बनी रहेगी या जाएगी इसपर संशय बना हुआ है. अभी सी वोटर्स का जो ताज़ा सर्वे आया है उसमें कहा गया है कि मध्य प्रदेश में भले ही कांटे की टक्कर है लेकिन राजस्थान में उसे बड़ी बढ़त मिलती दिखाई दे रही है. वैसे राजस्थान की ये परम्परा रही है कि वहां हर बार सरकार बदलती है लेकिन वहां से जो ग्राउंड रिपोर्ट आ रही हैं उनसे यह लग रहा है कि शायद इसबार कुछ नया होने वाला है और जादूगर गेहलोत शायद नया इतिहास लिखने जा रहे हैं लेकिन इस नए सर्वे ने उनकी जादूगरी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है और उनकी लोकप्रिय योजनाओं पर भी जिनके दम पर गेहलोत राजस्थान की परंपरा बदलने की बात कर रहे हैं.
जहाँ तक सर्वे की बात है तो इन दिनों राजस्थान में कम से कम 10 सर्वे एजेंसियां अपना डेरा जमाये हुए हैं, कोई न्यूज़ चैनल के लिए सर्वे कर रहा है, कोई पार्टियों के लिए सर्वे कर रहा है, यहाँ तक कि भावी उम्मीदवार भी अपने लिए सर्वे करवा रहे हैं, ऐसा लगता है कि राजस्थान में इस बार सर्वे पर चुनाव आधारित है. सर्वे की जहाँ तक बात है तो एक चुनावी सर्वे कांग्रेस पार्टी ने भी कराया था, जिसमें उन्होंने इस बात की जानकारी हासिल की थी कि कौन से क्षेत्र में पार्टी का कौन सा नेता, विधायक ज़मीन पर लोकप्रिय है और किसके के खिलाफ नाराज़गी है, इसी पर टिकटों का फैसला होना था. खबर है कि कांग्रेस पार्टी का ये इंटरनल सर्वे लीक हो गया है और उसकी कॉपी भाजपा के पास पहुँच गयी है , खबर ये भी है भाजपा को ये रिपोर्ट कांग्रेस के ही कुछ विधायकों ने पहुंचाई है, बताया जा रहा है ये विधायक काफी दिनों से भाजपा के संपर्क में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी को अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा फिलहाल टालनी पड़ी. कांग्रेस पार्टी ने अबतक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में अपने काफी उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं लेकिन राजस्थान पर अभी मामला टाले हुए है।
राजस्थान में कांग्रेस के लिए जहाँ दोबारा मौके बात है तो कहा जा रहा है कि लोग गेहलोत सरकार से काफी खुश हैं, उन्हें गेहलोत सरकार की योजनाएं पसंद आ रही हैं, गेहलोत सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी जैसी कोई बात नहीं है लेकिन लोगो की नाराज़गी स्थानीय विधायकों से ज़रूर है और उनकी काफी संख्या है, सी वोटर के सर्वे में जो अनुमान दिखाया गया है वो इन्ही विधायकों की वजह से है, ये वो विधायक हैं जो गेहलोत और पायलट की लड़ाई में अवसर का फायदा उठा रहे थे, सरकार बचाने की कोशिश में मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत चाहकर भी इन विधायकों पर कोई एक्शन नहीं ले पा रहे थे और इन विधायकों को एक तरह से मनमर्ज़ी करने की खुली छूट मिली हुई थी, कभी टोकाटाकी हुई तो इन विधायकों का जवाब था कि हम आप की सरकार भी तो बचा रहे हैं, अब यहीं विधायक गेहलोत और कांग्रेस के लिए बड़ी परेशानी बने हुए हैं.
सवाल ये उठता है कि क्या अशोक गेहलोत और कांग्रेस आला कमान में इतनी हिम्मत है कि वो ऐसे विधायकों का टिकट काटकर क्षेत्रीय जनता की नाराज़गी को कम कर सकें। राजस्थान के कई पत्रकारों ने भी गेहलोत को इस बारे में बताया है और सलाह भी दी है कि अगर इन क्षेत्रों में नए चेहरे उतारे जांय तो लोगों की नाराज़गी को कम किया जा सकता है और गेहलोत की छवि और सरकार के अच्छे कामों का फायदा उठाया जा सकता है. तो क्या कांग्रेस इस तरफ कोई काम कर रही है, उम्मीदवारों की घोषणा में देरी क्या उसी तरफ उठाया जा रहा क़दम है, क्या ऐसे में मौजूदा विधायकों का टिकट काटने का काम शुरू हो गया है। वैसे कांग्रेस आला कमान के लिए ये काम इतना आसान नहीं है, भले ही अभी सचिन पायलट और गेहलोत के बीच मनमुटाव ख़त्म होने की बातें की जा रहीं है लेकिन जब उम्मीदवारों की सूची आएगी तब सही मायनों में पता चलेगा कि दोनों कितने करीब आये हैं.
अशोक गेहलोत के लिए सत्ता बरक़रार रखना इतना आसान नहीं है, उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस पार्टी में हंगामा होना लाज़मी है, सूची में अगर पायलट ग्रुप को उचित स्थान नहीं मिला तो उनके क्या तेवर होंगे कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी राजस्थान को लेकर उतना आश्वस्त नहीं जितना वो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना को लेकर हैं। अभी पिछले दिनों ही उन्होंने इस बात को पब्लिक्ली स्वीकारा भी था कि राजस्थान की लड़ाई काफी मुश्किल है. राहुल गाँधी अगर इस तरह की बात कर रहे हैं तो यकीनन मुश्किल ज़्यादा बड़ी है जो ताज़ा सर्वे में भी दिखाई दे रही है. राजनीतिक पंडितों के अनुसार गेहलोत के पास अभी भी मौका है, अगर वो बेलगाम विधायकों का टिकट कटवाने में कामयाब हो गए तो सत्ता में वापसी कर सकते हैं.