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टीम इंडिया के लिए समस्या बने गंभीर

आर्टिकल/इंटरव्यूटीम इंडिया के लिए समस्या बने गंभीर

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तौक़ीर सिद्दीक़ी
गौतम गंभीर का इस समय वैसे भी समय सही नहीं चल रहा है, आईपीएल में केकेआर को तीसरी बार चैंपियन बनाकर सुर्ख़ियों में आने और BCCI की निगाहों में चढ़कर भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच का पद हथियाने वाले गौतम गंभीर की कोचिंग में टीम इंडिया अपने ही घर पर टेस्ट सीरीज 0-3 से हार गई. भारतीय क्रिकेट के फैंस इस शर्मनाक शिकस्त से काफी नाराज़ हैं और खिलाडियों से ज़्यादा इस हार के लिए टीम मैनेजमेंट को ज़िम्मेदार बता रहे है. गंभीर इस समय एक विलेन के रूप में लोगों को नज़र आ रहे हैं लेकिन भारतीय क्रिकेट के इस घमण्डी पूर्व खिलाड़ी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऑस्ट्रेलिया रवाना होने से पहले आज प्रेस कांफ्रेंस में उनका ये व्यवहार एक बार फिर नज़र आया. गंभीर ने रोहित और विराट को लेकर कुछ ऐसे बयान दिए जो विवाद का विषय बन गए और उनकी प्रेस कांफ्रेंस के फ़ौरन बाद कुछ पूर्व क्रिकेटरों को ये कहना पड़ा कि बोर्ड को चाहिए कि पत्रकार वार्ताओं से वो गौतम गंभीर को दूर ही रखे क्योंकि उन्हें बात करने की तमीज नहीं है. उनकी जगह पर बोर्ड को रोहित, विराट या फिर चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर को भेजना चाहिए। गौतम गंभीर को इस तरह की ड्यूटी से अलग रखना बोर्ड के लिए समझदारी वाला फैसला होगा. उन्हें पर्दे के पीछे ही काम करने दें क्योंकि गंभीर पास ना सही शब्द हैं, ना ही सही तमीज है कि वो उनसे बात कर पाएं.

भारतीय धरती पर किसी भी टीम के खिलाफ टेस्ट श्रंखला में पहली बार सूपड़ा साफ़ होने के बाद से ही हेड कोच गौतम गंभीर, कप्तान रोहित शर्मा विशेषकर निशाने पर हैं. खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर सवाल तो उठ ही रहे हैं लेकिन कप्तान और कोच के कई फैसलों पर उन्हें ज़्यादा घेरा जा रहा है. वहीँ एक ऐसी रिपोर्ट सामने आई है जो बता रही है टीम इंडिया में सब कुछ अच्छा नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कोच गंभीर और टीम के थिंक टैंक के कुछ सदस्यों में एक राय नहीं है. विवाद ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुनी गयी टीम में चुने गए 2 खिलाड़ियों के सेलेक्शन को लेकर है जिसका बचाव हेड कोच साहब आज की प्रेस कांफ्रेंस में कर रहे थे. न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ अपने ही घर में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद 8 नवंबर को एक रिव्यू मीटिंग, जिसमें बोर्ड अधिकारीयों के अलावा गौतम गंभीर, कप्तान रोहित शर्मा और चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर भी मौजूद थे. इस मीटिंग में गौतम गंभीर के कोचिंग स्टाइल की चर्चा हुई.गंभीर की कोचिंग पर सवाल खड़े किए गए या नहीं, इसकी पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन ये जरूर पता चला है कि टीम के ‘थिंक टैंक’ और हेड कोच की सोच में टकराव है. इस टकराव का मोटा मतलब हेड कोच और कप्तान अलग दिशा में जा रहे हैं और ये नज़र भी आ रहा है.

इन हालातों में सवाल ये उठता है कि क्या कोच और कप्तान के बीच फैसलों को लेकर सहमति नहीं बन रही है या फिर चीफ सेलेक्टर अगरकर और गंभीर में मतभेद हैं? खिलाडियों के सिलेक्शन की बात करें तो बताया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया जाने वाली टीम में दो खिलाडी ऐसे हैं जिनका रेकमेंडेशन गौतम गंभीर ने किया था, बल्कि इसे रेकमेंडेशन न कहकर फैसला कहना ज़्यादा सही होगा। इन दो खिलाडियों के चयन पर मीडिया में काफी सवाल उठे कि कोई अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का अनुभव न होते हुए ऑस्ट्रेलिया जैसे दौरे के लिए इन्हें क्यों चुना गया, इनमें से एक खिलाडी का सम्बन्ध केकेआर से है और पिछले आईपीएल में उसने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन लोगों का सवाल है कि एक विदेशी दौरे के लिए देश में कई अच्छे और तजुर्बेकार विकल्प होते हुए भी उसका चयन क्यों? टीम के चयन में एक कोच की दख़लअंदाज़ी BCCI में पहली बार देखी गयी. इससे पहले तो टीम सिलेक्शन में चयनकर्ताओं के अलावा सिर्फ कप्तान की सलाहों को शामिल किया जाता रहा है, लेकिन बोर्ड ने उन परम्पराओं को तोड़ा है. ये भी एक सवाल है कि बोर्ड टीम के हेड कोच को असीमित अधिकार क्यों दे रहा है? क्या वो अपने फैसले को सही साबित करना चाहता है जोकि एक गलत फैसला साबित हो रहा है.

इतने अल्पकाल में गौतम गंभीर एक कोच के रूप में काफी विवादित हो चुके हैं. इससे पहले तो एक लबे अरसे से भारतीय टीम के कोच रहे पूर्व खिलाडियों को कभी इस तरह की चर्चाओं में नहीं देखा गया फिर वो चाहे रवि शास्त्री रहे हों या फिर राहुल द्रविड़ जिन्होंने अपने लम्बे दौर में भारतीय टीम को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। कहा जाय तो शास्त्री की लिगेसी को द्रविड़ ने बड़ी कामयाबी से आगे बढ़ाया और टीम इंडिया को और ऊंचाइयों पर ले गए और अपने टॉप पर पहुंचकर खुद से टीम इंडिया को अलविदा कहा लेकिन गौतम गंभीर उस कॉम्पैक्ट टीम को बिखेरते हुए नज़र आ रहे हैं. उनके इस छोटे से कोचिंग कैरियर में टीम इंडिया को कई शर्मनाक शिकस्त का सामना करना पड़ा है, ऐसी शिकस्त जो भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक ऐसा धब्बा बन गयी है जो कभी मिट नहीं सकता। न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ अगर टेस्ट श्रंखला का विश्लेषण कीजिये तो स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ये खिलाड़ियों की नाकामी से ज़्यादा टीम मैनेजमेंट की नाकामी है जिसके सर्वेसर्वा फिलहाल गौतम गंभीर हैं.

गौतम गंभीर ने जो राह अपना रखी है उससे लगता नहीं कि भारतीय टीम के साथ उनका सफर लम्बा चलने वाला है. विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल से पहले भारतीय टीम के लिए ऑस्ट्रेलिया का दौरा बहुत अहम है क्योंकि इसके बाद उसे कोई टेस्ट शृंखला नहीं खेलनी है. WTC रैंकिंग में टीम इंडिया अब दुसरे नंबर पर आ गयी है, कुछ अन्य टीमें भी उसके नज़दीक पहुँच चुकी है. ऐसे में फाइनल में जगह पक्की करने के लिए टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया में अपना बेस्ट परफॉरमेंस देना ही होगा वरना WTC के फाइनल में पहुँचने के लिए कोई गारंटी नहीं होगी। ऐसी स्थिति में गौतम के सामने एक गंभीर समस्या है. ऑस्ट्रेलिया में अगर नतीजे अच्छे नहीं आते तो फिर बोर्ड चाहते हुए भी शायद गंभीर का साथ ने दे सके और गौतम को कुछ गंभीर परिणाम भुगतने पड़ें. ये परिणाम हेड कोच की कुर्सी से हटना भी हो सकता है या फिर हो सकता है कि टेस्ट टीम की ज़िम्मेदारी गंभीर से छीन ली जाय. अगर ऐसा होता है तो जो गौतम गंभीर का मिज़ाज है उसके हिसाब से वो टीम इंडिया का साथ पूरी तरह से छोड़ना पसंद करेंगे। इसलिए कहा जा सकता है कि ऑस्ट्रेलिया का दौर उनके कोचिंग भविष्य के लिए अहम होने वाला है. फ़िलहाल तो टीम इंडिया के लिए गौतम गंभीर समस्या की तरह हैं क्योंकि उनके आने के बाद टीम कई समस्याओं से जुझ रही है.

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