अमित बिश्नोई
इलेक्टोरल बांड की परतें खुलने लगी हैं, फिलहाल तो यही नज़र आ रहा है कि हम्माम में सब नंगे हैं फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ ने चड्डी पहन रखी है कुछ ने उसे भी उतार फेंका है. देश के सबसे प्रतिष्ठित बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की छीछालेदर मची हुई है, इसे कहते हैं गुनाह बेलज़्ज़त। लज़्ज़त कोई ले भी रहा होगा तो वो टॉप पर बैठा ले रहा होगा, जिसे सेवा विस्तार मिला हुआ होगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अदालत में हाज़िर होने को कहा होगा. बहुत कुछ छुपाने का खेल चल रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट है कि अपनी मनमानी पर जुटा हुआ है, एक एक परत को उधेड़ने में जुटा हुआ है. आज ही SBI को फिर फटकार लगाईं गयी कि क्यों पूरी जानकारी नहीं दे रहे हैं, क्यों छुपाने की कोशिश की जा रही और क्यों आदेश का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है, आखिर क्या मजबूरी है.
सुप्रीम कोर्ट का डण्डा चलने के बाद स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने 24 घंटे में डाटा तो दे दिया मगर अपनी हरकत से बाज़ नहीं आया. अव्वल तो पूरा डाटा नहीं दिया। 22217 चुनावी चंदों में से सिर्फ 18871 का डाटा चुनाव आयोग को सौंपा और 3346 चुनावी बॉन्डों का ब्यौरा सील बंद लिफाफों में जमा किया गया. चुनाव आयोग ने भी इस स्थिति को अपने अनुकूल बनाते हुए जैसा है जहाँ है की बात कहकर सिर्फ 18871 इलेक्टोरल बांड की जानकारी ही वेबसाइट पर शेयर की. जो जानकारी शेयर की वो भी अधूरी क्योंकि इसमें वो बांड नंबर ही नहीं है जिसके मिलान से पता चल सके कि किस बांड को किस पार्टी ने भुनाया। कोविड काल में वैक्सीन मोनोपोली चलाने वाले सीरम इंस्टिट्यूट ने 52 करोड़ का चंदा क्या कांग्रेस पार्टी को दिया या फिर उस पार्टी को दिया होगा जिसने वैक्सीन प्रोजेक्ट में उसकी मदद की होगी। लॉटरी किंग मार्टिन सेंटियागो की कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स सर्विसेज ने अगर 1368 करोड़ के इलेक्टोरल बॉण्ड खरीदकर दान किये तो आखिर किसने उन बांड को भुनाया।
इसी तरह मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने जो 966 करोड़ का चुनावी चंदा दिया तो क्या वो किसी क्षेत्रीय पार्टी को दिया या फिर राष्ट्रीय पार्टी को और राष्ट्रीय पार्टी में किसे दिया, सत्ता पक्ष वाली पार्टी को या फिर विपक्ष में बैठने वाली पार्टी को. क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 410 करोड़ रूपये का चुनावी चंदा देने की वजह क्या है? किसे उसने इलेक्टोरल बांड सौंपे और किस लिए, बदले में क्या मिला. वेदांता लिमिटेड ने 400 करोड़ के बांड किस राजनीतिक पार्टी या पार्टियों से नज़दीकी बनाने के लिए खरीदे। हल्दिया एनर्जी लिमिटेड, एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड, वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड, केवेंटर फूड पार्क इंफ्रा लिमिटेड, मदनलाल लिमिटेड, भारती ग्रुप, ऐसी अनेक कंपनियों ने सैकड़ों करोड़ का चुनावी चंदा दिया, मगर जो डाटा साझा किया गया उससे तो कुछ साबित ही नहीं हो सकता। इसे तो सरासर चीटिंग कहते हैं.
और 3346 इलेक्टोरल बांड की जानकारी लिफाफों में बंद क्यों है? इनमें कौन सी कंपनियों के नाम है, कांग्रेस के हिसाब से तो ये लगभग 2500 करोड़ से ज़्यादा के बांड हैं. इतनी बड़ी चुनावी चंदे की रकम देने वालों के नाम गुप्त क्यों हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर अपने आदेश में कहा था कि सम्पूर्ण जानकारी, तो SBI ने अधूरी जानकारी क्यों दी , क्यों वो मामले को खींचने की कोशिश कर रहा है क्यों वो देश के सामने देश की सबसे बड़ी अदालत में अपनी फ़ज़ीहत करवा रहा है. SBI की फ़ज़ीहत का मतलब उन 48 करोड़ अकाउंट होल्डर्स की फ़ज़ीहत जो इस सरकारी बैंक पर आँख मूंदकर विशवास करते हैं। चुनावी चंदे की जानकारी देने में आनकानी या देरी करने के पीछे SBI पर आखिर किसका दबाव है. क्यों वो राजनीती का मोहरा बन रहा है, SBI को इसका क्या फायदा मिलने वाला है.
आखिर सुप्रीम कोर्ट ऊँगली टेढ़ी करके घी तो निकाल ही रहा है। इलेक्टोरल बांड का यूनिक नंबर ऐसे नहीं तो वैसे आपको देना ही पड़ेगा। शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करते हुए पहले ही दे देते तो आज भरी अदालत में खरी खोटी न सुनने को मिलती, विस्तार पाने वाले SBI बॉस को अदालत ने तलब न किया होता। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से अब इलेक्टोरल बांड की एक एक जानकारी तो सामने आकर ही रहेगी। यूनिक नंबर जैसे ही सामने आएंगे, रिसर्च करने वालों को दूध का दूध पानी का पानी करने में समय नहीं लगेगा। ये लोग तो वैसे भी जुटे हुए हैं और बहुत सी जानकारियां निकाल भी ली हैं और बहुत से चुनावी चंदों के तार मिलने वाले इन्सेंटिव, छूट से जोड़ भी चुके हैं, यूनिक नंबर से ये तार सबूत में बदल जायेंगे। आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता, चूँकि ये सबकुछ कानूनी जामे के अंदर किया गया इसलिए सजा वज़ा जैसी कोई बात नहीं लेकिन अपने जामे के अंदर वो कितना नंगे हैं ये जानकारी तो जनता के सामने आ ही जाएगी और फिर फैसला उसे ही करना है कि किसे सजा दी जाय और किसे मज़ा क्योंकि जनता ही लोकतंत्र में सर्वपरि है, उसका सजा देने या सिर पर बिठाने का अपना ही अंदाज़ है. पर इस पूरी कवायद में SBI की छीछालेदर ज़रूर हो गयी और उसपर कायम लोगों का भरोसा भी टूटा है.