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Ek Hathiya Naula- जहां दोहराई गई ताजमहल की कहानी

Ek Hathiya Naula

चंपावत- देवभूमि उत्तराखंड अपने धार्मिक स्थलों के पौराणिक महत्व और मान्यताओं के लिए पूरे विश्व भर में प्रचलित है. लेकिन कुछ जगह ऐसी हैं जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. आज हम आपको उत्तराखंड की ऐसी ही एक जगह के बारे में बताते हैं जहां दुनिया के सात आश्चर्य में से एक ताजमहल की कहानी दोहराई गई थी. आप शायद शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी के बारे में सोच रहे होंगे, जी नहीं उत्तराखंड के चंपावत जिले में ताजमहल की उस कहानी को दोहराया गया जिसमें ताजमहल को बनवाने वाले शाहजहां ने कारीगर के हाथ काट दिए थे.चंपावत के घटना गांव में एक हथिया नौला उसी कहानी से केवल मिलती जुलती ही नहीं बल्कि ताजमहल की कहानी से एक कदम आगे भी है.

‘एक हथिया नौला’ की कहानी

चंपावत जिले में आपको प्राचीन मंदिरों में ऐतिहासिक कलाकृतियों की बेजोड़ कारीगरी देखने को मिलती है. ‘एक हथिया नौला’ भी उसी वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना पेश करती है. ‘एक हथिया नौला’ जिसे एक हाथ से बनाया गया ‘नौला’ कहा जाता है. उत्तराखंड की स्थानीय भाषा में नौला वह स्थान होता है जहां पर पानी प्राकृतिक स्रोतों से एकत्र होता है. कहा जाता है कि चंद राजाओं ने बालेश्वर धाम का निर्माण कराया जिसमें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं. बालेश्वर मंदिर के निर्माण के बाद चंद राजाओं ने इसी तरह के दूसरे मंदिर का निर्माण ना होने के डर से मंदिर के निर्माण करने वाले जगन्नाथ मिस्त्री का एक हाथ काट दिया. बताया जाता है कि अपनी कला को जिंदा रखने के लिए जगन्नाथ ने अपनी बेटी कस्तूरी के साथ मिलकर ढकना गांव के पास नौला का निर्माण किया. जिसमें जगन्नाथ ने अपनी पूरी कला बिखेर दी. नौले में लगे पत्थरों पर लोग जीवन के दृश्य जिसमें गायक,कामकाजी महिला, और वादक का सजीव चित्रण किया गया है.

‘एक हथिया नौले’ की वास्तुकला

चंपावत जिला मुख्यालय के रखना गांव से गरीब 2 किलोमीटर दूर इस नौले का निर्माण किया गया है. अपनी बेजोड़ कलाकृतियों की दृष्टि से यह नौला कई मायनों में खास है. नौले के निर्माण में बिना गारे के केवल पत्थरों का प्रयोग किया गया है. नौले में छोटी-छोटी नक्काशी करके अनेक मूर्तियां गुथी गई है, जिसे देखकर लगता है यह मूर्तियां कुछ बोल रही हो. आज यह नौला एक राष्ट्रीय धरोहर है जो हमारी सांस्कृतिक सभ्यता को जीवित रखे हैं. इसका संरक्षण पुरातत्व विभाग विभाग के पास है. बावजूद इसके इसके संरक्षण को लेकर कोई ठोस योजना धरातल पर नहीं दिखाई देती.

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