देवप्रयाग- उत्तराखंड के पंच प्रयाग में सबसे श्रेष्ठ माने जाने वाली देवप्रयाग को भगवान श्री राम की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है. देवप्रयाग मां गंगा की जन्म स्थली के रूप में अपनी पहचान विश्व में बना चुका है. लेकिन क्या आपको पता है कि देवप्रयाग में सास और बहू का भी मिलन होता है. आज हम आपको देवप्रयाग के धार्मिक महत्व और उससे जुड़े हुए कुछ रोचक किस्सों के बारे में आपको बताएंगे, जिससे आप देवप्रयाग के धार्मिक महत्व और पौराणिक था के बारे जान पाएंगे.
देवप्रयाग में सास और बहू का मिलन
देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है. जिसके बाद यहां से गंगा का जन्म होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवप्रयाग में सास और बहू का भी मिलन होता है. जी हां यह सच है, स्थानीय लोग अलकनंदा को सास कह कर संबोधित करते हैं जबकि भागीरथी को यहां स्थानीय भाषा में बहू कहा जाता है. देवप्रयाग में इन दोनों नदियों का संगम होकर गंगा के रूप में यह आगे बढ़ती हैं.
देव शर्मा से मिला देवप्रयाग का नाम
देवप्रयाग को लेकर केदारखंड में इसे सभी तीर्थों का राजा बताया गया है. देवप्रयाग के नाम को लेकर यहां कई तरह की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित है कहा जाता है कि सतयुग में देव शर्मा नाम का ब्राह्मण यहां रहता था,जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. देव शर्मा ने तपस्या कर श्रीहरि से आग्रह किया कि आप यहां निवास करें. तब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में आकर यहां बसने का आश्वासन देव शर्मा को दिया. यही नहीं भगवान विष्णु ने देव शर्मा के नाम से जिस जगह को जाने जाने का भी वरदान दिया. अन्य मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब मां गंगा इस धरती पर अवतरित हुई तो उनके साथ 33 करोड़ देवता भी यहां आए और उन्होंने देवप्रयाग को अपना निवास स्थल बनाया. देवों के निवास करने के चलते इस स्थान को देवप्रयाग नाम दिया गया.
पिंड दान का विशेष महत्व
आनंद रामायण में कहा गया है देवप्रयाग पिंडदान करने के लिए सर्वोत्तम स्थान है. भगवान श्रीराम ने श्राद्ध पक्ष में अपने पिता दशरथ का पिंडदान यही किया था. माना जाता है कि भगवान राम की तपस्थली में आज भी पुजारी दशरथ जी को तर्पण करते हैं. शायद यही वजह है कि भागीरथी को पित्र गंगा के नाम से भी जाना जाता है.