भगवान भोलेनाथ का चमत्कारी मंदिर है देवलसारी महादेव मंदिर. उत्तराखंड के टिहरी जिले जाखणीधार क्षेत्र का यह मंदिर केवल अपने आसपास के प्राकर्तिक सौंदर्य केलिए जाना जाता है अपितु यहाँ कुदरत का अनोखा चमत्कार भी देखने को मिलता है.करीबन 200 साल पुराने इस मंदिर की स्थापना की भी अनोखी कहानी है. गाँय के दूध से शुरू हुई इस मंदिर का इतिहास भी आक्रांताओं के हमलो को झेलता हुआ आज भी भक्तों के लिए रमणीय स्थल बना हुआ है.
चमत्कारों से भरा है यह मंदिर
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 100 किलोमीटर का सफर तय कर नई टिहरी महज चारकिलोमीटर की दुरी पर स्थित है देवलसारी का यह अद्भुत मंदिर . मंदिर के बारे में कई चमत्कारिक मान्यताएं है. कहा जाता है कि शिवलिंग पर जलाभिषेक कर किया गया जल कान्हा जाता है किसी को आज तक कुछ पता नहीं है. यही नहीं माना यह भी जाता है की यह दुनिया का पहला ऐसा शिव मंदिर है जंहा पर शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जाती है. दरअसल शिवलिंग की जलेरी को लांघा नहीं जाता है, इसके आलावा यहाँ पर भक्तो के लाये हुएजल से केवल पुजारी ही जलाभिषेक करता है.
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चरवाहे की गाँय ने खोजा थी यह जगह
मंदिर की स्थापना को लेकर कई तरह की मान्यताएं है. माना जाता हैकि किसी चरवाहे की एक गाँय रोजाना अपना दूध झाड़ियों में गिरा देती थी.चरवाहे ने जब इसकी खोजबीन की तो उस झाड़ियों में उसे एक शिवलिंग मिला जिसपर उसकी गाँय रोज दूध गिरा कर शिवलिंग का अभिषेक करती थी. जब इसकी सूचना राजा को दी गई तब वँहा पर एक मंदिर का निर्माण किया गया.