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मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफ़सोस

आर्टिकल/इंटरव्यूमौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफ़सोस

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अमित बिश्नोई
मौत उसकी है, करे जिसका ज़माना अफ़सोस। महमूद रामपुरी के एक शेर की ये पहली पंक्ति देश के मशहूर उद्योगपति और समाजसेवी, मार्गदर्शक रतन नवल टाटा पर बिलकुल सटीक बैठती है जो 10 अक्टूबर शाम चार बजे इस नश्वर संसार को अलविदा अलविदा कहकर हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए, सात अक्टूबर को ही वो ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए थे और 9 अक्टूबर को देर रात उनका निधन हो गया था. उनके निधन की खबर सुनकर पूरा देश ही नहीं दुनिया का भी एक बड़ा हिस्सा शोक में डूब गया. ऐसा लगा जैसे कोई अपना कहीं दूर चला गया हो. कोई कनेक्शन न होते हुए भी एक आदमी ने भी उनसे खुद को कनेक्ट पाया और ये कनेक्शन उसे खून में दौड़ता हुआ लगा, वरना एक आदमी का एक उद्योगपति से क्या सम्बन्ध। उद्योगपति तो एक अलग बिरादरी के रूप में जाना जाता है, शायद ये उस नमक का असर हो जो देश के लगभग हर घर में इस्तेमाल होता “टाटा नमक”. नमक का मतलब ही टाटा होता है और यही वजह है कि हर किसी ने कहा कि हाँ वो रतन टाटा को जानता है, वही न जिनका बनाया हुआ नमक वो खाता है.

आम लोग जानते तो अम्बानी और अडानी के बार में भी हैं मगर वो शायद इसलिए कि दिन में दस बार इन लोगों के नामों का शोर उनके कानों में पड़ता है , कभी टीवी चैनलों पर, कभी सोशल प्लैटफॉर्म्स पर लेकिन उनका ज़िक्र जब भी आता है बुरे रूप में आता है, राजनीतिक रूप में आता है, सरकार को कण्ट्रोल करने वाले उद्योगपतियों के रूप में आता है, सरकार की नज़दीकियों से फायदा उठाने के रूप में आता है, कुल मिलाकर एक बुरी इमेज के रूप में आता है। लेकिन रतन टाटा का नाम इन सब जगहों पर बहुत कम आता है लेकिन जब भी आता है सम्मान के साथ आता है, आदर भाव के साथ आता है. आम तौर पर उद्योगपतिऔर आम आदमी को विपरीत दिशा वाला माना जाता है. एक आम आदमी जो पीड़ित होता है मंहगाई से, चीज़ों के बढ़ते दामों से उसकी कमर टूट रही होती है वहीँ एक उद्योगपति की इमेज एक अत्याचारी के रूप में होती है जो ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए पता नहीं क्या क्या करता है और उसका बोझ आम आदमी सहता है लेकिन कल जब लोगों को रतन टाटा के मरने की खबर मिली तो ऐसा लगा कि नहीं, उद्योगपतियों की जमात में कोई ऐसा भी है जिसने पैसे से ज़्यादा नाम कमाया है. इसी साल जारी हुई देश के सबसे मालदार उद्योगपतियों की सूची में रतन टाटा का नाम टॉप 10 तो क्या टॉप 100 में भी नहीं था, वहां पर अम्बानी-अडानी और उनके जैसे दूसरे बैठे हुए हैं जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है, लेकिन रतन टाटा ने पैसे से ज़्यादा नाम कमाया है तभी तो 100 बिलियन डॉलर नेटवर्थ वाली कंपनी टाटा ग्रुप के प्रमुख रतन टाटा की पर्सनल वेल्थ सिर्फ 7900 करोड़ ही है, भारतीय अमीरों की लिस्ट में उनका स्थान 350वां है.

रतन टाटा के 86 वर्षों के जीवनकाल में उनका सफर आशा और निराशा वाला रहा. बहुत से किस्से, बहुत सी घटनाएं, बहुत सी ऐसी बातें उनके मरने के बाद अब लोगों के सामने आ रही हैं जिनके बारे में आम लोग तो शायद जानते ही नहीं थे, ख़ास लोग भी कम जानते थे क्योंकि उसका खुलासा रतन टाटा ने कभी किया, उन बातों और घटनाओं को वो लोग सामने लाये जो रतन टाटा के साथ उस घटना का हिस्सा थे और उन घटनाओं से ही पता चलता है कि रतन टाटा कोई ऐसे नहीं बन जाता। उनमें से एक एक दो घटनाये यहाँ मैं आपसे शेयर करूंगा जो हो सकता है आपने सुन भी रखी हों। आम तौर पर सभी ये जानते हैं कि रतन नवल टाटा, टाटा फैमिली से आते होंगे लेकिन ये पूरी तरह सच नहीं है. दरअसल टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेद जी टाटा के दो बेटे थे, दोराबजी टाटा और रतन जी टाटा जिनमें रतन जी टाटा की जवानी में ही मौत हो गयी. उनके कोई औलाद नहीं थी क्योंकि शादी के बाद बहुत कम वक्त में उनकी मौत हुई थी, उनकी पत्नी ने दूसरी शादी नहीं की और एक पारसी अनाथालय से एक बच्चे को गोद ले लिया और उसका नाम रखा नवल टाटा। बाद में नवल टाटा की शादी हुई और उनसे दो बच्चे हुए जिसमें से एक रतन नवल टाटा थे, तो रतन टाटा के टाटा फैमिली का हिस्सा बनने की ये कहानी है. ये बात आम लोग शायद नहीं जानते होंगे कि रतन नवल टाटा और उनके भाई जिमी नवल टाटा का टाटा घराने से खून का रिश्ता नहीं है.

रतन टाटा की टाटा संस में इंट्री की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. टाटा फैमिली का होने के बावजूद भी उन्हें अपनी ही ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज में सीधे इंट्री नहीं मिली, उनसे बाकायदा आवेदन लिया गया, रिज्यूमे लिया गया, इंटरव्यू हुआ और उसे क्लियर करने के बाद ही उनकी टाटा ग्रुप में नौकरी लगी. यहाँ पर मामला बड़ा दिलचस्प है. कंपनी में इंट्री के बाद रतन टाटा की शुरुआत काफी निराशा वाली रही, उन्हें अपने पहले दो असाइनमेंट में जिन कंपनियों की ज़िम्मेदारी दी गयी वो अंततः बंद करनी पड़ी और ये किसी के लिए उसके कैरियर की खराब शुरुआत कही जायेगी लेकिन इन दो कंपनियों को दोबार खड़ा करने में रतन टाटा ने जो मेहनत की और जो सोच दिखाई उससे उस समय के कंपनी प्रमुख जे आर डी टाटा बहुत प्रभावित हुए और उन्हें लगा कि इस लड़के में एक्स फैक्टर है जो इस साम्राज्य को सँभालने की क्षमता रखता है और इसके बाद रतन टाटा का सफर आगे बढ़ना शुरू हुआ और दस वर्षों की मेहनत के बाद रतन टाटा को 1991 में टाटा संस का प्रमुख बनाया गया. वहां से शुरू हुआ रतन टाटा का सफर एक मिसाल है कि किस तरह से उन्होंने टाटा को अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड बना दिया। रतन टाटा ने उस अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी को खरीदा जिसे कभी वो अपनी कंपनी बेचने गए थे.

यहाँ पर भी एक दिलचस्प कहानी है. रतन टाटा ने टाटा मोटर्स को खड़ा किया क्योंकि ऑटोमोबाइल में उनकी व्यक्तिगत तौर पर बड़ी दिलचस्पी थी. ये बात 1998 की है, तब टाटा मोटर्स ने इंडिका कार लांच की थी, बड़ा प्रचार हुआ, शोर शराबा हुआ लेकिन बाजार में आते ही रतन टाटा का ये अपना पसंदीदा प्रोडक्ट बुरी तरह फ्लॉप हो गया जिसकी वजह से कंपनी का घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा था, बोर्ड में रतन टाटा के विरोधियों को उन्हें घेरने का मौका मिल गया और नौबत टाटा मोटर्स को बेचने की आ गयी. रतन टाटा को न चाहते हुए भी इस बारे में आगे बढ़ना पड़ा और अमरीका की मशहूर कार कम्पनी फोर्ड के मालिक बिल फोर्ड से बातचीत आगे बढ़ी, रतन टाटा डील को फाइनल करने अमेरिका गए, डील फाइनल हो चुकी थी मगर दस्तखत करने से पहले बिलफोर्ड ने कुछ ऐसा कहा कि रतन टाटा डील कैंसिल करके वापस लौट आये. बाद में पता चला कि बिल फोर्ड ने रतन टाटा से ये कह दिया था कि जिस काम के बारे में आपको को कोई तजुर्बा नहीं उसमें आपने इतना पैसा क्यों लगा दिया. रतन टाटा को यही बात अखर गयी और फिर उन्होंने ठान लिया कि वो ये साबित करके दिखाएंगे कि उन्हें इस काम का भी तजुर्बा है और फिर कुछ ही अरसे में टाटा मोटर कंपनी दुनिया में छा गयी, दिलचस्प बात ये रही कि जब टाटा मोटर्स ऊंचाइयां छू रही थी उसी समय में फोर्ड गहराई में डूब रही थी, दीवालिया हो रही थी और तब रतन टाटा ने बिल फोर्ड को सन्देश भिजवाया कि वो उनकी कंपनी को खरीद सकते हैं लेकिन शर्त ये है कि उन्हें इसके लिए भारत आना होगा। बिल फोर्ड भारत आये और डील फ़ाइनल हुई. एक समय रतन टाटा जिसे अपनी कंपनी बेचने गए था, अब वही अपनी कंपनी बेचने उनके पास आया. ये घटना रतन टाटा के हौसलों और पक्के इरादों को दर्शाती है.

उनके परोपकार की बहुत सी कहानियां है, कर्मचारियों से उनका सीधा कनेक्शन रहता था, उनकी हर मुसीबत में वो उनके साथ खड़े मिलते थे फिर वो चाहे गुंडों से अपनी मिल और कर्मचारियों को बचाने के लिए उनके साथ रहने की बात हो और फिर चाहे अपने मरते हुए कर्मचारी को एयरलिफ्ट करके मुंबई लाने की बात है, कर्मचारियों के प्रति सहृदयता की ऐसी अनेक मिसालें हैं जो पैसा कमाऊ बिजनेसमैनों से उन्हें बिलकुल अलग करती है. रतन टाटा जैसी सोच और विचारों को अगर देश के दूसरे उद्योगपति अपना लें तो अमीरी और गरीबी के बीच बनी चौड़ी खाई काफी हद तक पट सकती। रतन टाटा के बारे में लिखने के लिए बहुत सारी इंक और बहुत सारे पन्ने चाहिए क्योंकि उनका कैनवास इतना बड़ा है कि थोड़े शब्दों में उन्हें समेटा नहीं जा सकता, उनकी परोपकारिता, उनकी दूरदर्शिता, उनकी उद्यमशीलता के बारे में जितना भी लिखा जाय कम है. यहां पर मैं अपनी बात महमूद रामपुरी के उस शेर को पूरा करके ख़त्म करूंगा जिसकी पहली लाइन ऊपर लिखी गयी है:
मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफ़सोस
यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए ||

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