अमित बिश्नोई
समय कब कैसे बदल जाय कहा नहीं जा सकता। इतिहास में ऐसी बहुत सी घटनाएं जहां इंसान से भगवान् बनने की कोशिश करने वालों को जनता ने उसको उसकी असली जगह दिखाई है. ऐसे राजनेताओं और शासकों की एक लम्बी सूची है जब वो लोकप्रियता की सीढ़ियों पर चढ़ते चढ़ते इतने ऊपर पहुँच गए जहाँ से उन्हें नीचे के लोग बहुत छोटे दिखाई देने लगे मगर समय ने करवट बदली और उसी जनता ने जिसने उन्हें अर्श से फर्श पर पहुंचाने में देर नहीं लगाईं। ताज़ा घटना भारत के पडोसी देश बांग्लादेश में आज घटी जहाँ बार बार चुनाव जीतकर बांग्लादेश की सबसे लोकप्रिय नेता बन चुकी शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा. देश के सेना ने उन्हें सिर्फ 45 मिनट दिए ये फैसला लेने के लिए कि या तो जेल या फिर देश छोडो। एक लोकप्रिय नेता से वहां की अवाम के बीच तानाशाह बन चुकी शेख हसीना वाजिद ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर बांग्लादेश से भागना ही बेहतर समझा क्योंकि सिर आँखों पर उन्हें बिठाने वाली जनता उनके शाही आवास तक पहुँच चुकी थी और उनके साथ कुछ भी हो सकता था.
एक लोकप्रिय नेता से बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना कब तानाशाह बन गयी पता ही नहीं चला, उनके आरक्षण कोटा के फैसले के खिलाफ जनता उग्र हो गयी और हसीना उस आंदोलन को कुचलने लगीं, आंदोलनकारियों को देशद्रोही बताने लगीं, आंदोलन के पीछे विपक्ष की साज़िश उन्हें दिखाई देने लगी, इसके बाद उन्हें आंदोलनकारी आतंकी दिखाई देने लगे. आंदोलन कुचलने की उनकी इसी कोशिश में 100 से ज़्यादा आंदोलनकारियों की मौत हो गयी और आरक्षण पर छिड़ा आंदोलन और उग्र होता गया. इतना उग्र कि उसकी चपेट में शेख हसीना का आना यकीनी हो गया, सेना जो पहले उनके साथ खड़ी थी उसे भी उनका साथ छोड़कर अवाम के साथ जाना पड़ा और बांग्लादेश में तख्ता पलट की बात कन्फर्म हो गयी.
बांग्लादेश इस समय एक अभूतपूर्व संकट के मुहाने पर खड़ा है। कुछ ही समय पहले पडोसी श्रीलंका भी कुछ इसी दौर से गुज़रा था, तब वहां भी जनांदोलन हुआ था और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था. कहा जा रहा है कि शेख हसीना बांग्लादेश से सेफ पैसेज की उम्मीद में भागकर भारत आयी हैं जहाँ से संभवतः वो लन्दन चली जाएँगी। लन्दन भगोड़ों की पनाह बनता जा रहा है, भारत के भी कई भगोड़े लन्दन में पनाह लिए हुए हैं. अभी वो भारत में कहाँ है, यकीन से नहीं कहा जा सकता, कई ख़बरें हैं. पहले कहा गया वो अगरतला में हैं, फिर कहा गया वो दिल्ली में हैं. वैसे ये पहला मौका नहीं है कि जब उन्होंने भारत में पनाह ली हो इससे पहले भी 1975 में वो देश छोड़कर भारत की शरण में आई थीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उन्हें सुरक्षा के साथ आश्रय प्रदान किया था। वह लगभग 6 साल भारत में रहने के बाद 1981 में बांग्लादेश वापस लौटी थी।
दरअसल शेख हसीना के लिए हालत तब बिगड़े जब ढाका हाई कोर्ट ने 5 जून 2024 को स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को फिर से लागू करने का आदेश दिया था. इस आदेश के आते ही पूरे देश में आरक्षण को लेकर विद्रोह शुरू हो गया जो दमनकारी कार्रवाइयों के चलते और भड़क गया और जन विद्रोह के रूप में बदलता हुआ तख्तापलट तक पहुँच गया. हसीना को बिलकुल भी इस बात का अंदाजा नहीं था. बांग्लादेश की जनता को नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण बिलकुल मंज़ूर नहीं था, उन्हें लगा उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है और नौकरियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा एक खास वर्ग को दिया जा रहा है. 5 जून 2024 को भड़की आरक्षण विरोध की चिंगारी चंद दिनों में ही ज्वालामुखी बन गयी, जिसके लावे की तपिश शेख हसीना सह न सकीं और बांग्लादेश से फरार हो गयी. बांग्लादेश में सेना ने अब मोर्चा संभाल लिया है और फिलहाल हुकूमत उसी के हाथ में है, आज आंदोलनकारी जब शेख हसीना के आवास में घुसे और वहां से जो तस्वीरें और वीडियो सामने आये वो बिलकुल उसी तरह के नज़ारे पेश कर रहे थे जैसे नज़ारे सद्दाम हुसैन के महल से सामने आये थे, लीबिया के कर्नल गद्दाफी की आरामगाह से सामने आये थे, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के घर से जो दृश्य वायरल हुए थे. जनता का रिएक्शन इन सभी जगहों पर एक जैसा था, एक तानाशाह पर अवाम की जीत का रिएक्शन, एक संतुष्टि। इतिहास अपने आप को दोहराता है और बताता है कि तानाशाही की उम्र लम्बी नहीं होती, जनता जब भड़कती है तो सभी तानाशाहों का गुरूर चकनाचूर हो जाता है जैसा कि शेख हसीना वाजेद के साथ हुआ, फिर भी लोगों पर न जाने क्यों नेता से तानाशाह बनने की सनक सवार हो जाती है।