सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूपी मदरसा अधिनियम की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पिछले आदेश को खारिज कर दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश ने 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को “असंवैधानिक” और धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने वाला घोषित किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मार्च में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड एक्ट, 2004 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह सेकुलरिस्म के सिद्धांतों की खिलाफ़वर्ज़ी करता है।सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में यूपी कानून की वैधता तय होने तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट के फैसले पर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जिस मदरसे की स्थापना खुद उत्तर प्रदेश सरकार ने की हो, उसे असंवैधानिक कैसे कहा जा सकता है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद काफी निराशा हुई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लाखों छात्रों और उनके परिजनों, शिक्षकों और कर्मचारियों को राहत मिली है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी मदरसा बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
बता दें कि मदरसा शिक्षा के लिए मदरसा अधिनियम कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जहां एनसीईआरटी के सेलेबस के अलावा, धार्मिक शिक्षा भी दी जाती है। न्यायालय ने 22 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि धार्मिक शिक्षा देश में कभी भी अभिशाप नहीं रही है, क्योंकि यह सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि हिंदुओं समेत सभी समुदायों के लिए भी उपलब्ध है और देश को धर्मों का, संस्कृतियों का और सभ्यताओं का मिश्रण होना चाहिए।