देश के चुनाव में पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि मतदान होने के बाद निर्वाचन आयोग डाले गए मतों का डाटा लोगों से साझा करने में ज़्यादा देर लगा रहा है. पहले चरण के मतदान का ब्यौरा अपलोड करने में तो उसने 11 दिन लगा दिए थे, जिसके बाद भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने मतों का डाटा देने में देर लगाने पर चुनाव आयोग से सवाल करना शुरू कर दिए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तो सभी सहयोगी दलों को पत्र लिखकर ये अपील की कि सभी दल इस मुद्दे को अपने अपने स्तर से उठायें। कांग्रेस अध्यक्ष का पत्र लिखना निर्वाचन आयोग को पसंद नहीं आया और उसने मल्लिकार्जुन खरगे की आलोचना भी की, बाद में गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम में याचिका डाली और शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। आज इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से इस बारे में एक हफ्ते के अंदर जवाब तलब किया है। ADR ही वो संगठन हैं जिसकी कोशिशों की वजह से ही इलेक्टोरल बांड का खुलासा हुआ और भाजपा और प्रधानमंत्री बुरी तरह घिर गयी.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अपनी याचिका में कहा है कि लोकसभा चुनाव के हर चरण का मतदान पूरा होने के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्रवार मत प्रतिशत के आंकड़े आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच इस मुद्दे पर एडीआर की याचिका पर सुनवाई के लिए शुक्रवार शाम साढ़े छह बजे बैठी। वकील प्रशांत भूषण ने एनजीओ की ओर से मामले का उल्लेख इससे पहले दिन में किया और याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
ADR की याचिका पर सुनवाई के दौरान सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि निर्वाचन आयोग को याचिका पर जवाब देने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए और इसे लोकसभा चुनाव के छठे चरण से एक दिन पहले यानि 24 मई को ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान एक उचित बेंच के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
पिछले हफ्ते ADR ने अपनी 2019 की PIL में एक अंतरिम आवेदन दायर किया था जिसमें उसने इलेक्शन कमीशन को यह निर्देश देने की अपील की गई है कि सभी पोलिंग सेंटर्स के ‘फॉर्म 17 सी भाग-प्रथम (रिकॉर्ड किए गए वोट) की पढ़ने योग्य स्कैन कापियां मतदान के फ़ौरन बाद अपलोड की जाएं।