अमित बिश्नोई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आपराधिक मामलों में कुछ राज्यों (भाजपा शासित) द्वारा किए गए “बुलडोजर न्याय” को अस्वीकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून दोषियों के पारिवारिक पनाहगाहों (घरों) को भी तोड़ने की अनुमति नहीं देता है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया कि किसी के घर को सिर्फ इसलिए कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह किसी मामले में आरोपी है? कानून इसकी अनुमति नहीं देता। कोई व्यक्ति अगर दोषी भी है तब भी ऐसा नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने विध्वंस के मुद्दे पर अखिल भारतीय आधार पर कुछ दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव रखा और मामले की सुनवाई 17 सितंबर को तय की। बहुत दिनों ऐसा लग रहा था कि बुलडोज़र का मामला जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के पास जायेगा और देश की शीर्ष अदालत उसमें हस्तक्षेप करेगी। आखिर वो दिन आ ही गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंद्ध में दायर की गयी 100 याचिकाओं को एक साथ कर दिया, इसमें राजस्थान से वो याचिका भी जिसमें चाकूबाजी के एक आरोपी के उस घर को भी तोड़ दिया जिसमें वो किराये पर रहता था और जिसपर काफी बवाल खड़ा हुआ था कि इसमें उस मकान मालिक का क्या दोष.
दरअसल इस केस से ही ये बात स्पष्ट हो जाती है कि बुलडोज़र कार्रवाई दरअसल म्युनिसिपल कार्रवाई नहीं बल्कि राजनीतिक कार्रवाई है और अपने वोट बैंक में बुलडोज़र न्याय का सन्देश देने के चक्कर में कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि मान लिया जाता है कि आरोपी अगर एक खास समुदाय का है तो उसका घर बुलडोज़ कर दो और इसकी भी जांच नहीं की जाती कि वो घर आरोपी का है भी या नहीं। राजस्थान के मामले में यही हुआ. चूँकि स्कूल में हुए चाकूबाज़ी के मामले ने साम्प्रदायिक रंग ले लिया, दंगों जैसी नौबत आ गयी तो सरकार ने बिना इसकी जांच कराये कि वो घर आरोपी का है या नहीं, अवैध निर्माण बताकर मकान पर बुलडोज़र चलवा दिया, हालाँकि वहां पर अधिकारीयों को सभी लोग समझाते रहे कि ये मकान आरोपी का नहीं है, उसका परिवार यहाँ पर किराये पर रहता है, लेकिन मामला राजनीतिक सन्देश देने का था तो कार्रवाई करनी ही पड़ी, ऐसा ही एक मामला दिल्ली की जहांगीरपूरी का था जहाँ पर अदालत के स्टे आर्डर के बावजूद बुलडोज़र दस्ते ने कार्रवाई की जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति का जूस स्टाल भी था जो म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन से एप्रूव्ड भी था, मगर एक्शन दिखाना था तो दिखाना ही पड़ा.
दरअसल बुलडोज़र न्याय की शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों के खिलाफ बुलडोज़र न्याय का चलन शुरू किया, ये अलग बात है कि इस न्याय का शिकार एक ख़ास समुदाय के अपराधी या अपराध के दोषी ही होते रहे. बहरहाल योगी जी के बुलडोज़र न्याय से भले ही एक ख़ास समुदाय को अन्याय लगता हो लेकिन एक वर्ग विशेष को अच्छा भी लगता है, ये वर्ग योगी जी के इस विशेष न्याय को बहुत पसंद करता है, उनकी ख्याति बुलडोज़र बाबा के रूप में होने लगी. योगी आदित्यनाथ को ये उपाधि काफी पसंद भी आयी और वो अपनी सभाओं (चुनावी) में उसका डंके की चोट पर ज़िक्र भी करने लगे. बुलडोज़र यूपी से निकलकर पूरे देश और फिर विदेश तक भी पहुँच गया. लंदन, कनाडा अमेरिका में अक्सर रैलियों में बुलडोज़र पर योगी आदित्यनाथ के कट आउट लगे हुए देखे जाते हैं.
लोकप्रियता का ये शार्ट कट भाजपा शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी भा गया और वो भी उसे अपनाने लगे और घरों को गिराकर त्वरित न्याय देने लगे, इसमें कुछ मुख्यमंत्री योगी जी से आगे निकलने की कोशिश में घर के साथ आरोपी की कारों को भी बुलडोज़र से रौंदवाने लगे, अब उनसे कोई ये पूछने वाला नहीं कि घर का निर्माण तो अवैध हो सकता है, क्या गाड़ियों का निर्माण भी अवैध था जो उसपर बुलडोज़र कार्रवाई कर दी. आगे निकलने के चक्कर में ही दूसरे का मकान भी बुलडोज़ कर दिया गया. बुलडोज़र को 2017 से पहले बहुत कम लोग जानते थे, जो निर्माण कार्य से जुड़े लोग थे उन्हें ही बुलडोज़र की खूबियों का पता था और वही अपनी साईट पर उसका इस्तेमाल करते थे लेकिन 2017 में योगी जी के यूपी संभालते ही बुलडोज़र को ख्याति मिलनी शुरू हो गयी. उपाधियों का दौर शुरू हो गया. योगी जी को अगर बुलडोज़र बाबा की उपाधि से नवाज़ा गया तो मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान बुलडोज़र मामा बन गए. अब देखना है कि राजस्थान के भजन लाल शर्मा और मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को क्या उपाधि मिलती है. शायद किसी एक को बुलडोज़र ताऊ और दूसरे को बुलडोज़र चाचा पुकारा जा सकता है.
बुलडोज़र कार्रवाई वाले अन्य राज्यों में महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, असम और उत्तराखंड के नाम लिए जा सकते हैं और संयोग से ये सभी भाजपा शासित राज्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी बुलडोज़र का ज़िक्र करने से नहीं चूकते हैं, ये अलग बात है कि उन्होंने सामने वाली पार्टी पर आरोप लगाया कि ये सत्ता में आये तो बुलडोज़र चलवा देंगे और वो भी किस पर?, राम मंदिर पर. उनका ये बयान अभी लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर सपा और कांग्रेस सत्ता में आती हैं तो राम लला फिर से टेंट में चले जायेंगे और ये लोग राम मंदिर पर बुलडोजर चलाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने बुलडोज़र चलवाने में योगी जी की दक्षता को मानते हुए अपनी सरकार वाले मुख्यमंत्रियों को योगी जी से ट्यूशन लेने की सलाह तक दी थी, प्रधानमंत्री ने कहा था कि योगी जी से सीखना चाहिए कि बुलडोजर कहां चलाना है और कहां नहीं और कुछ मुख्यमंत्रियों ने इस मामले में योगी जी से सीख भी हासिल की.
अब सवाल ये उठता है कि बुलडोज़र की कार्रवाई कितनी सही है. क्या ये सही है कि परिवार के किसी सदस्य की गलती की सजा उसके पूरे परिवार को मिले। बाप की सजा उसके बेटे को क्यों, उसकी बेटी को क्यों, उसकी पत्नी को क्यों? सरकार कहती है कि किसी के दोषी होने या आरोपी होने की वजह से बुलडोज़र की कार्रवाई नहीं होती, ये म्युनिसिपल मामला होता है, घर का निर्माण अवैध होने पर हो बुलडोज़र की कार्रवाई की जाती है लेकिन ये कार्रवाई तब ही क्यों की जाति है जब कोई घटना होती है और कोई या बहुत लोग उस घटना के लिए दोषी पाए जाते हैं. घर में अवैध निर्माण हुआ है ये पहले से पता क्यों नहीं होता। घटना के बाद बुलडोज़र कार्रवाई के समय ही ये क्यों पता चलता है कि अवैध निर्माण को तोड़ने की नोटिसें पहले ही दी जा चुकी हैं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है.
बहरहाल इस बात में सौ फ़ीसदी सच्चाई है कि बुलडोज़र न्याय म्युनिसिपल नहीं एक राजनीतिक कार्रवाई होती है और ये हर लिहाज़ से गलत है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र न्याय पर इतनी सख्त टिप्पणी भी की है. उम्मीद है एक कुप्रथा बन रहे बुलडोज़र न्याय पर देश की शीर्ष अदालत ज़रूर लगाम लगाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा निर्देश बनाने को कहा भी है जो बेहद ज़रूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने ये माना भी है कि अगर अवैध निर्माण है तो उसे गिराने का अधिकार सरकार के पास है लेकिन ऐसा सिर्फ अपराध के दोषियों और आरोपियों के साथ होना एक गलत सन्देश है, यहाँ पर नीति और नीयत का अंतर साफ़ नज़र आता है और सुप्रीम कोर्ट इसी अंतर को स्पष्ट करना चाहता है. ये अंतर स्पष्ट होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि नीति यानि कानून के अनुरूप अगर बुलडोज़र की कार्रवाई हो रही है तो उसपर किसी को ऐतराज़ नहीं हो सकता लेकिन अगर कार्रवाई किसी गलत नीयत से हो रही है तो उसपर सबको ऐतराज़ होगा।