अमित बिश्नोई
सत्ता में आने के एक महीने बाद ही NDA में विरोध के सुर फूटने लगे हैं, हालिया दिनों में NDA के घटक दल यहाँ तक कि भाजपा के कुछ नेताओं के ऐसे बयान सामने आये हैं कि मालूम पड़ता है कि NDA के अंदर कोई ज्वालामुखी धधक रहा है जो देर सबेर कभी भी फट सकता है. इन बगावती या फिर विरोध के सुरों को हाल में देश के कई राज्यों में हुए 13 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में आये नतीजों से जोड़कर देखा जा रहा है. उपचनावों में सत्तारूढ़ NDA को बहुत बुरी हार का सामना करना पड़ा, उसे सिर्फ दो सीटें ही मिल पाईं, एक मध्यप्रदेश में और दूसरी हिमाचल में और वो भी कड़ी टक्कर के बाद. दूसरी इंडिया ब्लॉक को 10 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई. इस तरह लोकसभा चुनाव के बाद फौरी तौर पर हुए राजनीतिक लिटमस टेस्ट की अगर बात की जाय तो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी है, दूसरी तरफ देखा जाय तो उत्तराखंड में कांग्रेस ने जो कामयाबी हासिल की है वो भाजपा के लिए एक और घाव माना जा रहा है।
घाव इसलिए कि भाजपा को यहाँ पर जिन दो सीटों पर उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा उसमें बद्रीनाथ की सीट भी शामिल है. हिन्दू धर्म में बद्रीनाथ धाम का क्या महत्त्व है ये सभी को मालूम है और हर हिन्दू धर्मस्थल पर भाजपा अपना पेटेंट मानती है, ऐसे में अयोध्या में मिली हार का ज़ख्म अभी हरा ही था कि उसे बद्रीनाथ के रूप में एक घाव और लग गया. उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और उसे दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. ये हार भाजपा के नेताओं को भी हज़म नहीं हो रही है. उधर बद्रीनाथ सीट पर मिली जीत का कांग्रेस पार्टी जिस तरह अयोध्या में इंडिया ब्लॉक की जीत का ढिंढोरा पीट रही है उससे भाजपा नेता और भी चिढ़े हुए हैं. बद्रीनाथ में मिली जीत से राहुल गाँधी की उस बात को भी बल मिलता है जो उन्होंने संसद में बतौर नेता विपक्ष अपने पहले भाषण में कही थी जिसके सभी अंश कार्रवाई से निकाल दिए गए थे और जिसपर प्रधानमंत्री मोदी को भी टोकाटाकी करने पर मजबूर होना पड़ा था.
उधर उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा की जो हालत हुई उससे पार्टी में हड़बड़ी मची हुई है और अभी यूपी में भी 10 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने वाले हैं और लोकसभा चुनाव में हार से परेशान भाजपा और उसके सहयोगी दलों में खींचतान साफ़ तौर पर नज़र आने लगी है. भाजपा के सहयोगी दल लोकसभा चुनाव में हार के बाद अब खुलकर अपनी नाराज़गी जता रहे हैं. उधर महाराष्ट्र में अभी हाल के विधान परिषद् के चुनावों में महायुति को भले ही नुक्सान नहीं हुआ और किसी तरह अपने उम्मीदवारों की जीत को मैनेज कर लिया मगर गठबंधन और सरकार दोनो पर संकट बरकरार है, सरकार कब गिर जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। महाराष्ट्र में सियासी घटनाक्रम बड़ी तेज़ी से बदल रहे हैं. कहा जा रहा है कि अजीत पवार वालो एनसीपी के कई विधायक घर वापसी को बेताब हैं, यही कहानी शिवसेना शिंदे वाली में भी है, वहां भी घर वापसी की बातें सामने आ रही हैं हालाँकि उद्धव ठाकरे ने साफ़ संकेत दिए हैं कि गद्दारों को किसी भी हालत में वापस नहीं लिया जाएगा। सोमवार को अजीत पवार गुट के छगन भुजबल की शरद पवार से मुलाकात चर्चा का केंद्र रही. कहा जा रहा है कि भुजबल ने अपने पुराने साहब से मिलने के लिए डेढ़ घंटे इंतज़ार किया तब शरद पवार से उनकी मुलाकात हुई।
इधर आज एक नए घटनाक्रम में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जो राजनीतिक बयान आया उससे महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने UBT नेता उद्धव ठाकरे से मुलाकात के बाद कहा कि हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा पाप विशवास घात होता है, विश्वासघात सहने वाला तो असली हिन्दू हो सकता है लेकिन विश्वासघात करने वाला हिन्दू कभी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे के साथ विशवासघात हुआ है, उन्होंने विश्वासघात सहा है, इसलिए उनके साथ विश्वासघात करने वाले अपने आपको हिन्दू कैसे कह सकते हैं. स्वामी ने इसके साथ ही ये कहकर कि जबतक उद्धव ठाकरे दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन जाते तब उनके मन में ये पीड़ा रहेगी कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का उद्धव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का बयान कहीं न कहीं NDA या पीएम मोदी का खुला विरोध माना जा सकता है. स्वामी जी का ये बयान भाजपा के लिए काफी घातक साबित हो सकता है. हालाँकि स्वामी जी के बयान का शिवसेना शिंदे की तरफ से ज़रूर विरोध हुआ है लेकिन अभी तक भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। हिंदुत्व की राजनीती करने वाली भाजपा के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की बातों को ख़ारिज करना आसान काम नहीं है. फिलहाल तो भाजपा के राजनीतिक सितारे गर्दिश में ही नज़र आ रहे हैं.