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Bhopal Gas Kand: भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को नहीं मिलेगा बढ़ा मुआवजा, केंद्र की याचिका खारिज

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया। क्यूरेटिव पिटीशन सरकार ने 1984 के भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने की मांग की थी। गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड से जुड़े मामले में 2010 में ही क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल हुई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया।

पांच सदस्यीय पीठ ने दिया फैसला

जज जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वार इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता। शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ितों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल केंद्र सरकार लंबित दावों को पूरा करने के लिए करे। पीठ ने कहा, ‘‘ हम दो दशकों बाद इस मुद्दे को उठाने के केंद्र सरकार के किसी भी तर्क से संतुष्ट नहीं हैं। हमारा मानना है कि उपचारात्मक याचिकाओं पर विचार नहीं किया जा सकता है।’’ बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं। पीठ ने मामले पर 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।

ये थी केंद्र सरकार की मांग?

केंद्र सरकार ने याचिका में कहा था कि 1989 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना बढ़ना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट हर्जाना बढ़ने को मान जाता है तो इसका लाभ भोपाल के हजारों गैस पीड़ितों को भी मिलेगा।

क्या है पूरा मामला?

मामला यह है कि भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात को यूनियन कार्बाइड (डाउ केमिकल्स) की फैक्ट्री से मिथाइल इसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। जिसको सैकड़ों मौतें हुई थी। हादसे के 39 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एसके कौल की संविधान पीठ ने 1989 में तय किए 725 करोड़ रुपये हर्जाने के अतिरिक्त 675.96 करोड़ रुपये हर्जाना दिए जाने की याचिका पर फैसला दिया है। यह याचिका केंद्र सरकार ने दिसंबर 2010 में लगाई थी और फैसला 12 साल बाद आया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में डाउ केमिकल्स ने साफ किया था कि वह एक रुपया भी और देने को तैयार नहीं है।

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