राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश में बढ़ते मंदिर-मस्जिद विवादों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए उन लोगों की भी कड़ी आलोचना की जो इस तरह के विवादों को भड़काकर खुद को हिंदुओं के नेता के रूप में खुद को कट्टर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
पुणे में दिए गए व्याख्यान देते हुए संघ प्रमुख ने समावेशी समाज का आह्वान किया और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे अन्य स्थानों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर बहुसंख्यक समुदाय के नेता बन सकते हैं लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है। मोहन भागवत ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया क्योंकि यह सभी हिंदुओं की आस्था का मामला था। उन्होंने यहां तक कहा कि देश में हर दिन एक नया मामला/विवाद सामने आ रहा है और सवाल किया कि इसे क्यों होने दिया जा रहा है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि यह जारी नहीं रह सकता और उन्होंने कहा कि भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम साथ-साथ रह सकते हैं । हाल के महीनों में, मस्जिदों के सर्वेक्षण की मांग करते हुए विभिन्न अदालतों में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनका आधार यह दावा है कि वे प्राचीन मंदिरों पर बनाई गई थीं। हालांकि, भागवत ने अपने व्याख्यान के दौरान इनमें से किसी भी चल रहे मामले का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आए।
भागवत ने जोर देकर कहा कि देश अब संविधान के अनुसार चलता है, जिसमें लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं। सरसंघ चालक ने कहा कि कट्टर मुग़ल शासक औरंगजेब की हुकूमत के दौरान इसी तरह की कट्टरता थी, वहीँ मुग़ल वंशज बहादुर शाह जफर के समय में गोहत्या पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि उस समय अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को देकर विवाद को समाप्त करने पर आपस सहमति बनी थी लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने ऐसा होने नहीं दिया और दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी। तब से ‘अलगाववाद’ की यह भावना अस्तित्व में आई और इसी के चलते पाकिस्तान अस्तित्व में आया।