देहरादून। पहाड़ों की रानी मसूरी को आप उसकी प्राकृतिक सौंदर्य और माल रोड की चहल पहल के लिए जानते होंगे. लेकिन मसूरी अपने आप में आध्यत्मिक और ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए है. मसूरी की आध्यत्मिक पहचान को दर्शाता भगवान् कृष्ण के बड़े भाई बलराम का विश्व का एकमात्र मंदिर है. जिन्हे यंहा भगवान् भद्राज के नाम से पूजा जाता है. यह मन्दिर केवल अपने धार्मिक मान्यताओं को लेकर प्रसिद्ध है अपितु ट्रैकिंग के चाहने वालो के लिए यह पहली पसंद होती है.
Read also: Facts About Mussoorie: पहाड़ो की रानी मसूरी की खूबसूरती के बीच है एक डरावना सच
पशुपालको के देवता भगवान् भद्राज
मसूरी से महज 15 किलोमीटर दूर दुधली भद्राज पहाड़ी पर स्थित भगवान कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का यह एकमात्र मंदिर है जंहा उन्हें भगवान् भद्राज के रूप में पूजा जाता है. भगवान भद्राज को पछवादून और जौनसार क्षेत्र के पशुपालकों का देवता माना गया है. इसके पीछे मान्यता है कि द्वापर युग में जब भगवान बलराम ऋषि भेष में इस क्षेत्र से निकल रहे थे तब उस समय इस क्षेत्र में पशुओं की भयानक बीमारी फैली हुई थी. मुनि को अपने क्षेत्र से निकलता देखकर लोगों ने उनसे अपनी समस्या का निवारण करने की प्रार्थना की. तब बलराम ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए पशुओं को ठीक कर दिया. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने उनसे उनके साथ गांव में ही रहने की विनती की. जिसपर भगवान् बलराम कुछ समय तक गांव वालों के साथ रहे. भद्राज मंदिर में हर साल 16 और 17 अगस्त बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. यँहा आने वाले भक्त भगवान भद्राज को दूध,दही,मक्खन,और रोट का प्रसाद चढ़ाते है.
नंन्दू मेहर ने खोजा था भगवान् भद्राज को
लोक कथा के आनुसार कलयुग के शुरूआत में नंन्दू मेहर नाम के व्यक्ति को ही भगवान् भद्राज की मूर्ति मिली थी. नंदू जगल को जंगल में खुदाई करते समय यह मूर्ति मिली थी. मूर्ति मिलते ही आकाश वाणी हुई कि “हे पुरूष मेरी इस मूर्ति को यहां के सबसे उच्चे स्थान पर रखना” जिसके बाद नंदू मूर्ति को लेकर सबसे ऊंची जगह पर ले जाने लगा कुछ देर बाद जब वह थक गया और मूर्ति को वहीं पर रखकर पानी ढूंढ़ने लगा तो अचानक आवाज आई की इस स्थान को खोदकर देखों फिर उसने उस जगह खोदा तो वहां पानी निकल आया तब से लेकर आज तक वहाँ पानी लगातार निकल रहा है. यही जगह बाद में मटोगी गांव के नाम से जानी जाने लगी. बताया जाता है कि नंदू ने पहाड़ी की चोटी पर मूर्ति को रख दिया.
Read also: Tourism In uttarakhand: उत्तराखंड में पर्यटकों का नया डेस्टिनेशन टिहरी झील,1800 करोड की मिलेगी मदद
उल्टे में होती है नंन्दू मेहर की पूजा
जब नंन्दू मेंहर इस स्थान से जाने लगा तो भगवान भद्राज ने उसे इसी स्थान पर रहने को कहा भगवान उसे अपने पास में नहीं रख सकतें थे लेकिन एक कमरे के कोने में उल्टी दिशा में भगवान ने उसे स्थान दिया और आज भी नंन्दू मेहर की पूजा उल्टे में ही की जाती है.