अमित बिश्नोई
अब ये बात लगभग साफ़ हो गयी है कि महाराष्ट्र के चुनाव में MVA गठबंधन के साथ ही एक गठबंधन और होना है और वो होगा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच. कांग्रेस ने भले ही यूपी विधानसभा के उपचुनाव से अपने आपको अलग कर लिया हो और राहुल गाँधी ने भले ही अखिलेश के लिए मैदान पूरी तरह से क्लियर कर दिया हो मगर अखिलेश यादव महाराष्ट्र में हरियाणा जैसी क़ुरबानी नहीं देने वाले। हरियाणा और महाराष्ट्र को लेकर समाजवादी पार्टी का नजरिया अलग है, हरियाणा में जहाँ अखिलेश सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ना चाह रहे थे कि सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनने में कुछ मदद मिल सके लेकिन महाराष्ट्र में सपा का सिर्फ यही एकमात्र मकसद नहीं है. महाराष्ट्र में सपा की पहचान है, दो विधायक भी हैं, इसलिए यूपी के बदले अखिलेश महाराष्ट्र नहीं छोड़ने वाले।
ये बात राहुल गाँधी को भी अच्छी तरह मालूम है कि यूपी में उपचुनाव के मैदान से हटने के बावजूद भी सपा को एडजस्ट करना ही होगा, अगर ऐसा नहीं होगा तो महाराष्ट्र में नुक्सान बड़ा हो सकता है. ये बात भी साफ़ है कि MVA के अंदर समाजवादी पार्टी को जगह नहीं मिलने वाली, मतलब शिवसेना यूबीटी और एनसीपी सपा को कम से कम अपने हिस्से से तो कोई सीट देने वाले नहीं, शिवसेना यूबीटी के बारे में तो अखिलेश भी नहीं सोच रहे होंगे और एनसीपी सपा जिन इलाकों में मज़बूत है वहां सपा के लिए कोई मौका नहीं है. सपा के लिए महाराष्ट्र में जो मौका है वो मुंबई में और उसके आसपास है जहाँ पर कांग्रेस और शिवसेना यूबीटी में सीटों पर सहमति बनाने के लिए रस्साकशी चल रही है. इन दोनों पार्टियों के बीच रस्साकशी एक दो दिन में ख़त्म होने के आसार हैं, उसके बाद ही पता चल पायेगा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में महाराष्ट्र के लिए क्या चल रहा है.
फ़िलहाल तो कांग्रेस पार्टी शिवसेना यूबीटी से ही जूझ रही है. बताया जा रहा है कि 210 सीटों पर MVA में सहमति बन चुकी है, बची हुई सीटों पर खींचतान है, कांग्रेस पार्टी ने अब इस खींचतान को ख़त्म करने के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोराट को लगाया है क्योंकि शिवसेना यूबीटी ने साफ़ कर दिया है कि सीट सहमति पर बनी कमेटी में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले से कोई बात नहीं होगी क्योंकि नाना पटोले जानबूझकर मामले को खींचने की कोशिश कर रहे हैं, कमेटी में शिवसेना के सदस्य पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने साफ़ कर दिया है कि नाना पटोले से अब कोई बात नहीं होगी।
शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस की इस खींचतान को लेकर भाजपा इसे हवा देने की कोशिश कर रही है. पिछले दो दिनों से भाजपा आईटी सेल और गोदी कही जाने वाली मीडिया में खबरे चल रही हैं कि उद्धव की अपने पुराने साथी भाजपा के साथ फिर से वापसी होने जा रही है. ये खबर भी फैली कि अमित शाह और संजय राउत के बीच बातचीत हुई है. संजय राउत से जब इस खबर पर जवाब माँगा गया तो पता चला कि ये सब भाजपा द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें है जो वोटर में ये भ्रम पैदा करना चाहती है कि MVA में सबकुछ ठीक नहीं है इसलिए इस गठबंधन को वोट देना मतलब अपने वोट को बर्बाद करना है. इसके अलावा राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि उद्धव और भाजपा के नज़दीक आने की बातों को हवा देकर भाजपा शिवसेना शिंदे को भी मेसेज देना चाहती है कि उसके पास शिवसेना का विकल्प मौजूद है, पुरानी शिवसेना की वापसी हो सकती है इसलिए शिंदे को ज़रुरत से ज़्यादा पंख नहीं फड़फड़ाना चाहिए। अमित शाह पिछले दिनों महायुति में क़ुरबानी की बात कई बार कह चुके हैं और ये भी कह चुके हैं कि अब बारी दूसरों की है यानि मुख्यमंत्री इसबार भाजपा का होना चाहिए। शिंदे के लिए यह बात चिंता बढ़ाने वाली है.
मुख्यमंत्री बनने की सबसे बड़ी चाहत तो चाचा शरद पवार से रिश्ता तोड़ने वाले अजीत पवार की है जो तीन बार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं और कह रहे हैं कि अब तो उनका भी प्रोमोशन होना चाहिए। लेकिन लगता नहीं कि हाल फिलहाल उनका ये सपना पूरा होने वाला है क्योंकि गठबंधन में उन्हें सिर्फ 53 सीटें मिली हैं और शिवसेना शिंदे को 75, बाकी पर भाजपा ने कब्ज़ा कर लिया है ऐसे में अजीत पवार के पास नंबर लाने की समस्या होगी। यही हाल शिवसेना शिंदे का होगा, देखने वाली बात ये होगी कि उसकी जीत का स्ट्राइक रेट कितना होगा, शिवसेना गुटों में आमने सामने की लड़ाई में बाज़ी कौन मारेगा। लोकसभा के चुनावों के नतीजों को अगर देखें तो ये स्पष्ट है कि महायुति में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली पार्टी शिंदे की ही थी. लेकिन मोदी-शाह की तरफ जो संकेत आ रहे हैं उनसे स्पष्ट होता है कि शिंदे का सीएम बनना काफी मुश्किल है. बहरहाल ये तो नतीजों के बाद की बात है फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि महायुति हो या फिर महाविकास अघाड़ी, अखाडा दोनों जगह पर खुदा हुआ है. ये अलग बात है कि MVA के लिए बुरी ख़बरों को हाईलाइट किया जाता है वहीँ महायुति की बुरी ख़बरों को दबाया जाता है.