भारत में गेहूं और चावल सबसे अधिक खाए जाने वाला अनाज है। अभी तक आपने सफेद, लाल, भूरे चावलों के बारे में ही सुना होगा। लेकिन भारत में हरे रंग का चावल भी एक पाया जाता है। 50 साल में एक बार पैदा होने वाले इस चावल को बांस का चावल या बम्बू राइस कहते हैं। इसे मुलयारी भी कहते हैं। ये चावल बेहद पौष्टिक और कई बीमारियों को दूर भगाता है। आयुर्वेद में भी इस चावल को कफ और पित्त जैसे दोषों को दूर करने के बारे में बताया गया है।
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मरते हुए बांस का होता है बीज
हरे रंग का चावल, मुलयारी या बांस का चावल दरअसल मरते हुए बांस का बीज होता है। यह आदिवासी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह भी माना जाता है कि इन क्षेत्रों में यह कमाई के मुख्य स्रोत है। बांस, जब अपने अंतिम समय में आता है तो उसके झाड में अपने आप ही फूल आने लगते हैं। इन्हीं फूलों का बीज मुलयारी होता है। इन्हें निकालने के लिए सबसे पहले फूलों को पूरी तरह मिट्टी से लपेट कर अच्छी तरह ढक दिया जाता है। मिट्टी जब पूरी तरह सूख जाती है तब इसमें से चावल को निकाला जाता है। अंतिम समय में बांस पर फूल लगने लगते हैं। जो इस बात का सूचक है, कि अब ये खत्म होने वाला है। फ़िर उसमें से चावल निकालने की तैयारी की जाती है।
होता है पौष्टिक गुणों की खान
बांस का चावल पौष्टिक गुणों की खान है माना जाता है, कि यह शुगर कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों में काफी फायदेमंद साबित होता है । इसके अलावा पुरुषों में इनफर्टिलिटी को खत्म करने में भी यह सहायक माना जाता है। त्रिपुरा, वायनाड जैसे इलाकों में कबिलाई लोग इसका बहु प्रयोग करते हैं।अधिकतर इसका प्रयोग खिचड़ी बनाने में किया जाता है। जोड़ों के दर्द, कमरदर्द को दूर करने में भी ये मददगार साबित होता है।
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प्रोटीन का खजाना
हरे रंग के चावल को प्रोटीन का भी मुख्य स्रोत माना गया है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक होती है। बांस के रंग जैसा होने की वजह से इसे हरे रंग का चावल भी कहा जाता है। वहीं इसमें फैट वैल्यू शून्य होती है। ये चावल 100 साल में सिर्फ़ दो बार ही मिलता है इसलिए सामान्य रूप से ये बहुत कम उपलब्ध है। माना जा रहा है कि आने वाले 5 साल में देश में इसकी मांग काफी बढ़ सकती है। हालांकि अभी भी ऑनलाइन मार्केट स्टोर्स में ये 120 से 150 रुपये तक कि कीमत में उपलब्ध है।