उत्तर प्रदेश के बहराइच में सांप्रदायिक झड़प के बाद ध्वस्तीकरण नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज योगी आदित्यनाथ सरकार को बुलडोजर चलाने की किसी भी कार्रवाई के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर राज्य सरकार अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करने का जोखिम उठाना चाहती है तो यह उसकी “पसंद” है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि ‘बुलडोजर न्याय’ मामले में उसके आदेशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर ध्वस्तीकरण का सामना कर रही संरचनाएं अवैध हैं तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कल अगली सुनवाई से पहले कोई कार्रवाई नहीं करने को कहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने पीठ को बताया कि स्थानीय अधिकारियों ने 13 अक्टूबर की हिंसा के बाद ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किए थे – इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी ।
सीयू सिंह ने कहा कि आवेदक नंबर 1 के पिता और भाइयों ने आत्मसमर्पण कर दिया है. कथित तौर पर 17 अक्टूबर को नोटिस जारी किए गए लेकिन 18 की शाम को चिपकाए गए, हमने रविवार को सुनवाई की मांग की लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ लोगों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विध्वंस नोटिसों पर जवाब दाखिल करने की समय सीमा 15 दिन तक बढ़ा दी थी और राज्य के अधिकारियों को जवाबों पर विचार करने के बाद निर्णय लेने का निर्देश दिया था।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अदालत को आश्वासन दिया कि कल तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। न्यायमूर्ति गवई ने आज कहा, “यदि वे (यूपी के अधिकारी) हमारे आदेश का उल्लंघन करने का जोखिम उठाना चाहते हैं, तो यह उनकी मर्जी है।” न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि हाईकोर्ट ने विध्वंस नोटिसों पर जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया था। हालांकि, श्री सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को कोई सुरक्षा नहीं दी गई है। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ याचिकाओं की एक श्रृंखला पर सुनवाई कर रहा है.