-फरीद वारसी
घोर अनिश्चिताओं व नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष अपनी हाजरी लगाने के लिए आखिरकार दिल्ली की उड़ान भरी। वहीं इससे पूर्व उनके और भाजपा के दिल्ली दरबार के बीच जिस तरह से तनातनी का महौल चरमसीमा पर था, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि योगी के जन्मदिन पर मोदी, शाह और नड्डा तक ने उन्हें बधाई या शुभकामनाएं तक नहीं दी थी और ऐसे में संघ बिगड़ी बात को बनाने के लिए पर्दंे पीछे और आगे दोनों ओर सक्रिय हुआ। संघ चाहता था कि दोनों के बीच संवाद हो ताकि बीच का रास्ता खुले। सो योगी दिल्ली पहुंचे और क्रमवार शाह, मोदी और नड्डा से मिले। इनसे मुलाकातों के बाद योगी ने ट्वीट कर लिखा कि उन्हें सबसे मार्गदर्शन मिला। जिसके लिए वे अपने सभी नेताओं का आभार व्यक्त करते हैं। अपने ट्वीट में योगी ने जिन शब्दों को इस्तेमाल किया, तो कहा जाता है कि वे ऐसे अल्फाजों का प्रयोग करने के लिए नहीं जाने जाते हैं।
बहरहाल, पार्टी के शिखर नेतृत्व से योगी को मिले मार्गदर्शन की जहां तक बात है तो उसके मायने काफी गहरे हैं। गोदी मीडिया का कुछ हिस्सा अब योगी के शरणागत हो गया है जो उनकी इमेज को बनाने का काम बहुत दिनों से कर रहा है। ऐसी मीडिया ने यह खबर प्रचारित और प्रसारित की कि योगी दिल्ली से मजबूत होकर लौटे हैं। जबकि योगी दिल्ली से भाजपा नेतृत्व की महज कठपुतली बनकर लौटें हैं। यहां यह बताते चले कि संघ की बात को मानते हुए भाजपा आलाकमान ने भले ही योगी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात मान ली हो लेकिन कही शर्तो के साथ, जिन्हें योगी पर थोपा गया। जैसे मोदी के नाम पर कोई समझौता नहीं होगा। सूबे के चुनाव की तमाम रणनीति बनाने का काम अमितशाह ही करेंगे। जिसके लिए अमितशाह पहले से ही सक्रिय हो गए हैं। टिकट बंटवारे की बात हो या सहयोगियों से गठबंधन की बात सब कुछ दिल्ली में ही तय होगा। माना जा रहा है कि ऐसा कर भाजपा आलाकमान ने अपने दोनों हाथों में लड्डू रखने का काम किया है। अगर चुनाव जीते तो मोदी-शाह को श्रेय दिया जाएगा। अगर हारे तो हार का ठीकरा योगी के सर यह कह कर फोड़ा जाएगा कि चुनाव तो उनके ही नेतृत्व में लड़े गए थे।
अब बात योगी को मिले मार्गदर्शन की, सच तो यह है जो उन्हें दिल्ली में पार्टी नेतृत्व से जो दिशा निर्देश मिले हैं उसे शब्दों की बाजागरी कर मार्गदर्शन में परिवर्तित कर दिया गया। उन्हें निर्देश दिया गया है कि वे अपनी कार्यशैली में बदलाव लाए। पार्टी विधायकों से लेकर सहयोगी दलों से अपनी नाराजगी को दूर करें, और सबसे बड़ी बात यह कि संगठन व अपनी सरकार के मत्रिमंडल विस्तार में भाजपा नेतृत्व की भावनाओं का खास ख्याल रखेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि मोदी के करीबी पूर्व नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को प्रदेश मत्रिमंडल में शामिल होने की संभावना बरकरार है। भले ही संघ की मर्जी न हो तो तब भी। विदित हो कि जिन अरविंद शर्मा को योगी पसंद नहीं करते हैं, सूत्रों का कहना है कि उन्होंने ही निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की मुलाकात अमितशाह से कराई। कहने का मतलब यह है कि चुनाव के मद्देनजर अरविंद शर्मा लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सक्रिय हैं। माना जा रहा है योगी सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार जुलाई के दूसरे पखवारे में हो सकता है। तब तक विधानपरिषद के साथ-साथ जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव भी निपट जाएंगे। चर्चा है कि कांग्रेस से पलायन कर भाजपा में आए जितिन प्रसाद को मत्रिमंडल में जगह देकर योगी के ठाकुरवाद से प्रदेश का जो ब्राहम्ण वर्ग नाराज हुआ है, उसे साधने का काम किया जाएगा। अपना दल को भी एक और मंत्रिपद दिया जा सकता है, जो अनुप्रिया के पति आशीष पटेल हो सकते हैं। ओबीसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए केशव प्रसाद मौर्या को संगठन की कमान सौपी जाएगी, लेकिन उनका उपमुख्यमंत्री का पद बना रहेगा। ऐसे में स्वतंत्र देव सिंह को योगी सरकार में वापस लिया जा सकता है। ताकि कुर्मी छिटकने न पाएं।
भाजपा की अगर संभावित चुनावी रणनीति की बात करें जो काफी हद तक अमितशाह बना चुके हैं जो कुछ रह गई है उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। चर्चाओं में कहा जा रहा है कि सिर्फ कोरोना काल की विफलता ही नहीं, बल्कि दूसरे अन्य मुद्दों के कारण योगी-मोदी सरकार से आमलोगों में नाराजगी बहुत है। खासतौर से भाजपा के कोर वोटरों में। उसे दूर करने के लिए संघ और भाजपा को अपने चिरपरिचित चुनावी ब्रांड हिन्दुत्व का मुद्दा अब पर्याप्त नहीं लग रहा है और इसी लिए सामाजिक न्याय की बात को केंद्रित कर चुनावी बिसात बिछाई जाएगी। जबकि पिछले चार साल से अधिक समय तक की योगी सरकार में सामाजिक न्याय की कोई बात नहीं हुई। उल्टे अन्याय किए जाने का ही प्रदर्शन हुआ। बहरहाल सामाजिक न्याय को साधने के लिए पिछड़ी जातियों वाले दलों के साथ गठबंधन करने की रणनीति बनी है। निषाद पार्टी और अपना दल एस तो भाजपा के साथ हैं। लेकिन पिछला चुनाव मिल कर लड़े और बाद में भाजपा गठबंधन से अलग हुए ओमप्रकाश राजभर को भी साधने का काम अमितशाह ने शुरू कर दिया है। जो बलिया से बाराबंकी तक राजभर के वोट पर पकड़ रखते हैं। राजभर जिस हद तक योगी से नाराज हैं, ऐसे में उनके वापस गठबंधन में जाने की संभावना कम हैं। चर्चा तो यहां तक है कि मायावती के साथ चुनावी गठबंधन करने या चुनाव बाद बसपा को गठबंधन में शामिल करने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि यूपी फतह के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपना रोडमैप तैयार कर लिया है लेकिन इसमें उसे सफलता कितनी मिलेगी यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। पर इतनी चर्चा जरूर है कि संघ का योगी प्रेम कहीं भाजपा की 2024 की संभावनाओं पर पानी न फेर दे। क्योंकि बंगाल चुनाव को लेकर की भी बड़ी-बड़ी बातें कही गई थीं वहां भी मोदी ही चेहरा थे और अमितशाह प्रमुख चुनावी रणनीतिकार, लेकिन परिणाम क्या रहे इसे भाजपा लंबे समय तक नहीं भूल सकती। फिर पंचायत चुनाव में पार्टी की हार और सपा के हक में बन रहे सियासी माहौल ने भाजपा को बेचैन कर दिया है।
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