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रालोद का मिला साथ तो यूपी में मजबूत हुई सपा

आर्टिकल/इंटरव्यूरालोद का मिला साथ तो यूपी में मजबूत हुई सपा

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रालोद का मिला साथ तो यूपी में मजबूत हुई सपा

  • वेस्ट यूपी में लहरा रहा है रालोद का परचम
  • गठबंधन करने से समाजवादी पार्टी को मिलेगा लाभ

सुनील शर्मा

2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिये राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है। रणनीतिक दुर्गों को दुरस्त करने के साथ विपक्ष पर हमले भी शुरू हो गये हैं। नये समीकरण बनना और पुरानों से किनारा करने का सिलसिला भी जारी है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जाट-मुस्लिम को एकजुट कर रालोद अपना परचम लहरा कर सबसे मजबूत स्थिति में है। ऐसे में यूपी विधानसभा चुनाव में रालोद के साथ गठबंधन करना सपा को निश्चित ही लाभ पहुंचायेगा। अभी तक संभावना इसी बात की है कि आने वाला विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी, रालोद के साथ मिलकर लड़ने जा रही है। रालोद के साथ सपा का चुनावी गठबंधन अभी तक सत्ता सिंहासन हासिल करने का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। संभावना इस बात की है कि यूपी में राजनीतिक जमीन तलाशते कई अन्य दल भी इसी गठबंधन को अपना समर्थन देकर इसे और मजबूत स्थिति में ला देंगे। वहीं रालोद और सपा के गठबंधन की संभावनाओं ने योगी सरकार की नींद उड़ा रखी है। किसान, दलित और मुस्लिम की नाराजगी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा चुकी है। ऐसे में रालोद-सपा के संभावित गठबंधन ने प्रदेश सरकार के समक्ष कड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन ने रालोद को संजीवनी दी और वह अपना खोया जनाधार पाने में कामयाब रही। जाट-मुस्लिम एकता के सहारे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जीत हासिल करने वाली रालोद अब वेस्ट यूपी में सबसे मजबूत पार्टी मानी जा रही है। वहीं चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद जाट समुदाय की संवेदनाएं भी रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ हैं। वहीं बात करें सपा-रालोद को समर्थन देने वाली आजाद समाज पार्टी की तो अभी इस दल का कोई मजबूत राजनीतिक आधार नहीं है। मगर बसपा से नाराज दलित वोटर अब आजाद समाज पार्टी से जुड़ गये हैं। आजाद समाज पार्टी के मुखिया चन्द्रशेखर आजाद रावण लगातार आंदोलन कर भाजपा को दलित विरोध साबित करने में जुटे हैं। ऐसे में देखना होगा कि क्या वह बसपा के वोटबैंक को अपनी ओर खींचने में काययाब हो पाते हैं। लेकिन पूर्व में सपा-रालोद के साथ गठबंधन कर चुकी बसपा इस बार मिलकर चुनाव लड़ने के मूड में दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में आजाद समाज पार्टी का विकल्प गठबंधन को लाभ पहुंचा सकता है।

वहीं समाजवादी पार्टी ने भी अपना बिखरा जनाधार एकजुट करने के लिये काफी प्रयास किये जिसमें उसको सफलता भी हासिल हुई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव ने अपने मतदाताओं को फिर से अपने पाले में वापस लाने का कार्य बखूबी किया है। पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाली समाजवादी पार्टी एक बार फिर कमर कस के चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। सपा और रालोद पहले भी गठबंधन कर चुनाव लड़ चुके हैं। उस समय उनको बसपा का समर्थन भी मिला था जो इस बार उनके साथ नहीं होगा। लेकिन उसकी भरपाई आजाद समाज पार्टी कर सकती है जो दलितों की नयी पार्टी बनकर उभरी है।

इस गठबंधन से सबसे बड़ा लाभ समाजवादी पार्टी को होता दिख रहा है। क्योंकि अभी तक किसी भी अन्य दल ने अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा जाहिर नहीं की है। ऐसे में गठबंधन में सीएम चेहरा संभवत अखिलेश यादव ही होेंगे और विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा। इस गठबंधन की परिकल्पना कुछ इस प्रकार हो सकती है कि वेस्ट यूपी में जाट-मुस्लिम मतदाताओं को साध कर रालोद प्रत्याशी जीत हासिल करें। वहीं पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी हमेशा मजबूत स्थिति में रही है तो वह उधर अपने प्रत्याशियों को मजबूती से चुनाव लड़ाने में कामयाब हो सकती है। वहीं आजाद समाज पार्टी के जरिये दलित मतदाताओं का समर्थन भी गठबंधन को हासिल हो सकता है।

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वहीं बात करें प्रदेश में सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी की तो फिलहाल संगठन के दिन कुछ अच्छे नहीं चल रहे। कोरोना महामारी पर नियंत्रण को लेकर सरकार पर सवाल उठते रहे हैं। वहीं पार्टी की दलित-मुस्लिम विरोधी छवि भी उसके लिये नुकसानदेह साबित हो रही है। यदि सपा-रालोद और आजाद समाज पार्टी का गठबंधन चुनावी मैदान में सामने आया तो भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ सकता है। हालिया दिनों में आरएसएस की बैठकें, सीएम योगी का दिल्ली के चक्कर काटना यह दर्शा रहा है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के लिये सबकुछ सही नहीं है। इस बार प्रदेश के चुनाव मेें मोदी लहर भी शायद काम न आये। भविष्य की बात न करें तो अभी तक तो सपा के नेतृत्व में बनने जा रहे गठबंधन ने योगी सरकार को परेशानी में डाला हुआ है।

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