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The Kashmir Files Controversy: सवालों से कब तक भागोगे अग्निहोत्री जी

आर्टिकल/इंटरव्यूThe Kashmir Files Controversy: सवालों से कब तक भागोगे अग्निहोत्री जी

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The Kashmir Files Controversy: सवालों से कब तक भागोगे अग्निहोत्री जी

बिजनेस बाइट्स

विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) अब एक फिल्म नहीं एक मूवमेंट बन चुकी है. एक ऐसा मूवमेंट जिसपर जाने या अनजाने राष्ट्रवाद का मुलम्मा चढ़ गया है या चढ़ा दिया गया है. फिल्म में 1989 और 90 के दौरान कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार को इस ढंग से दर्शाया गया है कि फिल्म देखने वाला हर व्यक्ति भावुक ही नहीं होता बल्कि उसका खून खौलता है और यकीनन यह खून एक खास समुदाय के लोगों के खिलाफ ही खौलता है. फिल्म एक ब्लॉक बस्टर हिट साबित हुई है, लोग बड़ी संख्या में फिल्म देखने थियेटर पहुँच रहे हैं, स्क्रीन्स की और शोज़ की संख्या भी बढ़ा दी गयी हैं, प्रमोशन का दौर भी चल रहा है, और उसके साथ विवाद भी. बात पूरे सच और अधूरे सच की हो रही है और यही विवाद की असली जड़ है.

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पिछले दिनों टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की मौतों की संख्या को लेकर छपे एक ग्राफ में जो आंकड़े दिए वह बड़े विरोधाभासी हैं , फिल्म की टीम, सरकार, संघ और स्वयं कश्मीरी पंडितों द्वारा दी गयी मौतों की संख्या में ज़मीन आसमान का अंतर है. और इतना बड़ा अंतर क्यों है इसका जवाब न फिल्मकार के पास है और न फिल्म के कलाकारों के पास. 20 मार्च को लखनऊ में मौजूद फिल्म की टीम से इसी अंतर पर जब “बिजनेस बाइट्स” ने सवाल पूछा तो बवाल मच गया. सवाल का जवाब देने के बजाय नसीहतें दी जाने लगीं, मीडिया पर ऊँगली उठाई जाने लगी. सवाल के जवाब में तर्क दिया कि बेकार की बहस न कीजिये, जाकर फिल्म देखिये (जो आपका असली उद्देश्य है)। टीम ने कहा मेरे पास 42000 हज़ार वीडियोज़ मौजूद हैं.

यह आंकड़ा भी मौतों के आंकड़ों की तरह विवादित है. टीम दावा करती 700 पीड़ितों से मिलने का और उसके पास इतनी बड़ी संख्या में वीडियोज़ की मौजूदगी। सवाल उठता है कि क्या यह भी जुमला है जो पत्रकारों के सवालरूपी पथराव से बचने के लिए बोल दिया गया कि कुछ भी बोलकर पीछा छुड़ाव। यह 42 हज़ार वीडियोज़ किस समय के हैं, अगर नरसंहार के समय के हैं तो उस समय तो देश में स्मार्टफोन भी नहीं आया था, डिजिटल कैमरा तो दूर की बात. क्या यह वीडियोज़ कश्मीरी पंडितों ने रिफ्यूजी कैम्पों से भेजे। इन सब सवालों का जवाब दिए बिना प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर भाग जाना दर्शाता है कि आपके पास ऐसे सवालों का जवाब नहीं है. फिल्म देखने वालों को मानवतावादी और न देखने वालों या आलोचकों को आतंकियों का समर्थक बताकर फिल्म के निर्देशक क्या साबित करना चाहते हैं. यह तो एक तरह की ज़बरदस्ती है कि आपको हर हाल में फिल्म देखना है और तारीफ भी करनी है, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप आतंकवाद के समर्थक हैं मतलब आप भी आतंकी हैं.

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देश में इससे पहले भी इस तरह की सत्य घटनाओं पर फ़िल्में बनी हैं मगर कभी किसी ने इस तरह की ज़बरदस्ती नहीं की, कभी किसी सरकार या सत्ताधारी दल ने इस तरह समर्थन नहीं किया। निर्देशक महोदय एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कह रहे थे वहीँ दूसरी ओर फिल्म के आलोचकों को आतंकियों का समर्थक। अग्निहोत्री साहब, ठीक है जो आपने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा समझी और बकौल आपके पलायन और नरसंहार का पूरा सच फिल्म में बयान किया लेकिन इसके लिए आपको आंकड़ों की बाज़ीगरी करने की क्या ज़रुरत पेश आयी और जब इस बाज़ीगरी पर सवालों से घिरे तो प्रेस कांफ्रेंस से पलायन क्यों कर गए. कहते हैं साँच को आंच नहीं होती, अगर आप सच्चे हैं और आपकी फिल्म सच्ची है तो सवालों का सामना कीजिये। आपके हाव भाव आपकी नीयत पर शक कर रहे हैं, आपका उद्देश्य कश्मीरी पंडितों की सच्चाई उजागर करने पर कम, लोग हर हालत में फिल्म देखें और आपकी कमाई दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े इसपर ज़्यादा है, आपकी कथनी और करनी में बहुत फर्क है. सवालों को झुठलाने और उनपर झुंझलाने से तो यही लगता है कि परदे के पीछे की कहानी कोई और है.

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बहरहाल हम तो यही दुआ करेंगे कि आपकी इस फिल्म से कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) का भला हो, सरकार उन्हें दोबारा वापस उनके घरों में बसाने के लिए गंभीर हो, लाखों कश्मीरी पंडितों के आगे से रिफ्यूजी शब्द हटे और वह एकबार फिर वादी में आबाद हों, वरना आप तो पैसा बटोर कर किसी और फाइल की खोज में निकल जायेंगे, शायद 84 के सिख दंगों पर लेकिन यह कश्मीरी पंडित रिफ्यूजी के रेफ्यूजी ही रह जायेंगे। आपको तो अब हिट फिल्म का फार्मूला मिल ही गया है.

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