-फरीद वारसी
देश में कोरोना की दूसरी लहर के अभी खत्म होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं कि तीसरी लहर की आमाद की चेतावनी ने देशवासियों को सकते में डाल दिया। गनीमत है कि सुप्रीमकोर्ट की सक्रियता के चलते मोदी सरकार तीसरी लहर की संभावना को लेकर गंभीर हुई है। नहीं तो वह दूसरी लहर की तरह तीसरी लहर से पूर्व अब वह यूपी और उत्तराखंड के चुनावों की रणनीति पर काम करती हुई नज़र आती, जहां पिछले साल के शुरू में चुनाव होने हैं। बहरहाल, देश में दूसरी लहर का विकराल रूप का विस्तार इस हद तक जारी है कि रोज की रोज नए केसों की संख्या लाखों में और मरने वालों का गिनती हजारों में हो रही है। जिसके चलते लोगों की पेशानी पर न सिर्फ बल और गहरे होते जा रहे हैं, बल्कि डर और खौफ भी बढ़ा दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं, दूसरी लहर की तेज होती रफ्तार ने भारत के प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएनओ और अमेरिका सहित दुनिया के कही देशों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। क्या ऐसे में मोदी सहित राज्यों में भाजपा की सरकारें चितिंत हैं, पिछला अनुभव देखते हुए यह यकीन से नहीं कहा जा सकता है। बांम्बे हाईकोर्ट की यह ताजातरीन टिप्पणी कि यदि केंद्र सरकार घर-घर टीका लगवाती तो काफी लोगों की जानें बच जाती। घर-घर जाकर अपना प्रचार करने व वोट मांगने वाली भाजपा सरकार में भला ऐसी संवदेनशीलता कहां है। जो जनहित के बारे में ऐसा सोचने की जहमत करती और यही कारण रहे कि जिसका खामियाजा आज सारा देश भुगत रहा है।
बहरहाल गहरे निराशा और दुख के इस असहनीय पलों के बीच जहां कुछ सकारात्मक पहलू सामने आए वहीं समाज में नए किस्म के खतरनाक वायरस भी पैदा हुए हैं। जिनकी चर्चा आगे की जाएगी। गौरतलब है कि 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के गठन होने के बाद देश में एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगवा मंडली, उसकी आई टी सेल और गोदी मीडिया के कारण हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई चैड़ी करने का जो काम हुआ था, वही खाई कोरोना के इस दूसरे कालखंड में पटती हुई नजर आई। संकट की इस घड़ी में दोनों ही वर्ग एक दूसरे का दुख-दर्द ही बांटते ही नहीं बल्कि एक दूसरे का साथ देते हुए नजर आए। मुसलमान युवक हिन्दू शवों को जरूरत पड़ने पर जहां कंधा देते नजर आए वहीं संबंधित घर वालांे ने मुंह मोड़ लिया तो इन्हीं मुसलमानों ने उसका अंतिम संस्कार भी किया। वहीं हिन्दूवर्ग भी अपना दायित्व निभाने मंें पीछे नहीं रहा। सिख भाईयों ने गरीबों और मजदूरों की भूख मिटाने का काम किया। कहने का मतलब यह है कि जिससे जो बन पड़ा एक-दूसरे का साथ देने का काम किया। इसी तरह विभिन्न सहायता समूहों, संगठनों ने भी अपनी-अपनी पहल की। वाॅलीवुड के लोग भी सहायता के इसी क्रम में आगे आए। बहरहाल, साथी हाथ बढ़ाना का सिलसिला लगतार जारी है। जो लोगों में नई ऊर्जा और नए वेग को संचारित कर रही है और विपरीत परिस्थियों में लड़ने का साहस पैदा कर रही है।
जबकि इसके विपरीत वहीं दूसरी और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो आपदा के इस दौर में अपने अवसरों का लाभ उठाने में लग कर इंसानियत को ही शर्मसार करने का काम कर रहे हैं। निजी अस्पतालों द्वारा पीड़ित परिवारों का खून चूंसने का दौर जारी रहा। यहां यह बताते चले कि बचपन से ही अनाज की कालाबाजारी और जमाखोरी की खबरें सुनते और पढ़ते जवान हुए और अब जिन्दगी के चालीस बंसत भी देख चुके। इतना समय बीत जाने के बाद उपरोक्त गोरख धंधे में न कमी हुई, बल्कि उसका स्वरूप भी बदल गया। जैसे संकट की इस घड़ी में बड़े पैमाने पर जरूरी दवाओं व आक्सीजन की कालाबाजारी, जमाखोरी व मनमाने दाम वसूलने के समाचार अब तो दिनचर्या में शामिल हो गए हैं। वहीं वर्तमान समय में पीड़ित वर्ग को दो किस्म के खतरनाक वायरसों का सामना करना पड़ रहा है। एक है कोरोना वायरस और दूसरा है सिर्फ मनमाने ढ़ंग से पैसे वसूलने वाला वायरस और यह दोनों की वायरस एक दूसरे से कम नहीं हैं। न सिर्फ जरूरी दवाओं को मनमाने दामों पर बेचा जा रहा है। बल्कि ऐम्बुलेंस से लेकर लाश गाड़ियों के ड्राईवर दोनों हाथों से लोगों को लूट रहे हैं। शमशान घाटों में अंतिम संस्कारों के लिए बिकने वाली साम्रगी की दुकानों पर साम्रगी बकायादा बड़े पैकेज के रूप में बेची जा रही है। दिल्ली मंे कफनचोरों का एक गिरोह पकड़ा गया। कानपुर से समाचार आए कि एक अस्पताल में शव के अंतिम दर्शन कराने व कंधा देने के लिए वार्ड ब्वायांें द्वारा हजारों रूपए वसूले जा रहे हैं। पीड़ित परिवारों की हैसियत देखकर दाम वसूले जाते हैं। एक तरफ जब लगातार हो रही मौतों से मानवता कराह रही हो वहां ऐसे भी लोग हैं जिनके घिनौने कृत्यों के कारण इंसानियत शर्मसार हुई है। निसंदेह ऐसा लोगों का शुमार उन लोगों में किया जाना चाहिए जिनका जमीर मर चुका है और जिनके लिए पैसा ही सबकुछ है और ऐसे निर्लज लोगों को कानून का भी डर नहीं है। लेकिन वे यह भूल रहे हैं ऊपर वाले के घर मंे देर है, पर अंधेर नहीं। वक्त का पहिया घुमता जरूर है।