प्रदेश की 18% आबादी को नुमायन्दगी नही मिली
उबैद उल्लाह नासिर
बिहार में सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया है नितीश कुमार ने हालांकि हर बार के मुकाबले ने इस बार सबसे बड़ा अंतर यह है कि इस बार उनको यह कुर्सी अभी कल तक उनकी जूनियर पार्टनर रह चुकी बीजेपी की अनुकम्पा से मिली है I इससे पहले वाले टर्म में उन्हें यह सीट लालू प्रसाद यादव की अनुकम्पा से मिली थी लेकिन उन्होंने बीच रास्ते में उनका साथ छोड़ कर बीजेपी का साथ पकड़ लिया था I बीजेपी के साथ उन्होंने हमेशा बड़ी पार्टी के नेता की हैसियत से सरकार बनाई थी लेकिन इस बार बीजेपी ने उनको उसी शस्त्र से पटकनी दी है जिस शस्त्र से उन्होंने इससे पहले लालू प्रसाद यादव को झटका दिया था I बीजेपी ने इस बार नितीश के पर कतरने और उन्हें उनकी हैसियत में लाने के लिए चिराग पासवान को आगे किया था जिन्होंने नितीश के खिलाफ हर सीट पर उम्मीदवार उतार कर उनको अब तक की सब से करारी शिकस्त का मज़ा चखाया I बीजेपी अपने खेल में कामयाब रही नितीश को तीसरे नम्बर पर धकेल कर वह बिहार में 75 सीटें लेकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी I फिर भी उसने चुनाव से पहले किया गया अपना वादा पूरा किया और नितीश को मुख्यमंत्री बनवा दिया I अब नितीश पूरी तरह बीजेपी के हाथ की कठपुतली बन चुके हैं और वह अपना एजेंडा उन्ही से लागू करवाएगी जिसका आगाज़ राज्य के मंत्रीमंडल में आज़ादी के बाद से पहली बार किसी मुस्लिम वजीर का न होना है Iबीजेपी ने तो अपनी पालीसी के अनुसार किसी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार ही नहीं बनाया था जबकि नीतिश कुमार के सभी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव हार गए थे I दोनों पार्टियों में कोई चुना हुआ मुस्लिम विधायक न होने पर भी यदि नितीश चाहते तो जिस प्रकार वह विधान परिषद् के सदस्य होते हुए मुख्यमंत्री बने है उसी प्रकार विधान परिषद् से किसी मुस्लिम को मंत्री बना सकते थे लेकिन सवाल यही है की नितीश को अपने मंत्रीमंडल के गठन के लिए खुला हाथ मिला भी था या नहीं I
बिहार में मुसलमानों की आबादी लगभग 18% है इतनी बड़ी आबादी में से किसी को मंत्रीमंडल में जगह न देना इस आबादी के साथ न केवल अन्याय है बल्कि देश की आत्मा और संविधान के उसूलों के खिलाफ भी है Iयह भी सच है की बिहार में मुसलमानों की पहली पसंद हमेशा से लालू प्रसाद यादव ही रहे हैं और मुस्लिम यादव सियासी गठ जोड़ बना के लालू यादव और उनकी राष्ट्रीय जनता दल बिहार की राजनीति में नम्बर एक पर रहे हैं लेकिन नितीश भी सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं उन्होंने यादवों के मुकाबले अति पिछड़ा और मुसलमानों में पस्मान्दह तबके की लकीर खींच कर अपने लिए सियासी जगह बना ली थी, और ऐसा नहीं है की उन्हें जो 43 सीटों पर सफलता मिली है उसमें मुस्लिम वोट शामिल नहीं हैं I नितीश को अपनी भविष्य की राजनीति के लिए मुस्लिम वोटरों पर अपनी पकड़ मज़बूत रखने के लिए भी मुसलमानों की अपने मंत्रीमंडल में नुमायन्दगी देनी चाहिए थी I यहाँ यह याद दिला देना ज़रूरी होगा कि उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधान सभा के चुनाव में बीजेपी को शानदार कामयाबी मिली थी और योगी आदित्यनाथ जैसे कट्टर मुस्लिम विरोधी मुख्यमंत्री बने थे बीजेपी से कोई मुस्लिम विधायक भी नहीं था किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि योगी के मंत्रीमंडल में कोई मुस्लिम चेहरा होगा लेकिन उन्होंने मोहसिन रज़ा को जूनियर मंत्री बनाया और उन्हें विधान परिषद् की सदस्यता दिलाई I जहाँ एक ओर योगी से उम्मीद नहीं थी फिर भी उनके मंत्री मंडल में एक मुस्लिम चेहरा है जबकि नितीश से उम्मीद थी और उनके मंत्री मंडल में एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं है I
यह सही है की किसी धर्म या जाति का मंत्री होने से उस धर्म या जाति के लोगों की समस्याओं का समाधान हो जाता है यदि सत्ता न्याय और संविधान के अनुसार चलाई जाए तो जाति या धर्म के मंत्री की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी लेकिन एक तो यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है जो सत्ता और सिस्टम के हर अंग में समाज के हर वर्ग को नुमायन्दगी देने की बात करता हैं किसी एक वर्ग को किसी भी कारण से सिस्टम से लग रखा जाये तो उस में अलग थलग पड़ जाने की भावना पैदा होगी जो समाज के लिए कोई अच्छा शगुन नहीं होगा दुसरे आज की पहचान की राजनीति के इस दौर में जब हर छोटी बड़ी जाती सत्ता में अपनी नुमायन्दगी चाहती है समाज की दूसरी सब से बड़ी आबादी को सत्ता के गलियारों से दूर रखना घोर अन्याय है I
भारत की राजनीति में मोदी युग के उभार के साथ ऐसा सियासी माहौल बन गया है जहाँ धर्मनिरपेक्षता शब्द गाली बन गया है प्रक्टिकली देश ने सेकुलरिज्म को संविधान में लिखे बहुत से शब्दों मैं से एक शब्द मात्र समझ लिया है जिसका प्रयोग कतई आवश्यक नहीं है देश में प्रचार माध्यम से विगत 6-7 वर्षों से मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ एक माहौल बनाया गया है और इशारों इशारों में बड़ी बड़ी बातें कह दी जाती हैं I इसका प्रभाव यह हुआ है की न केवल बीजेपी बल्कि देश की कोई भी सियासी पार्टी अब सेकुलरिज्म और मुसलमानों की समस्याओं उनके संवैधानिक अधिकारों और देश में उनकी बराबर की हिस्सेदारी की बात करने की हम्मत नहीं कर पाता इन्ही हालात ने ओवैसी जैसे नेताओं को पनपने का मौक़ा दिया है I बिहार के मंत्री मंडल में किसी मुस्लिम का न होना इसी सिलसिले की कड़ी है i