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डरावने हालात से डरे नहीं, हिम्मत और हौसले से काम लें !

आर्टिकल/इंटरव्यूडरावने हालात से डरे नहीं, हिम्मत और हौसले से काम लें !

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डरावने हालात से डरे नहीं, हिम्मत और हौसले से काम लें !

डरावने हालात से भागना नहीं है, डर का सामना करके ही डर को भगाना है और इससे मुकाबला करना है। हक़ीकत पर पर्दा डालकर नहीं कड़वी हकीकत की आंखों में आंखें डालकर ही हिम्मत और हौसला साबित करना है। बुरे दौर में भी कुछ अच्छा हो रहा है। इस लड़ाई में हारने से ज्यादा जीतने की कामयाबियां भी हासिल कर रहे हैं। मौजूदा हालात में सकारात्मक पहलुओं को उजागर करना जरूरी है, लेकिन हम अपनी कमियों, खामियों और डरावने हालात पर पर्दे भी नहीं डाल सकते। हमे डरना नहीं है और ना हम डरावने हालात से दूर भाग सकते हैं। आग के करीब जाकर ही आग को बुझाना है।

डर से जितना दूर भागोगे उतना ही वो क़रीब आएगा। इसके जितना करीब जाएगे उतना ही वो दूर जाएगा। किसी हकीकत के डर से निजात पाने के लिए उस हक़ीकत के करीब जाना बेहद जरूरी है।

एहतियात और जागरूकता के लिए डर भी ज़रूरी है। जब तक डर से वाकिफ नहीं होंगे , इसे करीब से नहीं देखेंगे तब तक कड़वे सच के ख़राब हालात का डर सताता रहेगा। आप सच से भाग ही नहीं सकते हैं। छिपोगे, भागोगे.. नाकारात्मक अंदेशों और हकीकतों से परहेज करोगे तो पछताना पड़ेगा। कबुतर की तरह। जैसा कि कबुतर के साथ होता है। कबुतर जब खतरा महसूस करता है तो वो आंख बंद कर लेता है। और हमलावर उसे आसानी से अपना शिकार बना लेता है।

ये कड़वा सच है कि कोराना की आंधी से हालात खराब हैं। लेकिन हमें ही हालात ठीक करने हैं। हालात सुधरेंगे। टेस्ट की दिक्कत खत्म हो रही है, हो सकता है कि ऑक्सीजन की कमी भी कम हो जाए। वैक्सीनेशन हो ही रहा है।

सरकारें बड़ी संख्या में मरीजों का इलाज करने की कोशिशों मे लगी हैं। ये वक्त, लड़ने का या शिकवों-शिकायतों का नहीं है। सबको मिलकर ज़िन्दगी बचाना है। बुरी ख़बरों से भागना नहीं, इससे वाकिफ होना भी जरूरी है। हिम्मत, हौसलों, उम्मीदों, आशाओं, दुआओं, आत्मविश्वास, और कोशिशों का दामन थामे रहिए।

माहौल में डर पैदा ना हो ये कोशिश ज़रूर करनी है लेकिन लेकिन डरावने हालात पर परदे भी नहीं डाले जा सकते। जख्म दिखे़गे नहीं तो मरहम कैसे लगेगा। मर्ज पता नहीं होगा तो इलाज कैसे होगा। छिपे हुए जख्म नासूर बन सकते हैं।

इस हालात में कुछ लोग एक अंगेंजी का अल्फाज लेकर घूम रहे हैं, ये अल्फाज गलत नहीं है लेकिन सच का सामना किए बिना ये शब्द जख्म को नासूर बना सकता है-

” पैनिक “
आई लव यू .. ओके बाय.. हैलो.. गुड बाय, गुड मार्निंग.. थैंक्यू…

अपनी आम हिन्दुस्तानी भाषा में इस तरह के दस बीस अंग्रेजी के शब्द ही लेकर चलने वाले कुछ आम इंसानों की भाषा की पोटली में एक और अंग्रेजी का अल्फाज शामिल हो गया है।

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नज़ला, खासी, बुखार, कुव्यवस्था, श्मशाश कब्रिस्तानों की बढ़ती हुई कतारें लेकर आए कोरोना के साथ एक शब्द भी आम प्रचलन की भाषा में शामिल हो गया है। डर, भय, ख़ौफ, दहशत का अंग्रेजी शब्द पैनिक खूब इस्तेमाल हो रहा है। कड़वी हकीकत और तमाम कमियों के जख्म पर परदा डालने वालों ने पैनिक अल्फाज को अपना हथियार बना लिया है। कोरोना के खराब हालात की हर बात को ब्रेक लगा कर कहने वाले कह रहे हैं कि पैनिक क्रिएट मत कीजिए। इस तरह अंग्रेजी का अल्फाज पैनिक कोरोना वायरस की तरफ इधर खूब फैला है।

लेकिन सच तो सच है वो चाहे कितना भी कड़वा हो। कड़वा सच तो हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी, सड़क, अस्पताल, दवाखाने, श्मशान-कब्रिस्तान हर जगह सीना ताने खड़ा है। ये सच छिप कहां सकता। हां इसकी आंख में आंख डाल कर हम सब हौसले और हिम्मत के साथ इस सच को हरा सकते हैं। और हरा कर रहेंगे। खराब हालात में ये अच्छी खबर भी है कि कोरोना संक्रमित रोगियों के ठीक होने की रफ्तार भी तेज़ी से बढ़ रही है।

  • नवेद शिकोह

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