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अखिलेश का मानसून ऑफर

आर्टिकल/इंटरव्यूअखिलेश का मानसून ऑफर

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अमित बिश्नोई
बिजनेस की लाइन में तो अक्सर आप विंटर ऑफर, समर ऑफर, फेस्टिवल ऑफर जैसे स्लोगन तो सुनते ही रहते हैं लेकिन राजनीति में पहली बार कोई सीजनल ऑफर सामने आया है. पहली बार किसी राजनीतिक दल ने, किसी पार्टी के मुखिया ने अपने विरोधी दल के नेताओं और विधायकों को मानसून ऑफर पेश किया है और ऑफर भी ऐसा वैसा नहीं, सीधा सरकार बनाने का ऑफर. जी हाँ लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की कामयाबी से समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव इतना उत्साहित हो गए कि उन्होंने भाजपा में चल रही खटपट की ख़बरों के बीच मौके पर चौका मारने की कोशिश की है और बिना किसी का नाम लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के खिलाफ मुखर होकर बयानबाज़ी करने और उन्हें चैलेंज करने वाले भाजपा नेताओं को अपने मानसून ऑफर में सौ लाओ सरकार बनाओ की बात कही है. अखिलेश यादव का ये मानसून ऑफर आज सुबह से राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है और सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड कर रहा है.

दरअसल उत्तर प्रदेश भाजपा में लोकसभा हार के बाद काफी कुछ उथल चल रही है, लखनऊ में नेताओं, विधायकों की कई बैठकों में जो बयानबाजियां हुई उसकी धमक दिल्ली तक पहुंची और पार्टी आला कमान के कान खड़े हुए. हालाँकि जिन लोगों ने सत्ता बनाम संगठन का मुद्दा उछाला है उनके बारे में कहा जा रहा है कि बिना किसी बड़े नेता के इशारे के मुख्यमंत्री योगी पर निशाना कोई नहीं साध सकता है. इसलिए जो भी नेता संगठन से बड़ी सरकार नहीं की बात को उछालकर अपरोक्ष रूप से योगी आदित्यनाथ को निशाना बना रहे हैं, उनकी दिल्ली तलबी ने मामले को और उलझा दिया है. दिल्ली में योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का मुख्यमंत्री योगी के बिना लोकसभा चुनाव में हार के कारणों पर आला कमान से मुलाक़ात करना, बात उतनी सीधी नहीं लग रही है जितनी दिख रही है. यह सभी जानते हैं कि 2017 में जब यूपी में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती थी तब केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे , इस दौड़ में और भी नाम थे लेकिन जब मुख्यमंत्री के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम जब सामने आया तो केशव प्रसाद मन मारकर रह गए. कहीं न कहीं उनके मन में वो टीस आज भी बरकरार है इसलिए अब जबकि लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा को बुरी हार का स्वाद चखना पड़ा तो केशव प्रसाद मौर्य को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिल गया और उन्होंने पार्टी के मंच से योगी आदित्यनाथ को सन्देश दे दिया कि संगठन से बड़ी सरकार नहीं होती। सिर्फ केशव प्रसाद मौर्य ही नहीं और बहुत से भाजपा नेताओं ने योगी आदित्यनाथ के उपमुख्यमंत्री की बातों से सहमति जताकर इस बहस को और हवा दे दी.

अब दिल्ली में भूपिंदर चौधरी की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद कहा ये जा रहा है कि उत्तर प्रदेश भाजपा में मची राजनीतिक खींचतान कम से कम दस सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव तक थम गई लगती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संगठन बनाम सरकार की बहस पर फिलहाल विराम लगा दिया है। लेकिन समाजवादी पार्टी सत्ताधारी पार्टी को घेरने का मौका हाथ से जाने देने के मूड में नहीं दिख रही है और इसीलिए मुख्य विपक्षी दल लगातार केशव प्रसाद मौर्य पर कटाक्ष कर रहा है। मानसून ऑफर उसी हमले की एक कड़ी है. अखिलेश की पूरी कोशिश है कि भाजपा में मची अन्तर्कलह थमने न पाए और आने वाले समय में होने वाले दस सीटों के उपचुनावों में इस अंतरकलह का पूरा फायदा उठाकर प्रदेश और और केंद्र में भाजपा के खेल को बिगाड़ा जाय. प्रदेश में जहाँ इन दिनों मुख्यमंत्री योगी अपनी पार्टी के लोगों से परेशान हैं वहीँ विपक्ष भी उनपर पहले से कहीं ज़्यादा हमलावर है और यही वजह है कि अपने फैसलों को लेकर अटल और अडिग माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ एक के बाद अपने फैसलों को पलटने या वापस लेने पर मजबूर हो रहे हैं।

कल ही उन्होंने टीचर्स की डिजिटल अटेंडेंस और लखनऊ की कुछ कालोनियों में चिन्हित मकानों पर बुलडोज़र चलाये जाने का फैसला वापस लिया और अब कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों पर दुकानदारों का नाम स्पष्ट तौर पर लिखने के आदेश को भी वापस ले लिया, अब लोगों से कहा गया है कि वो चाहें तो अपना नाम लिखें, न चाहें तो न लिखे, यानी फैसला मर्ज़ी पर छोड़ दिया है. ऐसा इसलिए कि इस विवादित फैसले पर भी योगी सरकार विपक्ष द्वारा बुरी तरह घिर गयी, चाहे अखिलेश यादव हो या फिर मायावती और या फिर ओवैसी जैसे लोग. सभी ने इस फैसले पर मोर्चा खोल दिया और मज़बूत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना फैसला वापस लेना पड़ा. फैसलों की वापसी पर भी योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी करने में अखिलेश पीछे नहीं है, अखिलेश ने कल कहा कि बाबा मुख्यमंत्री अपने फैसले इसलिए वापस ले रहे हैं क्योंकि अब वो मजबूत मुख्यमंत्री नहीं रहे हैं, उनको पार्टी के अंदर से ही चैलेन्ज किया जा रहा है. उनको कुर्सी से हटाने का प्रयास हो रहा है, अखिलेश ने कहा कि ये बिलकुल वैसा ही हो रहा जैसा भाजपा किसी दुसरे दल के लिए करती रही है यही वजह है कि मानसून ऑफर देकर अखिलेश ने एक सियासी शगूफा छोड़ा है.

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