अमित बिश्नोई
आकाश आनंद, शायद ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने अपनी उत्तराधिकारिता खोकर उसे दोबारा वापस पाया। वर्ना आम तौर पर किसी राजनीतिक पार्टी का घोषित उत्तराधिकारी परमानेंट ही होता है, उसकी उत्तराधिकारिता खोटी नहीं है और अगर खो गयी तो फिर वापस नहीं मिलती. बसपा सुप्रीमो मायावती के फैसले भी उन्हीं की तरह होते हैं, जिस तरह उन्हें आजतक कोई नहीं समझ पाया कि वो कौन सा राजनीतिक दांव कब खेलेंगी, भतीजे आकाश आनंद को दोबारा उत्तराधिकारी घोषित करने का उनका फैसला भी कुछ उसी तरह का है. अभी डेढ़ महीना पहले ही तो उन्होंने आकाश आनंद को अपरिपक्व बताते हुए उन्हें राजनीतिक तौर पर बेदखल कर दिया था, माना जा रहा था कि मायावती के घोषित उत्तराधिकारी आकाश आनद का राजनीतिक कैरियर पर एक लम्बा विराम लग गया है लेकिन चार 6 हफ़्तों में उत्तर प्रदेश की राजनीती ने ऐसी करवट बदली कि मायावती को उसी भतीजे की ज़रुरत पड़ गयी जिसे कुछ समय पहले ही एक तरह से अपमानित करके पार्टी में किनारे कर दिया था, किसी उभरते हुए राजनेता को जो कि उस पार्टी के मुखिया का उत्तराधिकारी हो , अपरिपक्व बता कर सभी पदों से हटा देना उसका अपमान ही होता है.
अब सवाल ये उठता है कि सिर्फ डेढ़ महीने में ऐसा क्या हो गया जो मायावती को अपना फैसला बदलना पड़ा, बीते डेढ़ महीने में आकाश आनंद को राजनीति की ऐसी कौन सी ट्रेनिंग मिल गयी जिसने एक अपरिपक्व नेता को परिपक्व बना दिया। आकाश आनंद को दोबारा पार्टी में वापस लाना, न सिर्फ वापस लाना बल्कि उन्हें उत्तराधिकारी घोषित करना और पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक घोषित करना क्या मायावती की राजनीतिक मजबूरी है या फिर भतीजे के प्रति बुआ का प्रेम जो दोनों को ज़्यादा दिन दूर न कर सका. हालाँकि मायावती का जो नेचर है उसमें इमोशंस को ज़्यादा जगह नहीं मिलती है, उनके फैसले सख्त होते हैं, आकाश आनंद को हटाना भी एक सख्त फैसला ही था, ऐसे में आकाश की वापसी भी कोई इमोशनल नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला ही कहा जायेगा, शायद मजबूरी वाला फैसला जो मायावती ने न चाहते हुए लिया क्योंकि उनके पास शायद कोई और विकल्प नहीं था. भतीजे पर ही भरोसा करना उनकी मजबूरी थी क्योंकि उनके इर्द गिर्द जो लोग भी भरोसेमंद कहे जाते थे सब साथ छोड़कर जा चुके हैं.
कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में पूरी तरह सफाये के बाद मायावती पर पार्टी के वजूद को बचाने का संकट आ पड़ा है, उसका वोट शेयर 9 प्रतिशत से नीचे आ चूका है. पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव, दोनों ही जगह शून्य की हालत किसी पार्टी के मुखिया की नींद उड़ा देगी। लोकसभा चुनाव में अपनी सभी 10 सीटें गंवाने वाली बसपा के लिए तो अब नए सिरे से शुरुआत करने जैसे हालात बन गए हैं. शायद यही वजह है कि इस बार विधानसभा के उपचुनावों में भी उसने मैदान में उतरने का फैसला किया है जिससे वो हमेशा दूर रहती थी. पार्टी की मौजूदगी दिखाने के लिए विधायकों और सांसदों की ज़रुरत होती है, पार्टी का काडर वोट भी आपका साथ छोड़ देता हैं जब विधानसभा और लोकसभा में पार्टी की कोई नुमाइंदगी नहीं होती है. इन चुनावों में बसपा उसका अपना वोट बैंक भी छिटककर समाजवादी पार्टी या कह सकते हैं इंडिया गठबंधन की तरफ चला गया है. ये मायावती के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण है क्योंकि जब अपना कोर वोट ही खिसक जायेगा तो राजनीती किसके दम पर की जायेगी।
बसपा या मायावती के लिए एक और बड़ा खतरा चंद्रशेखर आज़ाद के रूप में उभर आया है. चंद्रशेखर आज़ाद ने बसपा के गढ़ नगीना को छीन कर मायावती की बादशाहत को खुले तौर पर चैलेन्ज किया। चूँकि मायावती और चंद्रशेखर आज़ाद सजातीय नेता हैं इसलिए मायावती के लिए और भी बड़ा चैलेन्ज है। बुरे से बुरे हालात में मायावती का उनकी जाति के लोगों ने कभी साथ नहीं छोड़ा लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद को इस चुनाव में जो सजातीय समर्थन मिला है विशेषकर नौजवानों का वो बसपा के लिए खतरे की घंटी है और इस घंटी की आवाज़ मायावती के कानों में अच्छी तरह पड़ी है. इन सारी बातों ने मायावती को सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद अब सिर्फ उनकी लिगेसी से काम नहीं बनेगा, कोई नया नेतृत्व उन्हें सामने लाना ही होगा जिसकी तरफ दलित समाज आकर्षित हो। लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद ने जितना भी चुनाव प्रचार किया वो काफी आक्रमक था, उनके भाषण की शैली काफी उग्र थी, दलित समाज की भावनाओं को उभारने वाली थी जिसे दलित समुदाय काफी पसंद भी कर रहा था, ये भी सही था कि आकाश आनंद ने जोश में कुछ ऐसी बातें कही थी जिसे नहीं कहा जाना चाहिए था, मायावती ने कभी इस तरह की बातें नहीं कहीं या कह सकते हैं उनमें वो कला ही नहीं जो आकाश आनंद में है, बिना पढ़े भाषण देने की कला, जो मन में आये उसे बोल देने की कला जिसे आज की राजनीति में काफी पसंद किया जा रहा है, ऐसे में आकाश आनंद की उत्तराधिकारी के रूप में दोबारा वापसी साबित करती है कि मायावती को अच्छी तरह से एहसास हो गया है कि पार्टी में नए जोशीले नेतृत्व की ज़रुरत है जो चंद्रशेखर आज़ाद की तरह समाज के नौजवानों के दिलों में घर कर सके.
मायावती जानती हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद का राजनीति में उभार बसपा के लिए और बुरे दिन ला सकता है इसलिए उन्होंने आकाश आनंद और उनकी क्षमताओं पर एकबार फिर भरोसा जताया है, पहले तो उन्हें स्टार प्रचारक बनाया जिसमें नंबर दो की पोजीशन है फिर उन्हें राष्ट्रीय संयोजक घोषित कर अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया ताकि आकाश आनंद को लोग गंभीरता से लें. पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उनके प्रति एक सम्मान का भाव रहे जिसमें उन्हें अपना भविष्य नज़र आये. बसपा के लिए होने वाले विधानसभा के उपचुनाव मौजूदा दौर में काफी महत्वपूर्ण हैं, अगर इसमें बसपा को कुछ कामयाबी मिलती है तो आकाश आनंद का प्रयोग सफल माना जायेगा।