हरियाणा विधानसभा चुनाव में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे को जीत का मन्त्र मानने वाली भाजपा महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनाव में भी इस नारे के सहारे मैदान मारने की कोशिश कर रही है लेकिन भाजपा के इस नारे से सबसे ज़्यादा परेशानी महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी एनसीपी अजीत पवार गुट को है. पार्टी के मुखिया और शरद पवार के भतीजे, महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने खुलकर भाजपा के इस बंटने और कटने वाले नारे का विरोध किया है और साफ़ तौर पर भाजपा को चेतावनी देते हुए कह दिया है कि इस तरह के नारे यूपी और दूसरे राज्यों में चलते होंगे लेकिन महाराष्ट्र में इसकी कोई जगह नहीं है.
अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र के लोग बंटने में नहीं जुड़ने में विशवास रखते हैं, सबका साथ सबका विकास में यकीन रखते हैं. ये सब महाराष्ट्र में नहीं चलने वाला। दरअसल महाराष्ट्र में जबसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनावी दौरे शुरू हुए हैं, बंटने और कटने की बातें होने लगी हैं, योगी आदित्यनाथ के चुनावी सभाओं में मुख्य मुद्दा यही नारा रहता है, प्रधानमंत्री मोदी भी इस नारे का अपने अंदाज़ में समर्थन करते हुए कहते हैं कि एकजुट रहोगे तो सुरक्षित रहोगे। भाजपा नेताओं का ये रवैय्या अजित पवार को पसंद नहीं, उन्हें लगता है कि भाजपा के इस साम्प्रदायिक रवैये से उनकी पार्टी को नुक्सान हो सकता है, लोकसभा चुनाव में एनसीपी अजीत गुट के साथ ऐसा हो भी चूका है.
सिर्फ बंटने और कटने वाले नारे पर ही नहीं, अन्य मुद्दों पर भी एनसीपी का भाजपा के साथ गतिरोध रहा है. भाजपा के तमाम विरोध के बावजूद एनसीपी ने नवाब मलिक को चुनावी मैदान में उतारा। अजित पवार ने उनके लिए जाकर वोट भी मांगे। नवाब मलिक के चुनावी मंचों पीएम मोदी की तस्वीर नहीं होती है। भाजपा के ऐतराज़ पर दो टूक जवाब मिलता है कि ये मेरी मर्ज़ी है कि किसके नाम पर मैं वोट माँगूँ। दरअसल भाजपा बंटने और कटने वाले नारे को कांग्रेस पर पलटवार के रूप में इस्तेमाल कर रही है. कांग्रेस ने सोशल जस्टिस और जातिगत जनगणना पर लोकसभा चुनाव में काफी कामयाबी हासिल की और भाजपा को अकेले दम पर सरकार बनाने से रोक दिया।