ज़ीनत क़िदवाई
कोरोना महामारी की शुरुआत हो चुकी थी| हमारे देश में जब 564 केस हुए थे कि पीएम मोदी ने 24 मार्च को देश को सम्बोधित करते हुए कहा था कि कोरोना महामारी की लड़ाई 21 दिन में जीती जाएगी| आप सभी लोगों को 21 दिनों तक अपने घरों में रहना है| लेकिन 60 दिन से ज़्यादा होने के बाद भी कोरोना अपना क़हर बरपा रहा है राकेट की रफ़्तार से ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है | लॉकडाउन से कोरोना की चेन तोड़ने की योजना विफल हुई है| जो देश लॉक डाउन शुरू होते समय विश्व के सर्वाधिक प्रभावित 20 देशों में भीं नहीं था वह आज इटली को पीछे छोड़ते हुए छठे पायदान पर पहुँच चूका है और केस लगातार बढ़त बनाये हुए हैं| कोरोना केसों इस बढ़त ने देशवासियों की चिंता भी बढ़ा दी है कि कहीं हम मित्र के समकक्ष न हो जाएँ |
भारत में अब प्रतिदिन कोरोना संक्रमितों के मिलने की संख्या 10 हज़ार हो गयी है, इतने केस तो स्पेन और इटली में भी नहीं हुए| विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना भारत में सामुदायिक संक्रमण का रूप ले चूका है लेकिन सरकार है कि मानती ही नहीं | ICMR के अनुसार अप्रैल के शुरू में कोरोना पॉजिटिव दर 4 .8 प्रतिशत थी जो अब दोगुनी हो चुकी है| संक्रमितों की संख्या बढ़ने के साथ साथ संक्रमण से मरने वालों की संख्या भी धीरे धीरे बढ़ने लगी है | केसों की संख्या में अब हम इटली से आगे हैं| संक्रमण के बढ़ने और मृत्यु दर बढ़ने के बावजूद सरकार अनलॉक-1 लेकर आयी है जो 8 जून से लागू होगा | स्पेन, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देशों में कोरोना की स्थिति बहुत गंभीर हो गयी थी लेकिन उन्होंने अपने देश में जब लॉक डाउन लगाया था तब वहां पर केस बढ़ना शुरू हुए थे और लॉकडाउन पीरियड में केस अपने चरम पर पहुंचे| जब केस कम होना शरू हुए तो सरकारों ने ढील देना शुरू की जिससे लॉकडाउन खुलने के बाद वहां पर केसों में लगातार कमी आर रही है और कहीं नाम मात्र को केस रह गए हैं| लेकिन भारत में जब केस नाम मात्र थे तो कड़ी बंदी थी और जब केस चरम की और हैं तो ढील दी जा रही है और नए नए नियम बनाकर लॉक डाउन को खोला जा रहा है जबकि संक्रमितों की संख्या रोज़ नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है|
लॉकडाउन की चाभी सरकार के हाथ में है, जब चाहे खोले जब चाहे बंद करे| कोरोना संक्रमण के बढ़ने के बहुत से कारण हैं जिनमें से एक कारण प्रवासी मज़दूरों को भी बताया जा रहा है जिनके बारे में लॉकडाउन लागू करते समय नहीं सोचा गया और लॉकडाउन लागू होते ही वह सड़क पर आ गए| यह प्रवासी मजदूर भीड़ के रूप में सड़कों पर पड़े रहे जिससे उनमें बहुत से लोग कोरोना कैरियर बन गए और अब वह उसे गाँव लेकर जा चुके हैं जो अबतक कोरोना महामारी से बचे हुए थे| अब देश के ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना के केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं और बहुत चिंता का कारण बन रहे हैं| टेस्टिंग किटों की कमी, सही समय पर किट का न मिलना और पर्याप्त मात्रा में टेस्टिंग न होने से भी संक्रमण तेज़ी से फैलने का मुख्य कारण बना क्योंकि टेस्टिंग ही कोरोना संक्रमण से बचाव का कारगर तरीक़ा है जिसका प्रमाण वह देश जिन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में टेस्टिंग करके अपने देश में संक्रमण को बढ़ने से रोका और स्थिति को नियंत्रित किया लेकिन हम आज भी टेस्टिंग को लेकर बहुत पीछे चल रहे हैं| हमारे पीएम के अभिन्न मित्र ने भी कहा है कि भारत और चीन में अगर टेस्टिंग ज़्यादा हो तो अमरीका से ज़्यादा से केस निकलेंगे| डर है कि कहीं स्थिति विस्फोटक हुई तो क्या होगा ? क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सबको पता है|
दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गयी हैं, क्वारेंटाइन सेंटरों की हालत दयनीय है| गुजरात में मरीज़ों को समय पर इलाज नहीं मिल रहा है| गुजरात में इस मामले पर हाईकोर्ट को स्वयं संज्ञान लेते हुए सरकार को फटकार तक लगानी पड़ी (यह अलग बात है कि उस जज का तबादला कर दिया गया) और दवाओं की कमी व भेदभाव को लेकर जांच कमेटी बनानी पड़ी | ज़्यादातर प्रवासी श्रमिक दिल्ली, मुंबई और गुजरात से आये हैं जहा संक्रमण देश के कुल संक्रमण का 65 प्रतिशत है | कुछ श्रमिक क्वारेंटाइन सेंटरों से भाग गए | कुछ सीधे अपने घर पहुंचे और क्वारेंटाइन नहीं हुए | वह भी संक्रमण के फैलने का कारण बने | इस तरह कोरोना श्रमिकों का सहयात्री बन शहर से गाँव की ओर चल दिया|
इस समय देश में लोकतंत्र को बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है , सवाल उठाना अब पाप की श्रेणी में आ चूका है, जो सवाल करे वह देशद्रोही और मानसिक रूप से दिवालिया है| सरकार समर्थक प्रधानमंत्री को कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में महान योद्धा सिद्ध करने पर तुले हैं| कोरोना महामारी के साथ राजनीति भी जारी है, चुनाव जो हैं वर्चुअल चुनावी रैलियों की तैयारियां काल रही हैं, यह साबित करता है कि हम कोरोना से लड़ाई पर कितने संकल्पित हैं|
सरकार ने कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को किसी भी अंजाम तक पहुँचने से पहले ही अधर में छोड़ दिया है | सरकार असहाय है, उसके पास कोरोना से निपटने का कोई उपाय नहीं है | प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की शुरुआत करने के समय 21 दिन में कोरोना की लड़ाई जीतने की बात की, जनता भो घरों में क़ैद हो गयी फिर लॉकडाउन बढ़ता गया, थालियां तालियां बजती रहीं, दिए जलते रहे, देशवासियों को टास्क मिलते रहे और प्रधानमन्त्री के शब्द बदलते रहे | कभी लम्बी लड़ाई , कभी अदृश्य दुश्मन, कभी अतिरिक्त सतर्कता इन शब्दों ने जनता को आतंकित किया और जनता में डर बैठ गया| सरकार जनता को आश्वस्त करने में असमर्थ प्रतीत हुई , सभी मुद्दे जस के तस हैं| चाहे श्रमिकों की समस्या हो, चाहे अर्थव्यवस्था का ठप्प होना मगर आज भी सरकार अपनी ग़लतियों से सबक़ लेने को तैयार नहीं है | जब लॉकडाउन लागू हुआ था तो किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री तक को विश्वास में नहीं लिया गया था और लॉकडाउन लागू कर दिया था| परन्तु लॉक डाउन खोलने के समय सीएम से लेकर डीएम तक सबको निर्णायक भूमिका में लाया जा रहा है ताकि बिगड़े हालात का ठीकरा किसी पर तो फोड़ा जा सके| अपनी सुविधानुसार अन्य देशों से तुलना करने में जुटे सरकारी नुमाइंदों से एक सवाल है कि कोरोना मामले भारत इटली से आगे हुआ या पीछे?