अमित बिश्नोई
आख़िरकार वो पल आ ही गया, थोड़ा देर से आया, लोकसभा चुनाव के चार चरणों के बाद आया. इस पल का सभी को इंतज़ार था कि आधे से ज़्यादा चुनाव निकल चूका है और मोदी जी भावुक नहीं हुए हैं, लोगों को थोड़ा हैरानी भी थी, लेकिन लोग साथ में ये भी सोच रहे थे कि प्रधानमंत्री के बहुत से चुनावी हथियारों में भावुक होना, आँखों से आंसू निकलना, सिसकना एक प्रमुख हथियार है और वो उसका तभी इस्तेमाल करते हैं जब उसकी ज़्यादा ज़रुरत महसूस होती है. तो प्रधानमंत्री जी ने आज अपने नामांकन के दिन के लिए इस हथियार का इस्तेमाल कर लिया, शायद अब उसका इस्तेमाल ज़रूरी हो गया होगा। आज गंगा की लहरों पर सवार होकर जब वो आजतक को इंटरव्यू दे रहे थे तब वो अचानक भावुक हो गए, बोले कहीं गलती न हो जाय, इतना कहते ही वो सिसक पड़े, आंसू भी छलक पड़े. खैर आगे तो इंटरव्यू में उन्होंने माँ गंगा से अपने रिश्तों के बारे में बड़े विस्तार से बताया, ये भी बताया कि परमात्मा ने उन्हें विशेष काम के लिए धरती पर भेजा है.
वैसे प्रधानमंत्री भावुक होने वाले हैं ये बात राहुल गाँधी को पहले से ही पता चल गयी थी तभी तो 26 अप्रैल को अपनी एक सभा में उन्होंने कहा था कि आप प्रधानमंत्री के भाषण को देखते हो, घबराये हुए हैं, शायद कुछ ही दिन में आंसू निकल आएं. राहुल गाँधी भी अब काफी परिपक्व हो चुके हैं , खासकर प्रधानमंत्री मोदी को लेकर, राहुल प्रधानमंत्री मोदी को बहुत नज़दीकी से ऑब्ज़र्व करते हैं और यही वजह है कि प्रधानमंत्री क्या बोलने वाले हैं, क्या करने वाले हैं उन्हें पता रहता है. अब प्रधानमंत्री की भावुकता को ही लीजिये, किसी भी नेता ने नहीं कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी की आँखों से आंसू निकलने वाले हैं लेकिन राहुल गाँधी को मालूम था और उसका एलान उन्होंने अपनी चुनावी रैली में किया था. आज जब प्रधानमंत्री मोदी भावुक होकर रोने लगे तो कांग्रेस के एक्स हैंडल पर राहुल और प्रधानमंत्री के भाषण और इंटरव्यू के वो अंश डाले गए.
भावुक होना, आखों से आंसू निकलना कोई गलत बात नहीं। हम भारतीय होते ही भावुक हैं लेकिन जब हमारी भावुकता का लोगों को पहले से पता चल जाय तब तो उस भावुकता की सच्चाई पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है. इस चुनाव में भावुक तो प्रियंका गाँधी भी हुईं जब वो एक चुनावी सभा में अपने दादी और अपने पिता के asssination की घटनाओं को याद कर रही थी, किस तरह उनकी दादी को गोलियों से भूना गया, किस तरह उनके पिता का टुकड़ों में शव दिल्ली लाया गया. प्रियंका की इस भावुकता पर कोई सवाल नहीं उठा, क्योंकि किसी को भी अंदाज़ा नहीं था कि प्रियंका गाँधी भाषण के दौरान भावुक हो जायँगी मगर मोदी जी भावुक होंगे ये सभी को मालूम था, बस इंतज़ार इस बात का था कि किस दिन, किस जगह पर भावुक होंगे। खैर चार चरणों के मतदान के बाद उन्होंने लोगों के इंतज़ार को ख़त्म कर ही दिया।
अब प्रधानमंत्री जी भावुक हुए हैं, गंगा की लहरों पर सवार होकर भावुक हुए हैं, कैमरे के सामने भावुक हुए हैं, वैसे प्रधानमंत्री जी जब जब भी भावुक हुए हैं कैमरे के सामने ही हुए हैं, आप इसे संयोग भी मान सकते हैं, वैसे लोगों का मानना तो यही है मोदी जी संयोग में विशवास नहीं रखते, वो कर्म योगी हैं। उनके हर कार्य के पीछे दिल नहीं सिर्फ दिमाग़ होता है, वो दिमाग़ जब वो कुछ घंटों के लिए सोते हैं तब भी कोई चुनावी रणनीति बना रहा होता है. अब बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो मोदी जी की भावुकता को चुनावी रंग देंगे, कहेंगे कि चार चरणों में हालत ख़राब होने के बाद उन्होंने भावुकता का सहारा लिया। अब विपक्ष तो ये बात कहेगा ही, जैसे मोदी इस बात को कहने के लिए आज़ाद कि अबकी बार 400 पार. भावुकता की बात अपनी जगह लेकिन इधर मोदी जी के साक्षात्कारों का सिलसिला बहुत बढ़ गया है, बड़े बड़े टीवी चैनलों पर उनके इंटरव्यू चल रहे हैं, इंटरव्यू भी ऐसे जिसमें सवाल भी मोदी जी ही करते हैं और जवाब भी वही देते हैं, कई इंटरव्यू तो ऐसे भी आये हैं जिसमें एक दो नहीं 6-6 सम्पादकों ने एकसाथ इंटरव्यू किया है. आप इसे प्रेस कांफ्रेंस मत समझियेगा, क्योंकि वो सब एक ग्रुप के संपादक थे, दो चार ग्रुप के होते तो समझा जाता कि प्रेस कांफ्रेंस हुई है. वैसे जब मोदी जी को खुद ही बोलना है तो कई ग्रुप के सम्पादकों, रिपोर्टरों के साथ मोदी जी को एक पत्रकार वार्ता कर लेनी चाहिए, इससे उनपर लगने वाला ये इलज़ाम भी ख़त्म हो जाता कि वो प्रेस कांफ्रेंस से डरते हैं. रविश कुमार जैसे लोगों को जवाब मिल जाता कि मोदी जी पत्रकार वार्ता से नहीं डरते।