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ये अपसेट नहीं तमांचा है !

आर्टिकल/इंटरव्यूये अपसेट नहीं तमांचा है !

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अमित बिश्‍नोई

पाकिस्तान पर अफ़ग़ानिस्तान की इस जीत को इससे पहले मैं कुछ नाम दूँ , एक अपील करना चाहता हूँ कि प्लीज इसे अपसेट कहकर आप अफ़ग़ानिस्तान की ऐतिहासिक कामयाबी का अपमान न करें। जिन लोगों ने भी इस मैच को पूरा देखा है, क्या उन्हें अपसेट जैसा कुछ लगा, क्या कभी ऐसा लगा विशेषकर जब अफ़ग़ानिस्तान लक्ष्य का पीछा कर रहा था कि वो पाकिस्तानी गेंदबाज़ों से कुछ घबराये हुए हैं या उनके चेहरे पर लक्ष्य का पीछा करने का दबाव है. अफ़ग़ानिस्तान के बल्लेबाज़ों द्वारा इतनी कूल बल्लेबाज़ी मैंने कभी नहीं देखी। हर बल्लेबाज़ पूरी मैच्योरिटी के साथ खेला, कहीं कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई हड़बड़ाहट नहीं, लक्ष्य सामने और उसकी तरफ शांत भाव से आगे बढ़ना, मुझे तो अफगानी बल्लेबाज़ों में यही नज़र आया जो शायद इससे पहले उनमें नहीं दिखता था और उनकी आक्रामकता उनका बना बनाया खेल बिगाड़ देती थी. वैसे भी जब कोई टीम मौजूदा और पूर्व विश्व चैंपियंस को विश्वकप जैसे महामुकाबले में लगातार शिकस्त दे तो उसे आप अपसेट करने वाली टीम कैसे कह सकते हैं?

अफ़ग़ानिस्तान के लिए पाकिस्तान के खिलाफ यह किसी एकदिवसीय या विश्व कप के मुकाबले में मात्र पहली जीत की बात नहीं है, पाकिस्तान के खिलाफ उनकी ये जीत क्रिकेट से कहीं आगे बढ़कर है जिनमें भावनाओं का अम्बार छुपा हुआ था, जो पिछले कुछ महीनों में कई बार छलकते छलकते रह गया. अफ़ग़ानिस्तान के लिए इस जीत के क्या मायने हैं ये आप मैन ऑफ़ दि मैच रहे इब्राहीम जादरान के पोस्ट मैच इंटरव्यू से अच्छी तरह समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने इस जीत को उन अफ़ग़निस्तानियों को समर्पित किया जो पाकिस्तान में शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे और जिन्हें पाकिस्तान की सरकार ने वापस अफ़ग़ानिस्तान जाने का फरमान सुना दिया, ये लोग अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार बनने के बाद अपनी जान बचाकर वहां से भागे थे, बहुत से देशों की तरह पड़ोस के पाकिस्तान में भी गए लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने मोहब्बत की जगह उन्हें दर्द दिया। इब्राहिम जादरान का इन शरणार्थियों को मैन ऑफ़ दि मैच का अवार्ड समर्पित करना वही दर्द था जो प्रेज़ेंटर रमीज़ राजा के सामने मैदान पर छलका और जिसे पूरी दुनिया ने देखा और पाकिस्तान का मुस्लिम दोस्त होने का चेहरा भी बेनकाब हुआ।

अफ़ग़ानिस्तान की इस जीत से हर कोई खुश था, हर कोई जश्न मना रहा था, इरफ़ान पठान तो मैदान में ही राशिद खान के साथ भांगड़ा करने लगे. क्योंकि सभी को मालूम था कि अफ़ग़ानिस्तान की टीम में दम है, उससे कई बार वो जीत छिनी है जिसकी वो हक़दार थी, अब जब चेन्नई में उसे वो हक़ मिला तो लोगों का सेलिब्रेट करना तो बनता ही था. कई बार जीत की दहलीज़ पर आकर अफ़ग़ानिस्तान की अपनी गलतियों की वजह से उसे शिकस्त का मुंह देखना पड़ा और हर बार मैच के बाद कप्तान शाहिदी को यही कहते सुना गया कि पता नहीं आखिर में हमसे क्या हो जाता है और हम कुछ गलती कर बैठते हैं. हर बार वो गलतियों से सीखने की बात करते थे, लगता है अब वो गलतियों से सीखना सीख गए हैं जो कल के मैच में साफ़ तौर पर नज़र आया. छोटी छोटी गलतियों से बड़े बड़े मैच हारने वाली अफ़ग़निस्तान की टीम क्रिकेट तो पहले भी ज़ोरदार खेलती थी मगर जीत से दूर रह जाती थी मगर अब लगता है कि उसने जीतने का हुनर भी सीख लिया है।

कप्तान हश्मतुल्लाह शाहिदी को जब टीम की कमान सौंपी गयी थी तो एक बिखरी हुई टीम थी, कई कप्तान या तो हटाए गए या खुद ही कप्तानी छोड़ दी, कोई इस ज़िम्मेदारी को उठाना नहीं चाहता था, ऐसे में हश्मतुल्लाह शाहिदी ने ज़िम्मेदारी संभाली और टीम को एक क्लियर विज़न दिया। मैच के लिए मैदान पर जाने से पहले अब उन्हें मालूम होता है कि आज उन्हें कैसी क्रिकेट खेलनी है, सामने कौन सी टीम है और क्या रणनीति होगी, टीम के प्रदर्शन में अब पहले से कहीं अधिक ठहराव नज़र आ रहा है, हम अगर कल के मैच की बात करें तो कहीं से भी ये नहीं लगा कि ये कोई लोवर रैंक टीम के बल्लेबाज़ बल्लेबाज़ी कर रहे हैं , 282 का लक्ष्य कोई छोटा लक्ष्य नहीं होता लेकिन उसे पाने की कभी जल्दबाज़ी नहीं दिखी, पूरी पारी के दौरान रन रेट के आसपास बल्लेबाज़ी की, बुरी गेंदों पर प्रहार किया और अच्छी गेंदों का सम्मान। एक दो ओवर हलके गए तो भी कोई घबराहट नहीं दिखी, ये अफ़ग़ानिस्तान के सुनहरे भविष्य का एक संकेत है, स्पिन गेंदबाज़ी तो उनकी वर्ल्ड क्लास पहले से ही थी, बल्लेबाज़ी में स्थिरता ने अब उसे मज़बूती दी है।

इस हार के बाद पाकिस्तान की टीम पूरी तरह बौखलाई हुई है, टीम ही नहीं पूरा पाकिस्तान बौखलाया हुआ है, बाबर बुरी तरह निराश हैं, उनकी निराशा, बौखलाहट और हड़बड़ाहट कल मैच के बाद हुई प्रेस कांफेरेंस में साफ़ झलक रही थी, पाकिस्तानी पत्रकार उनसे सवाल पूछ रहे थे कि क्या अब भी कुछ उम्मीद बाकी है या फिर घर जाएँ। वो किसी भी सवाल का ढंग से जवाब नहीं दे पा रहे थे, बाबर ने माना कि कुछ भी सही नहीं हो रहा है, बल्लेबाज़ी चलती है तो गेंदबाज़ी नहीं, गेंदबाज़ी सही होती है तो घटिया फील्डिंग उसे बेअसर कर देती है, खिलाडियों में फील्डिंग को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है. कुल मिलाकर बाबर कहना चाह रहे थे कि अब कुछ नहीं हो सकता, विश्व कप की यात्रा समाप्त। बहरहाल अफ़ग़ानिस्तान की जीत को अगर मैं कोई नाम दूँ तो इसे पाकिस्तान के मुंह पर एक तमांचा कह सकता हूँ, इसलिए नहीं कि मैच में पाकिस्तान को शिकस्त मिली, वो तो खेल का हिस्सा है, सवाल यहाँ एक मैच की हार जीत से बढ़कर है, सवाल यहाँ खेल से आगे का है जिसे अफगानी खिलाड़ी बहुत अच्छी तरह समझते हैं, यही वजह है कि पाकिस्तान के खिलाफ हर बार वो अपनी सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट खेलते हैं. मैं एकबार फिर कहूंगा कि इस जीत को विश्व कप का एक और अपसेट कहकर अफ़ग़ान टीम का अपमान न करें।

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