अमित बिश्नोई
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहचान कट्टर हिंदुत्व के चेहरे के रूप होती है। उनका कट्टर हिंदुत्व का चेहरा कभी कभी धूमिल सा होने लगता है और जब भी ऐसा होता है या उन्हें लगता है कि काफी समय हो गया है उन्होंने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया, कोई ऐसा बयान नहीं दिया कि जिससे उनकी अपनी पुरानी पहचान अपनी चमक खोती हुई लगे वो कोई न कोई ऐसा सरकारी निर्देश जारी करते हैं या कुछ कुछ ऐसे बयान देते हैं जो उनके हिंदुत्व के चेहरे में निखार ले आती है. फिलहाल लोकसभा चुनाव के बाद उनका कट्टर हिंदुत्व वाला चेहरा एक बार फिर अपने निखार पर है और इसकी वजह उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनावों को बताया जा रहा है। योगी जी के व्यक्तित्व और व्यवहार में यह बदलाव रणनीतिक रूप से समय की मांग लगता है क्योंकि ये चुनाव मुख्यमंत्री योगी के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गए हैं, इन उपचुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा है, भाजपा का भी और खुद योगी जी का भी। लोकसभा चुनाव में झटके वाली नाकामी के बाद अपनी पार्टी के भीतर आंतरिक चुनौतियों का सामना करते हुए मुख्यमंत्री योगी हिंदू वोटों को एकजुट करने और अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं क्योंकि यही उनका अमोघ अस्त्र है जिसका वो हर कठिन परिस्थिति में इस्तेमाल करते हैं.
हिंदुत्व पर योगी आदित्यनाथ का फिर से ध्यान करने को राजनीतिक पंडित हिंदू मतदाताओं की मानसिकता से खेलने के लिए एक सुनियोजित कदम के रूप में देख रहे हैं। योगी जी का स्पष्ट संदेश स्पष्ट है कि समुदाय के हितों की रक्षा के लिए हिंदू एकता आवश्यक है और कोई भी चुनावी निर्णय जो इस एकता से विचलित होता है, हानिकारक हो सकता है। कट्टर हिंदुत्व इमेज वाले मुख्यमंत्री के इस पुनरावतार का पहला संकेत 24 अगस्त को उस समय मिला जब मुख्यमंत्री योगी ने बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न की खबरों के बाद भड़काऊ नारा “बटोगे तो कटोगे” बुलंद किया। यह नारा हिंदू मतदाताओं से एक साथ खड़े होने की सीधी अपील थी। लगभग एक महीने बाद 22 सितंबर को उन्होंने हरियाणा के करनाल की एक चुनावी रैली में इस नारे को दोहराया और फिर अगले दिन 23 सितंबर को मिर्जापुर में एक सार्वजनिक सभा में इस नारे को बुलंद किया। योगी जी ने कहा आक्रांताओं ने अयोध्या में भगवान रामलला के भव्य मंदिर को तोड़कर गुलामी का प्रतीक एक संरचना क्यों बनाई? इसका उत्तर हमारी एकता में ही छुपा है। तब हम बटे थे और कटे थे। इसलिए हमें बंटना नहीं चाहिए। थोड़े थोड़े अंतराल के बाद अपनाया जाने वाला मुख्यमंत्री योगी का हिंदुत्व का आक्रामक रूप और उनके आक्रमक बयानों को केवल बयानबाजी नहीं कहा जा सकता बल्कि यह सुनिश्चित करने का एक रणनीतिक प्रयास है जिसके सहारे वो इन उपचुनावों में जीत हासिल कर विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देना चाहते हैं। मुख्यमंत्री योगी को अच्छी तरह मालूम है कि ये उप चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य को बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं, खासकर भाजपा के भीतर अंतरकलह को देखते हुए । इस साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार ने योगी जी की प्रतिष्ठा को बुरी तरह हिला दिया था और पार्टी के भीतर असंतोष तेज होता जा रहा था। मुख्यमंत्री योगी के आंतरिक आलोचक उपचुनावों को उनके नेतृत्व के लिए एक लिटमस टेस्ट के रूप में देखते हैं। जीत उनकी स्थिति को मजबूत करेगी लेकिन हार उनके विरोधियों को मजबूत करेगी जिससे उन्हें पार्टी के भीतर उनके अधिकार को चुनौती देने के लिए आवश्यक विस्फोटक मिल जाएगा।
अगर योगी जी इन उपचुनावों में जीत हासिल करने में नाकाम रहते हैं तो भाजपा के भीतर उनके विरोधी इस हार का इस्तेमाल उनके खिलाफ एक हथौड़े की तरह कर सकते हैं, उनके नेतृत्व को गंभीर रूप से कमजोर कर सकते हैं। इसलिए योगी आदित्यनाथ हिंदू गौरव, एकता या ‘कटोगे तो बटोगे’ जैसी बातें कर रहे हैं, दरअसल यह एक सोची-समझी राजनीतिक चाल है क्योंकि आगामी उपचुनाव केवल विधानसभा की सीटों के लिए नहीं हो रहे हैं, इन सभी दसों सीटों पर हार जीत से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, नतीजों से न तो सरकार बहुत उठ जाएगी और न ही गिर जाएगी लेकिन योगी जी के राजनीतिक अस्तित्व को इन उपचुनावों के नतीजे बना और बिगाड़ ज़रूर सकते हैं. लड़ाई इसी बात की है. एक बात और वो ये कि जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं वहां भाजपा के प्रभुत्व की परीक्षा हुई है। यहां हार योगी जी के आलोचकों को भाजपा और विपक्षी दलों दोनों के भीतर, उनके नेतृत्व और प्रभाव पर सवाल उठाने का मौका देगी। योगी जी अच्छी तरह जानते हैं कि इन उपचुनावों में एक शानदार जीत से उनकी मज़बूत स्थिति की पुष्टि तो होगी ही उनके आलोचकों को एक मजबूत संदेश भी देगी कि वे एक मजबूत राजनीतिक ताकत बने हुए हैं।
चुनाव करहल (मैनपुरी), सीसामऊ (कानपुर), मिल्कीपुर (अयोध्या), गाजियाबाद, कथेरी (अंबेडकर नगर), मझवान (मिर्जापुर), फूलपुर (इलाहाबाद), कुंदरकी (मुरादाबाद), खैर (अलीगढ़) और मीरापुर (मुजफ्फरनगर) विधानसभा क्षेत्र में होने हैं जिसमें मिल्कीपुर (अयोध्या) की सीट सबसे महत्वपूर्ण है, योगी जी के लिए भी, मोदी जी के लिए भी और भाजपा के लिए भी, विशेषकर लोकसभा चुनाव में फैज़ाबाद (अयोध्या) में मिली तगड़ी हार के बाद. इसीलिए राम मंदिर और विदेशों में हिंदुओं के उत्पीड़न जैसे भावनात्मक मुद्दों को उठाकर मुख्यमंत्री योगी हिंदू मतदाताओं को एक साझा मुद्दे के तहत एकजुट करने का लक्ष्य बना रहे हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न का उनका लगातार संदर्भ और बंटवारे के परिणामों के बारे में उनकी चेतावनी हिन्दू मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश है. ये उपचुनाव सिर्फ़ राजनीतिक शक्ति का परीक्षण नहीं बल्कि हिंदुत्व पर जनमत संग्रह भी बन गए हैं या बनाये जा रहे हैं। आने वाले हफ़्तों में हिंदू एकता, गौरव और सांस्कृतिक पहचान पर योगी का ध्यान और भी तेज़ होगा क्योंकि वो हिंदुत्व का पोस्टर बॉय वाली इमेज को फिर से उभारना चाहते हैं। अपने राजनीतिक करियर को बचाने के लिए मुख्यमंत्री योगी हिंदुत्व पर भारी दांव लगा रहे हैं, क्योंकि जीत का ताला खोलने के लिए उनके पास यही कुंजी है, जो आने वाले समय में प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य को एक आकार दे सकती है. इसी प्रयास में आज उन्होंने सावन के महीने में ढाबों, होटलों, ठेले पर फल फ्रूट बेचने वालों के नाम उजागर करने वाले आदेश को जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से रद्द करना पड़ा था, एक नए रूप में जारी किया है. इसबार भले ही वो मिलावट बंद करने और शुद्धता सही करने का बहाना ले रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं मकसद पुराना ही है, ऐसी सभी जगहों, प्रतिष्ठानों पर मालिकों और मैनेजरों के नाम पते, टेलीफोन लिखना अनिवार्य कर दिया है ताकि लोगों को पता चल सके कि दरअसल ये ढाबा, ये होटल किसका है. इस नए आदेश को भी चुनावी रणनीति की नज़र से देखा जा रहा है लेकिन योगी जी पर इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। सुप्रीम कोर्ट फिर अड़ंगा लगाएगा तो वो इसे फिर नए रूप लेकर आएंगे।