छठ पर्व से लोगों की आस्था जुड़ी है। चार दिनों तक चलने वाला सूर्य उपासना का ये पर्व धन, धान्य और सेहत से मालामाल करने वाला होता है। इसका व्रत सभी व्रतों में कठिन माना जाता है। इसी कारण से इसको महापर्व भी कहा जाता है। यह आस्था नहीं, वैज्ञानिक कारणों से अनूठा महापर्व है। छठ पर्व के मौके पर चतुर्थी को लौकी और भात का सेवन शरीर को व्रत के अनूकूल तैयार किया जाता है।
आयुर्वेदाचार्य डा0 ब्रज भूषण शर्मा की माने तो पंचमी को निर्जला व्रत के बाद गन्ने के रस व गुड़ से बनी खीर पर्याप्त ग्लूकोज मात्रा प्रदान करने वाली होती है। छठ पर्व में बनाए जाने वाले प्रसाद में कैल्शियम भी अच्छी मात्रा मौजूद होती है। उपवास की स्थिति में मानव शरीर प्राकृतिक कैल्शियम का अधिक उपभोग करता है।
प्रकृति में सबसे अधिक विटामिन डी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होता है। अर्घ्य का समय यही होता है। अदरक और गुड़ खाकर पर्व समाप्त करना भी शरीर के लिए लाभाकारी माना गया है। विज्ञान के मुताबिक उपवास के बाद गरिष्ठ भोजन हानिकारक होता है। विज्ञान के नजरिए से देखें तो दीपावली के बाद सूरज का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। व्रत के साथ सूर्य के ताप से ऊर्जा का संचय किया जाता है। इससे सर्दी में भी शरीर स्वस्थ रहता है।
ठंड के मौसम के शुरूआत में शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं। जिसका प्रभाव पाचन तंत्र पर भी पड़ता है। छठ पर्व का 36 घंटों का उपवास पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है। यही नहीं, छठ पूजा एक तरह से प्रकृति की पूजा मानी जाती है। नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे ये पूजा की जाती है। जो सफाई और नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए भी प्रेरित करती है। छठ पर्व के दौरान केला, गन्ना,सेब सहित कई फलों का प्रसाद के रूप में पूजन किया जाता है। इससे वनस्पति महत्व बढ़ता है।