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AAP की हार से कांग्रेस क्यों है खुश?

आर्टिकल/इंटरव्यूAAP की हार से कांग्रेस क्यों है खुश?

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अमित बिश्नोई
दिल्ली की सत्ता से आम आदमी पार्टी की विदाई हो गयी है, भाजपा की 26 साल बाद वापसी हुई है. हरियाणा की तरह दिल्ली में भी ऐसे लोगों की संख्या कम ही थी जो यह कह रहे थे कि केजरीवाल और उनकी पार्टी हार सकती है. आप सरकार से नाराज़गी के बावजूद भी लोग यही मान रहे थे कि सरकार तो आम आदमी पार्टी ही बनाएगी भले ही सीटों की संख्या में कमी हो जाय. मगर जब नतीजे आये तो पडोसी हरियाणा जैसा ही कारनामा भाजपा ने दोहराया और सभी राजनीतिक पंडितों को झूठा साबित किया। अब यही राजनीतिक पंडित आम आदमी पार्टी की हार का पोस्टमॉर्टेम कर रहे हैं और ज़्यादातर लोगों का मानना है कि यह कारनामा कांग्रेस की वजह से मुमकिन हुआ है. कांग्रेस पार्टी ने एकबार फिर कोई सीट हासिल नहीं की लेकिन 14 ऐसी सीटें रहीं जहाँ पर कांग्रेस पार्टी ने इतना वोट हासिल किया जो आप के उम्मीदवारों की हार का सीधा कारण बना, इसी के साथ केजरीवाल के खिलाफ एक ऐसा माहौल भी तैयार किया जो स्वच्छ और शरीफ नेता होने के उनके दावे को चकनाचूर किया। दिल्ली के चुनाव में सिर्फ आम आदमी पार्टी हारी ही नहीं है, बल्कि उसके विशवास को भी ज़बरदस्त ठेस पहुंची है क्योंकि आम आदमी पार्टी का हर बड़ा नेता, सिवाए मुख्यमंत्री आतिशी के सभी को हार मिली, इसमें सबसे ख़ास हार तो अरविन्द केजरीवाल की रही जिन्हें कांग्रेस के संदीप दीक्षित को मिले वोटों के अंतर ने हरा दिया।

केजरीवाल की हार के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने उन कर्मों की सजा मिली जो उन्होंने 2013-14 में किये थे. ये कर्म थे उस समय की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जो संदीप दीक्षित की माँ थीं, उनपर इतने अनर्गल आरोप लगाए जिसने उनकी इमेज को बड़ा नुक्सान पहुँचाया। हालाँकि केजरीवाल के वह सारे आरोप झूठे साबित हुए जो उनके 11 साल की सरकार में भी झूठे ही रहे. समय ने पलटा खाया और केजरीवाल पर भी उसी तरह के आरोपों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्हें तो जेल भी जाना पड़ा. केजरीवाल ने शीला दीक्षित की इमेज को एक नैरेटिव गढ़ कर जिस तरह खराब किया वैसे ही उनकी इमेज भी अब एक करप्ट नेता के रूप में बन गयी. खैर बात हो रही थी कि क्या वाकई कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी की हार की वजह है, जैसा कि राजनीतिक पंडित राग अलाप रहे हैं. यहाँ पर सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी पर अपने विरोधियों को जिताने की ज़िम्मेदारी है. विरोधी इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में लोकसभा चुनावों को छोड़कर हर जगह कांग्रेस पार्टी का विरोध किया है. यह बात अलग है कि दोनों ही पार्टियां इंडिया ब्लॉक् का हिस्सा हैं.

चलिए समझते हैं कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को टारगेट क्यों किया। शुरुआत करते हैं 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से. उस चुनाव में यह लगभग तय माना जा रहा था कि मोदी जी के गुजरात में भाजपा की हार संभव है, कांग्रेस पार्टी के लिए उस चुनाव में एक मोमेंटम बना हुआ था। उस चुनाव में भाजपा को 49.05% वोट हासिल हुआ और 99 सीट पर जीत मिली, वहीँ कांग्रेस को 43.20% वोट मिला और 80 सीट पर जीत हासिल की. यहाँ पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मतों का अंतर 6% का था. कांग्रेस को दलित, आदिवासी, पटेल और मुस्लिम समुदाय का जबरदस्त समर्थन मिला और गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस ने स्वीप कर दिया। लेकिन 2022 के चुनाव में गुजरात में भाजपा की इंट्री हुई और उसे 12.82% प्रतिशत वोट मिले और पांच सीटों के साथ अपना खाता खोला, ज़ाहिर सी बात है गुजरात में आप ने कांग्रेस की ज़मीन में ही सेंधमारी की जिसकी वजह से उसका वोट 43.20% से घटकर 27.52% रह गया और सीटें 88 से घटकर 17 रह गयीं। यह गुजरात में कांग्रेस पार्टी का सबसे ख़राब प्रदर्शन बन गया वहीँ भाजपा को AAP की इंट्री का फायदा मिला और उसने 156 सीटें जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

दरअसल 2 साल पहले 2020 में दिल्ली चुनाव और फिर पंजाब जीतने के बाद लोगों में AAP के प्रति विशवास बढ़ा और गुजरात के लोगों ने भी सोचा कि चलो कांग्रेस के विकल्प के रूप में AAP को आज़माया जाय, इसी सोच ने गुजरात में आम आदमी पार्टी को 12 प्रतिशत वोट और 5 सीटें दिलाई। अब दिल्ली हार के बाद बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वो अब गुजरात में वोटर को आकर्षित कर पायेगी या फिर भाजपा और दशकों से कायम उसकी सत्ता से परेशान लोग एकबार फिर कांग्रेस पार्टी की तरफ लौटेंगे। ऐसा ही गोवा और उत्तराखंड चुनाव 2022 में भी हुआ था. गोवा में भाजपा को 33.31% और कांग्रेस को 25.30% वोट मिले थे, वहीँ आम आदमी पार्टी को 6.77% और TMC को 5.21% हासिल हुआ. दोनों का कुल वोट शेयर 11. 98 प्रतिशत रहा जिसने कांग्रेस की उम्मीदों को ख़त्म किया और एकबार फिर भाजपा की सरकार बन गयी. इसी तरह का परिदृश्य उत्तराखंड में भी रहा और आप कांग्रेस की राह का रोड़ा बनी और धामी दोबारा सीएम बन गए.

आम आदमी पार्टी से इतने झटके खाने के बाद अब कांग्रेस पार्टी को होश आया कि भाजपा जहाँ सामने की दुश्मन है, वहीँ आम आदमी पार्टी साइड से वार करती है , बल्कि जड़ों को काटती है. शायद यही कारण है कि हर बार दिल्ली विधान सभा के चुनाव में खुदको बैकफुट पर कर लेने वाली कांग्रेस पार्टी ने पुरानी गलती नहीं दोहराई
. कांग्रेस पार्टी की दिल्ली आप के प्रति उदारता से अन्य राज्यों में भी AAP की हवा बन जाती थी. कांग्रेस पार्टी के इस नए रुख से अब आप गुजरात, गोवा, हरियाणा और असम जैसे राज्यों में परेशान नहीं कर पाएगी। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी शून्य पर रहकर भी खुश है.

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