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अखिलेश के निशाने पर योगी से ज़्यादा केशव प्रसाद क्यों?

आर्टिकल/इंटरव्यूअखिलेश के निशाने पर योगी से ज़्यादा केशव प्रसाद क्यों?

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अमित बिश्नोई
अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच सोशल मीडिया पर जुबानी जंग अब लगातार बढ़ती जा रही है, इसकी कई वजह बताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों या महीनों में 10 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों का ये खाका बुना जा रहा है, ज़मीन तैयार की जा रही है. चूँकि निर्वाचन आयोग उपचुनाव कब कराएगा इसके बारे में किसी को नहीं मालूम , इसीलिए राजनीतिक माहौल लगातार गर्म रहना चाहिए और इसके लिए बयानबाजियां भी जारी रहनी चाहिए और बयानबाजियां भी ऐसी जो मीडिया में सुर्खियां भी बने. हाल के हफ्तों को देखा जाय तो दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर खूब तीखे हमले किए हैं और एक-दूसरे को मात देने की कोशिश की है. हालाँकि अखिलेश का मुख्य निशाना तो बाबा जी यानि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ही रहते हैं लेकिन केशव प्रसाद मौर्य पर भी उनके शब्द बाण लगातार चलते रहते हैं और योगी जी के उपमुख्यमंत्री की तरफ से जवाबी तीरंदाज़ी भी खूब होती है। यहाँ पर सवाल ये उठ रहा है कि अखिलेश के निशाने पर केशव प्रसाद मौर्य क्यों हैं , उन्हें तो सीधा योगी आदित्यनाथ को टारगेट करना चाहिए, उनका स्टेटस भी योगी जी को ही टारगेट करने वाला है मगर योगी जी से ज़्यादा वो केशव प्रसाद पर अटैक कर रहे हैं, ऐसे में अखिलेश क्या खेल खेल रहे हैं, ये बात चर्चा का विषय भी बनी हुई है.

दरअसल अखिलेश की पूरी राजनीति अब PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर टिक चुकी है. लोकसभा चुनाव में उनका PDA दांव खूब कामयाब भी रहा और समाजवादी पार्टी की सीटें पांच से बढ़कर 37 पहुँच गयीं। शायद इसलिए उनके निशाने पर केशव प्रसाद मौर्य हैं क्योंकि उनपर हमले उनके कई राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्य भी पूरे कर रहे हैं. चूँकि केशव प्रसाद मौर्य इन दिनों भाजपा के अंदर चल रही विभाजनकारी गतिविधियों का केंद्र बिंदु बने हुए हैं. केशव मौर्य चूँकि पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए वो अपने बयानों से केशव प्रसाद मौर्य को और उकसा रहे हैं ताकि भाजपा के अंदर पिछड़े समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों को और उजागर किया जा सके। अखिलेश यादवों और पिछड़ों के बीच समर्थन को मजबूत बनाना चाहते हैं जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और बड़ा वोट बैंक है।

दोनों नेताओं के बीच काउंटर पोस्ट का आदान-प्रदान कई महीनों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में यह कुछ ज़्यादा हो गया। जुलाई में योगी और मौर्य के बीच चरम टकराव के समय अखिलेश ने 16 जुलाई को एक वन लाइनर लिखा था “लौट के बूढ़े घर केपी आए”। क्योंकि तब केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश अध्यक्ष के साथ दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात और ये बताने के बाद कि लोकसभा चुनाव में हार की मुख्य वजह क्या थी वो लखनऊ लौटे थे। अखिलेश की पोस्ट पर तब केशव प्रसाद मौर्य ने काउंटर करने में देर नहीं लगाईं थी और अखिलेश के PDA को एक धोखा बताया था और दावा किया था कि 2027 के चुनाव में भाजपा ही भारी पड़ेगी। हालाँकि कल रात ही आजतक चैनल ने जो मूड ऑफ़ दि नेशन के नाम पर सर्वे जारी किया उसमें कहा गया है कि यूपी में अखिलेश का दबदबा कायम है और उनके साथ राहुल गाँधी की जोड़ी हिट है, हाँ योगी जी ने ज़रूर इस बारे में बाज़ी मारी है कि वो देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री बताये गए हैं. ऐसे समय में जब योगी जी के सामने उपचुनाव एक परीक्षा की तरह हैं, उनके लिए ये सर्वे अच्छी खबर लाया और योगी जी के लिए अच्छी खबर केशव प्रसाद मौर्य के लिए बुरी खबर ही कही जाएगी, हालाँकि इस सर्वे रिपोर्ट से दो दिन पहले ही वो योगी जी को सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री घोषित कर चुके थे, शायद सी वोटर के सर्वे से ये बात लीक हुई होगी और योगी जी के उपमुख्यमंत्री को पता चल गयी होगी.

खैर बात अखिलेश और केशव प्रसाद की चल रही है तो अखिलेश यादव का कुछ दिनों पहले दिया गया मानसून ऑफर काफी चर्चा में रहा था, इसे केशव प्रसाद मौर्य पर हमला बताया गया था. यही नहीं कायरता का मोहरा और दिल्ली के वाई-फाई का पासवर्ड जैसी बात भी मौर्य को लेकर ही थी. वैसे दोनों ही नेता इस बात का ध्यान ज़रूर रखते हैं कि अपने व्यंग बाणों के दौरान एक दूसरे का नाम नहीं लेते। अभी 69,000 शिक्षकों की भर्ती सूची संशोधित करने के मामले में उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी अखिलेश ने कहा था कि जो दर्द देते हैं, उन्हें दवा देने का दावा नहीं करना चाहिए! अखिलेश ने भर्ती प्रक्रिया के दौरान आरक्षण अधिकारों के कथित हेरफेर में एक “पसंदीदा उपमुख्यमंत्री” की मिलीभगत का आरोप भी लगाया था। तब पसंदीदा उपमुख्यमंत्री ने भी अखिलेश को सपा बहादुर बुलाते हुए कांग्रेस पार्टी का मोहरा बताया था और साथ ही झूठ बोलने वाली मशीन भी. मौर्य ने इस विवाद में मुलायम सिंह यादव को शामिल कर लिया था और कहा था कि धरती पुत्र ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा कि उनका टीपू गाँधी परिवार का दरबारी बन जायेगा। दरअसल केशव मौर्य अखिलेश यादव के उस बयान से तिलमिलाए हुए थे जिसमें उन्हें नाकारा डिप्टी कहा गया था और कहा गया था कि लोकसभा चुनाव में इतनी बुरी हार के बाद के बाद अगर मुख्यमंत्री अच्छा काम कर रहे हैं तो फिर दो दो डिपटियों की क्या ज़रुरत?

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद केशव मौर्य एक तरफ जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाने साध रहे थे वहीँ पिछड़ा वर्ग के हर मंच पर वो मौजूद नज़र आने लगे थे. पार्टी के अंदर पिछड़ों को लेकर उनकी सियासी सरगर्मियां भी काफी तेज़ हो गयी थीं. उन्हें 2027 में अपनी दावेदारी दिखाई देने लगी थी, इधर अखिलेश यादव PDA की सफलता के घोड़े पर सवार हो चुके हैं, उन्हें लग रहा है कि PDA का उत्तर प्रदेश में जो मौसम बना है उसे बरकरार रखना है, उन्हें उम्मीद है कि PDA ही उनकी सत्ता में वापसी करा सकता है यही वजह है कि उत्तर प्रदेश भाजपा में पिछड़ों के सर्वमान्य नेता केशव प्रसाद मौर्य पर लगातार हमले करके अखिलेश यादव उन्हें अस्थिर करना चाहते हैं. मौर्य की अस्थिरता से अखिलेश को पिछड़ों और यादवों को और करीब लाने में मदद मिलेगी, मुसलमानों को तो वो वैसे भी अपनी जागीर समझते है, यही वजह है कि अखिलेश के निशाने पर योगी आदित्यनाथ से ज़्यादा केशव प्रसाद मौर्य रहते हैं।

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