अमित बिश्नोई
वरुण गाँधी अब चुनाव नहीं लड़ेंगे, ऐसा मैं नहीं बल्कि पीलीभीत से भाजपा और वरुण के समर्थक कहने लगे हैं. हालाँकि इससे पहले यही लोग कह रहे थे कि वरुण गाँधी पीलीभीत से ही चुनाव लड़ेंगे लेकिन अब इन लोगों का मानना है कि वरुण गाँधी के साथ छल किया गया है जिससे वो बहुत निराश हैं और चुनाव न लड़ने का फैसला किया है. अब इन बातों में कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। एक राजनेता चुनाव न लड़े, थोड़ा मुश्किल होता है. वरुण गाँधी फिलहाल इस मामले में बिलकुल चुप नज़र आ रहे हैं और उनकी चुप्पी की वजह से ही उन्हें लेकर अफवाहों का बाजार काफी गर्म है। हर चुनावी पंडित उन्हें तरह तरह की सलाह दे रहा है. उन्हें निर्दलीय लड़ने की सलाह दी जा रही है, सपा से उन्हें ऑफर भी मिला हुआ है, सपा का पीलीभीत से प्रत्याशी उनके लिए सीट भी खाली करने को तैयार है और कांग्रेस में भी जाने की सलाह देने वालों की भी कोई कमी नहीं है, वैसे कांग्रेस पार्टी के अधीर रंजन ने भी वरुण को कांग्रेस में आने का ऑफर दे दिया है, अब इसे क़ुबूल करना या न करना उनका काम है। वहीँ कई राजनीतिक पंडित कह रहे हैं पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
इस सब अफवाहों और सलाहों के बीच वरुण गाँधी क्या फैसला करने वाले हैं ये देखने वाली बात होगी। वरुण की माताश्री मेनका गाँधी को तो भाजपा ने सुल्तानपुर से बरक़रार रखा है लेकिन वरुण का पीलीभीत से पत्ता काट दिया। अब पीलीभीत से वरुण का पत्ता भाजपा ने किसी रणनीति के तहत काटा या फिर अनुशासन तोड़ना ही उसकी वजह है. अनुशासन की बात अगर कहें तो वो तो वरुण गाँधी लम्बे समय से करते आये हैं, 2019 से पहले भी वो भाजपा नेतृत्व को परेशानी में डाल चुके हैं, 2019 के बाद भी लगातार उनके बयानों से भाजपा लगातार असहज रही है. समय समय पर वरुण को पार्टी से हटाने की बाते भी उठीं लेकिन भाजपा की तरफ से किसी आधिकारिक नेता ने कभी कुछ इस मुद्दे पर नहीं कहा. वरुण के टिकट कटने पर वैसे तो किसी को कोई हैरानी नहीं हुई लेकिन वरुण ने कभी पार्टी से बगावत नहीं की, कभी किसी व्हिप का उल्लंघन नहीं किया. तो भाजपा को वरुण से कोई नुक्सान तो था नहीं, वरुण एक जिताऊ उम्मीदवार हैं इसमें कोई शक नहीं और भाजपा को तो सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार ही चाहिए। कम से कम जितिन प्रसाद से वरुण का विनिंग रेश्यो तो बहुत ज़्यादा है. बल्कि सौ प्रतिशत है।
तो क्या सौ प्रतिशत विनिंग रेशियो वाले उम्मीदवार को भाजपा ऐसे ही जाने देगी। वरुण ने तीन लोकसभा चुनाव लड़े और तीनों ही जीते। पहले पीलीभीत से, फिर सुल्तानपुर से और एकबार फिर पीलीभीत से. अपनी माँ मेनका के साथ उनकी सीटों की अदला बदली हुई और इसबार भी यही कहा जा रहा था कि वरुण गाँधी को भाजपा पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर से फिर चुनाव लड़ाएगी ताकि पड़ोस की रायबरेली सीट पर उसका प्रभाव पड़ सके. माना जा रहा है कि सोनिया गाँधी के चुनावी राजनीती से हटने के बाद यहाँ से गाँधी फैमिली का ही कोई व्यक्ति कांग्रेस का नेतृत्व करेगा और उसमें भी प्रियंका गाँधी के चांसेस ज़्यादा हैं. हालाँकि ऐसा कुछ नहीं हुआ, सुल्तानपुर से मेनका ही उम्मीदवार हैं तो ऐसे में क्या वाकई में वरुण गाँधी का भाजपा से चैप्टर ख़त्म हो चूका है.
भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने हिस्से की 75 सीटों में से 63 पर उम्मीदवारी पेश कर चुकी है, अभी एक दर्जन सीटों पर उसे अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान करना है. इन एक दर्जन सीटों में रायबरेली, अमेठी और मैनपुरी की तीन VIP सीटें हैं, इसके अलावा मछलीशहर, कैसरगंज, प्रयागराज, फुलपुर, कौशांबी, बलिया, गाजीपुर, भदोही, देविरया और फिरोजाबाद सीटें अभी रिक्त हैं। अब सवाल ये है कि अगर वरुण गाँधी का अभी भाजपा से चैप्टर पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है तो इन 12 में से किस सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाया जायेगा। क्या भाजपा इस बार भाई भाई या भाई-बहन के संभावित मुकाबले की पटकथा लिख रही है और अगर कुछ नहीं है तो फिर वरुण के पास विकल्प क्या हैं।
क्या वरुण स्वतंत्र रूप से मैदान में जायेंगे या फिर जैसा कि सपा ने ऑफर दिया है तो उसको एक्सेप्ट करेंगे। ऐसा करने से भाजपा विचलित ज़रूर होगी और उसका असर सुल्तानपुर के चुनाव पर भी पड़ सकता है. यहाँ पर कांग्रेस में वरुण के जाने की बात को तो मैं सिरे से नकारता हूँ. मेनका के रहते ऐसा होना लगभग असंभव है। तो फिर क्या वरुण वाकई घर बैठ जाएंगे, बड़ा मुश्किल सवाल है ये, वक्त ही इसका जवाब दे सकता है लेकिन मैं सोच रहा हूँ कि वरुण गाँधी पर क्या मास्टरस्ट्रोक आना अभी बाकी है. सवाल ये भी है कि ये मास्टरस्ट्रोक किधर से आएगा, इंतज़ार कीजिये, मैं भी कर रहा हूँ.