तौक़ीर सिद्दीक़ी
पांच नहीं तो 25 के बाद राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं, लगातार दो दिनों में समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं के तरफ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लेकर आये बयानों से महाराष्ट्र में सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही महाविकास अघाड़ी की धड़कने बढ़ी हुई हैं. इनमें से एक बयान महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता अबू आज़मी का है और दूसरा समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का. अबू आज़मी ने साफ़ तौर पर MVA को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि अगर गठबंधन सपा को पांच सीटें नहीं देता है तो फिर हम 25 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वहीँ अखिलेश यादव ने भी वार्निग देते हुए कहा कि अगर MVA अपने गठबंधन में समाजवादी पार्टी को जगह नहीं देता है तो फिर हम हर उस सीट पर चुनाव लड़ेंगे जहाँ हमारी पोजीशन मज़बूत है, हालाँकि सपा मुखिया ने सीटों की संख्या नहीं बताई। अखिलेश यादव ने इसके साथ ये बात भी स्पष्ट कर दी कि राजनीति में त्याग जैसी कोई चीज़ नहीं होती, राजनीती में इसकी जगह ही नहीं है।
बता दें कि हरियाणा में जब सपा ने चुनाव लड़ने का फैसला किया तो कहा गया कि कांग्रेस के लिए अखिलेश ने त्याग किया है. लेकिन अब अखिलेश ने खुद ही बता दिया कि वो त्याग नहीं था बल्कि एक रणनीति थी क्योंकि आमने सामने की लड़ाई में हरियाणा में कोई भी पार्टी के टिकने की सम्भावना ही नहीं थी, इसलिए हरियाणा में अखिलेश का पीछे कदम हटाने का फैसला शुद्ध रूप से राजनीतिक ही था. राष्ट्रीय पार्टी बनने की चाहत को जल्द पूरा करने के लिए अखिलेश यादव अब लगभग हर राज्य के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं, उन्होंने हरियाणा में भले ही अपने उम्मीदवार नहीं उतारे लेकिन जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में 20 से ज़्यादा सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये थे, ये अलग बात है कि सबकी ज़मानत ज़ब्त हो गयी.
अखिलेश यादव महाराष्ट्र में चुनाव लड़ेंगे और झारखण्ड में भी. हालाँकि उनकी पहली कोशिश यही है कि इंडिया ब्लॉक के गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा जाय क्योंकि महाराष्ट्र हो या झारखण्ड दोनों राज्यों में भाजपा विरोधी पार्टियों के अलग अलग गठबंधन है. महाराष्ट्र में जहाँ शिवसेना यूबीटी, एनसीपी शरद पवार और कांग्रेस का MVA के नाम से गठबंधन है, वहीँ झारखण्ड में JMM और कांग्रेस का गठबंधन है. अखिलेश चाहते हैं कि दोनों ही राज्यों में ये विशेष गठबंधन न लड़कर इंडिया ब्लॉक चुनाव लड़े और उसमें सपा समेत और भी सहयोगी पार्टियों को जगह मिले। यही वजह है कि अखिलेश यादव की पहली कोशिश यही है कि उन्हें महाराष्ट्र में MVA के अंदर शामिल समझा जाय.
दरअसल समाजवादी पार्टी जिन पांच सीटों की मांग कर रही है उनपर पहले ही शिवसेना और कांग्रेस ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। ये सीटें हैं भिवंडी पूर्व, भिवंडी पश्चिम, मालेगांव सेंट्रल, मानखुर्द और धुले. अबू आज़मी ने इन्हीं पांच सीटों को लेकर कहा था कि अगर ये पांच सीटें नहीं मिली तो फिर हम 25 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, हालाँकि अखिलेश यादव का लहजा अबू आज़मी जैसा नहीं है, उनका कहना है कि जहाँ पर सपा का वोट होगा वहीँ पर हम चुनाव लड़ेंगे क्योंकि हमारा मकसद MVA को नुक्सान पहुँचाना नहीं है लेकिन ये भी हकीकत है कि राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं है. ये बात अलग है कि महाराष्ट्र में इन्हीं पांच सीटों पर मुस्लिम वोटों की वजह से सपा को उम्मीदें हैं जिन्हें अपना वोट बैंक समझती है. अखिलेश ने ये बयान देकर MVA घटक दलों को अपना सन्देश पहुंचा दिया है कि वो त्याग करने वाले नहीं, अगर उनको उनका हिस्सा नहीं मिला तो फिर उसे हासिल करने के लिए वो दूसरा कदम भी उठा सकते हैं. हालाँकि इस बात को भी समझना होगा कि जब MVA की तरफ से 18 सीटें गठबंधन से बाहर के अन्य दलों के लिए छोड़ी गयी हैं तो फिर सपा की तरफ से ये बयान बाज़ी क्यों?
दरअसल ‘बात सीटों की नहीं जीत की है’, ये बात और किसी ने नहीं, अखिलेश यादव ने कही थी, यूपी उपचुनाव में कांग्रेस के साथ सीटों के तालमेल पर. अब वही बात महाराष्ट्र में भी लागू होती है. MVA की अघोषित 18 सीटों में सपा को पांच सीटें आराम से मिल सकती हैं लेकिन बात वही जीत की आती है और इसीलिए सपा उन ख़ास पांच सीटों का नाम ले रही है जहाँ पर उसके जीत की सम्भावनाये बन सकती हैं लेकिन उनमें से तीन सीटें पहले ही बुक हो चुकी हैं, दो सीटें सपा को मिल जाएगी मगर बाकी की तीन सीटें सपा के लिए बिलकुल वैसे ही हैं जैसे उसने यूपी में कांग्रेस के लिए खैर और गाज़ियाबाद की सीट छोड़ी थी जिसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था क्योंकि दोनों ही जगह पर उसकी जीत का दूर दूर तक कोई मौका नहीं था. कांग्रेस इसीलिए तीसरी सीट के रूप में फूलपुर की सीट मांग रही थी जहाँ पर उसकी जीत का मौका बनता था मगर अखिलेश ने उसपर पहले से उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस के लिए रास्ता बंद कर दिया और कांग्रेस को मजबूर होकर ये कहते हुए उपचुनाव से हटना पड़ा कि भाजपा को हराने के लिए ये त्याग ज़रूरी था लेकिन सभी को मालूम है कि ये त्याग नहीं था, अखिलेश यादव की इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं होती, सभी अवसर के हिसाब से स्थितियों को त्याग का नाम दे देते हैं.