पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
एक मान्यता के अनुसार, राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। बस वही सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी, इसे सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। माना जाता है की कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे।
जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है।
पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने को कहा। बाद में महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ।
जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।'
देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।