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Vishwanath Mandir Guptkashi: उत्तराखंड में भी है विश्वनाथ मंदिर जहां विलुप्त हो गए थे भगवान शिव

Vishwanath Mandir Guptkashi

रुद्रप्रयाग- आपने काशी के विश्वनाथ मंदिर के बारे में तो पढ़ा ही होगा , आज हम आपको उत्तराखंड में स्थित “विश्वनाथ मंदिर” के बारे में बताते हैं जो तीन काशी पहला बनारस दूसरा उत्तरकाशी तीसरा गुप्तकाशी में स्थित है. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के गुप्तकाशी कस्बे में स्थित यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और केदारनाथ यात्रा का एक अहम पड़ाव भी माना जाता है. महाभारत काल की घटना से जुड़ा हुआ यह मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं एवं पौराणिकता के लिए जाना जाता है . यहां चार धाम यात्रा के दौरान हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. गुप्तकाशी के इर्द-गिर्द बर्फीली पहाड़ियां, प्राकृतिक सौंदर्य और यहां का सुहाना मौसम आने वाले श्रद्धालुओं के लिए परफेक्ट डेस्टिनेशन बनता जा रहा है.

केदारनाथ की तर्ज पर निर्माण

विश्वनाथ मंदिर के धार्मिक मान्यता और महत्ता को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर निर्मित इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों और द्वारपाल स्थित है. बाहरी मुखोटे कमल के साथ बनाया गया है. जबकि प्रवेश द्वार पर सबसे ऊपर भैरव की आकृति स्थित है जो कि भगवान शिव का रूप माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों को अपने भाइयों की हत्या का दोष लगा तो वह भगवान शिव की तपस्या के लिए हिमालय की ओर चल दिए. लेकिन पांडवों से नाराज भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे. कहा जाता है कि जब भगवान भोलेनाथ इस स्थान पर ध्यान में थे तो पांडव उनके पीछा करते हुए यहां पहुंच गए. जिसके बाद भगवान शिव ने नंदी का रूप धारण कर विलुप्त (गुप्त)हो गए. जिसके बाद इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा. यह मंदिर उन्हीं का प्रतीक है माना जाता है कि यहां से विलुप्त होकर भगवान भोलेनाथ पंच केदार के रूप में अलग-अलग जगह पर प्रकट हुए.

अर्धनारीश्वर मंदिर

मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन मंदिर के पास अर्धनारीश्वर मंदिर स्थित है अर्धनारीश्वर यानी आधा पुरुष औअर्धनारीश्वर यानी आधा पुरुष औ और आधी नारी यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को विवाह का प्रस्ताव इसी जगह पर रखा था जिसके बाद त्रिजुगीनारायण में दोनों का विवाह संपन्न हुआ. मंदिर परिसर में एक मणिकर्णिका कुंड कुंडली स्थित है. इस पवित्र कुंड में गंगा और यमुना की दो जल जल धाराएं बहती हैं.

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