उत्तरकाशी- देवभूमि उत्तराखंड अपने धार्मिक स्थलों और पर्यटन स्थलों के लिए विश्व भर में जानी जाती है. आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसी ‘गली’ के बारे में बताते हैं जो न केवल पर्यटन के लिहाज से अपितु ट्रैकिंग और रोमांच के शौकीनों के लिए हमेशा से पहली पसंद रही है. हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी के गरतांग गली की, प्राचीन समय में भारत और तिब्बत व्यापार के साक्षी रहे गरतांग गली इंजीनियरिंग के लिए एक मिसाल है और आज के तकनीकी इंजीनियरिंग को भी चैलेंज करती है. बेहद संकरा और जोखिम भरे रास्ते वाली यह गरतांग गली आज पर्यटकों के लिए रोमांचक ट्रैकिंग का बेहतरीन डेस्टिनेशन बना हुआ है.
आज की इंजीनियरिंग को चुनौती देती गरतांग गली
गरतांग गली उत्तरकाशी मुख्यालय से करीब 85 किलोमीटर दूर स्थित गरतांग गली का निर्माण 17 वी शताब्दी में पेशावर से आए पठानों के द्वारा करवाया गया था. गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टानों वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़ कर उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया गया था. कारीगरी के एक अनूठे नमूने के तौर पर मौजूद यह थी.गरतांग गली भारत तिब्बत व्यापार के लिए प्रयोग की जाति थी.गरतांग गली के ठीक नीचे जाड गंगा नदी बहती है. गीतांजलि से भारत और तिब्बत के बीच व्यापार किया जाता था. भोटिया जनजाति के लोग अपने सामान को दूसरे देशों के साथ वस्तु विनिमय करते थे.
60 साल बाद खुली थी गरतांग गली
समुद्र तल से करीब 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गतांग अली को लेकर कहा जाता है कि जाट समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से इसका निर्माण कराया था. करीब 2 किलोमीटर लंबी गरतांग गली भारत तिब्बत व्यापार के लिए प्रयोग में लाई जाती थी थी.गरतांग गली पुराने व्यापारिक मार्ग हुआ करता था. यहां से गुड, मसाले आदि भेजे जाते थे. इस मार्ग का उपयोग सेना भी सीमा की निगरानी के लिए किया करती थी.गरतांग गली को 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बंद कर दिया गया.