उबैदउल्लाह नासिर
पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के पंचायत राज चुनाव के नतीजों से एक बात तो निश्चित रूप से साबित हो गयी है कि कथित मोदी मैजिक अब तेज़ी से ढलान पर है I आगाज़ उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायतराज चुनाव के नतीजों से करते है I कोरोना महामारी के इस माहौल में जब इन चुनावों को जनता की जान और सरकारी संसाधनो को बचा के पूरी ताक़त महामारी से लड़ने में लगाईं जानी चाहिए थी योगी सरकार ने चुनाव कराने का फैसला किया I यह अत्यंत अमानवीय कृत्य था जिस्में चुनावी अभियान में शामिल नेताओं, कार्यकर्ताओं,वोटरों और चुनाव कराने वाले सरकारी अमले की जान की बिल्कुल परवाह नहीं की गयी. केवल अधिक से अधिक सदस्यों को जिताने को ही लक्ष्य रखा गया I नतीजा हमारे सामने है, चुनावी ड्यूटी पर गए सैकड़ों अध्यापकों की मौत का दावा शिक्षक संघ ने किया है, ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बुरी तरह फैल गया है जिनके आंकड़े भी सरकार के पास उपलब्ध नहीं है दवा ऑक्सीजन आदि की तो बात ही छोड़ दीजिये I
चूँकि यह चुनाव असम्बली चुनाव से महज़ कुछ महीनों पहले हुए है अतः इनके नतीजों आने वाले विधान सभा चुनाव के आईने के तौर पर देखा जा रहा है और पार्टियों ने इसी बात को सामने रख कर चुनाव लड़ा था विशेषकर बीजेपी जो ग्राम सभा से लेकर लोक सभा तक का चुनाव एक जैसी गंभीरता और ताक़त से लड़ती है उसने इन चुनावों में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी I यद्यपि कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी चुनाव अभियान में नहीं उतरे परन्तु सभी सांसदों विधायकों और मंत्रियों ने पूरी ताक़त से चुनाव अभियान में शिरकत की थी I लेकिन जो नतीजे सामने आये हैं उस से बीजेपी नेताओं के माथे पर शिकन साफ देखी जा सकती है. बिना कोई ख़ास चुनावी अभियान चलाये या योगी सरकार के खिलाफ ज़मीन पर उतर कर कोई लड़ाई लड़े समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को मात दे दी है जबकि मायावती की बहुजन समाज पार्टी तीसरे नम्बर पर रही I
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने लगभग तीन सौ सदस्यों की जीत का दावा किया है जबकि आम आदमी पार्टी ने जो पहली बार इन चुनावों में उतरी है उसने भी अच्छे परफॉरमेंस का दावा किया है I यहाँ एक बात ध्यान रखने वाली है कि यह चुनाव पार्टी की बुनियाद पर नहीं होते न ही पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़े जाते हैं, कांग्रेस के अलावा किसी पार्टी ने शायद अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी नहीं जारी की थी ऐसे में हर पार्टी किसी भी सदस्य को अपना बता सकती है किस के पास इतना समय ही कि वह इसे क्रॉस चेक करे I
परन्तु एक बात तो पक्की है कि इन चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पडा है और इस हार के पीछे दो मुख्य कारण बताये जाते है पहला है कोरोना महामारी के इस दूसरे दौर में उतर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं का एक दम से ध्वस्त हो जाना और दूसरा किसानों के एजिटेशन के प्रति मोदी योगी सरकार का अमानवीय अहंकारी और हठधर्मी भरा रवय्या I एक तरफ गाँवों तक फैल चुकी कोरोना की महामारी है दूसरी तरफ ध्वस्त स्वास्थ्य सेवायें हैं तीसरी तरफ किसानों की समस्याएँ जस की तस हैं.
किसान बर्बाद हुए 1880 /- प्रति क्विंटल धान की सरकारी खरीद कीमत निश्चित की गयी थी मगर किसान 900 -1000 प्रति क्विंटल बेचने पर मजबूर होगया था वैसे ही अब गेहुं के साथ हो रहा है 1975 /- प्रति क्विंटल सरकारी खरीद मूल्य है मगर 1500 /- प्रति क्विंटल पर बेचने को किसान मजबूर है क्योंकि सरकारी खरीद की व्यवस्था अभी भी ठीक से नहीं हो पायीं है जबकि फसल कटे दो महीना होने को है. उधर उत्तर प्रदेश का ऐसा कोई परिवार नहीं बचा है जहां से दो चार जनाज़े न निकले हों जिस बेचारगी से उत्तर प्रदेश के कोरोना पीड़ितों ने तड़प तड़प के जान दी है और जिस प्रकार कोरोना पीड़ितों के रिश्तेदारों ने बिलबिला बिलबिला के ऑक्सीजन दवा अस्पताल में बेड के लिए दर दर की ठोकरें खाई है यही नही शवों के अंतिम संस्कार में जिस तरह उनको परेशान होना पडा है जिस तरह नर्सिंग होमों और अस्पतालों की लूट को झेला है और जिस प्रकार योगी सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ बनी रही जिस प्रकार योगी जी ने खुद ऑक्सीजन और दवा के अभाव की बात करने वालों की सम्पति जब्त करने और उन्हें जेल भेजने की धमकी दी और संवेदनहीनता का सुबूत दिया और फिर जिस प्रकार इलाहबाद हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन और दवा आदि के आभाव से हुई मौतों को नरसंहार बताया है उस्की सियासी कीमत तो मोदी योगी और बीजेपी को अदा ही करनी पड़ती I इससे पहले किसानों के आन्दोलन ने विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश जो बीजेपी का मज़बूत किला बन गया था वहाँ से उसकी लोकप्रियता को ग्रहण लगा दिया 500 से अधिक आन्दोलनरत किसान बेमौत मर गए लेकिन मोदी जी के कान पर जूं नहीं रेंगी तो फिर किसानों ने भी अपनी ताक़त दिखा दी चुनाव वाले राज्यों में उन्होंने बीजेपी के खिलाफ अभियान चलाया और उत्तर प्रदेश में बीजेपी का पांसा पलट दिया I
मगर असली खेल होगा जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के अध्यक्षों के चुनाव में जिसमें धनबल और सत्ता का बल निर्णायक भूमिका अदा करती है और इन दोनों में बीजेपी का कोई दल मुकाबला नहीं कर सकता उसके पास पुलिस और प्रशासन का बल भी है और अकूत दौलत भी वैसे भी आम हालात में एक एक जिला पंचायत सदस्य 20-25 लाख और क्षेत्र पंचायत सदस्य को अपने वोट के 10-15 लाख कीमत मिल जाती थी इस बार तो उनके वारे न्यारे हो जायेंगे और हो सकता है यह कीमत एक करोड़ तक पहुँच जाए क्योंकि योगी जी किसी भी कीमत पर खुद को हारा हुआ नहीं दिखा सकते,यह उनकी फितरत के खिलाफ है I योगी जी धन बल और सत्ता की हनक से भले ही अधिक से अधिक चेयरमैन चुनवा लें लेकिन कुछ महीनों बाद होने वाले विधान सभा चुनावों में बीजेपी की नाव पार होना मुश्किल है बंगाल के चुनाव का नतीजा हमारे सामने है कोई ऐसा हथकंडा ऐसा नहीं था जो मोदी जी अमित शाह और खुद योगी जी ने न अपनाया हो और इलेक्शन कमिशन ने उनके इशारे पर हर क़दम न उठाया हो लेकिन जब जनता ने हराने का मन बना लिया तो सारी कोशिशें सारे हथकंडे धरे के धरे रह गए, राम नाम सत्य के आगे जय श्री राम का नारा दब गया है
नोटबंदी और जी एस टी जैसे आर्थिक विनाशकारी वाले निर्णय रहे हो या चार घंटे की नोटिस पर देश में लॉक डाउन लगाने का मूर्खतापूर्ण और क्रूर फैसला मोदी जी अब तक अपने हर दांव से सियासी फायदा उठाते रहे है क्योंकि उनके पास धार्मिक उन्माद और उग्र राष्ट्रवाद के दो अत्यंत प्रभावशाली अस्त्र हैं जिनका वह बखूबी प्रयोगं करना भी जानते हैं लेकिन इस बार उनका सामना घर घर से निकलने वाली शव यात्राओं और गाँव गाँव में त्राहि त्राहि कर रहे किसानों से है लेकिन यह भी सच है कि मोदी जी की तरकश में बहुत से तीर हैं वह किसे रामबाण बना लेंगे कुछ नहीं कहा जा सकता