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कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

आर्टिकल/इंटरव्यूकुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

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अमित बिश्नोई
खबर आयी कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का मसला हल हो गया है, फडणवीस का प्रमोशन होगा और वो एकबार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। खबर ये भी आयी है महायुति में सबकुछ ठीक चल रहा है. पांच दिसंबर को नई सरकार शपथ ले लेगी, उससे पहले आज कल में भाजपा विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री के नाम का एलान हो जायेगा लेकिन ये सारी बातें भविष्यकाल की हैं, वर्तमान में कोई बात नहीं हो रही है, एकतरफ भाजपा के सीनियर नेता कह रहे हैं कि फडणवीस मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे हैं उनका CM बनना तय है, तो फिर एलान करने में क्या बुराई है, कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है। जब मुख्यमंत्री का नाम तय हो चूका है तो फिर ढोल नगाड़े के साथ एलान होना चाहिए। ये पर्दादारी तब और भी गहरी हो जाती है जब कार्यवाहक मुख्यमंत्री अचानक अपने गाँव जाकर बीमार पड़ जाते हैं, राजनीतिक गलियारों में अटकलों का दौर शुरू हो जाता है. शिंदे की बीमारी को आम बीमारी नहीं बल्कि ख़ास बीमारी बताया जाने लगता है, वो बीमारी जो राजनीति की तरह पल पल रंग बदलती रहती है. इस सारे परिदृश्य में शिंदे का एक बयान आता है कि महाराष्ट्र के लोग उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. शिंदे के इस बयान से ये पता तो चल ही जाता है कि भाजपा क्यों मुख्यमंत्री के नाम का एलान नहीं कर रही है , जैसा मैंने पहले कहा कि कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.

राजनीति में समय का बड़ा महत्व होता है, कौन सी बात किस समय कही गयी, ये आगे की कहानी का संकेत देता है. एकनाथ शिंदे जिन्होंने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके ये कहा कि वो मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं हैं और भाजपा जिसे भी मुख्यमंत्री बनाएगी वो और उनकी पार्टी उनका समर्थन करेगी। इसके बाद शिंदे बीमार हो जाते हैं, इसी बीच शिंदे खेमे से एक बयान सामने आता है कि चुनाव से पहले भाजपा ने ये वादा किया था कि नतीजों में चाहे कोई भी सहयोगी पार्टी कितनी भी सीटें जीतकर आये लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही रहेंगे। हो सकता है कि भाजपा आलाकमान ने ये वादा शिंदे से किया हो क्योंकि उस समय उन्हें भी ये अंदाजा न होगा कि चुनाव में भाजपा को इतनी शानदार कामयाबी मिलेगी। इसके बाद शिंदे की बीमारी का बुलेटिन जारी होना शुरू होता है , शिंदे पहले से स्वस्थ हैं और वो मुंबई में महायुति की बैठक में शामिल होने आ रहे हैं, अगले हेल्थ बुलेटिन में उनकी तबियत ज़्यादा खराब बताई जाती है और मुंबई में उनके सारे कार्यक्रम रद्द हो जाते हैं और फिर सोमवार को वो ब्लास्ट करने वाला एक बयान देते हैं कि राज्य के लोग उनके “आम आदमी” होने के कारण उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. शिंदे के इस बयान से तो यही लगता है महायुति के अंदर बहुत कोलाहल है और यही वजह कि मुख्यमंत्री कौन वाले सवाल का जवाब सामने नहीं आ पा रहा है. यहाँ एक बात पर ध्यान देने की ज़रुरत है कि शिंदे ने मुख्यमंत्री के मुद्दे पर घुटने ज़रूर टेके लेकिन उन्होंने फडणवीस का नाम कभी नहीं लिया और यही बात भाजपा की तरफ से भी आ रही है, कोई भी आधिकारिक रूप से फडणवीस का नाम नहीं ले रहा है.

एक स्टोरी ये चल रही है कि शिंदे ये सबकुछ जानबूझकर कर रहे हैं, वो एकतरह से भाजपा को ब्लैकमेल कर रहे हैं. मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर किये जाने के बाद एकनाथ शिंदे अब सरकार में शिवसेना का मज़बूत आधार चाहते हैं और ये मज़बूत तब मिलेगा जब शिवसेना को गृह मंत्रालय मिलेगा। शिंदे जानते हैं कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में गृह मंत्रालय कितना महत्वपूर्ण है, गृह मंत्रालय पर कब्ज़ा करके शिंदे भाजपा को खुली छूट देने से रोकना चाहते हैं. गृह मंत्रालय के साथ शिंदे कुछ और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो भी चाहते है और कम से कम ये ज़रूर दिखाना चाहते हैं कि महायुति में शिवसेना भले ही नंबर एक पर नहीं है लेकिन नंबर दो पर ज़रूर है. शिंदे ने आज अपने बयान में कहा कि वो आम लोगों के मुख्यमंत्री थे, वह हमेशा कहा करते थे कि वह सिर्फ मुख्यमंत्री नहीं बल्कि आम आदमी हैं। वह एक आम आदमी के रूप में लोगों की समस्याओं और दर्द को समझते थे और उन्हें दूर करने की कोशिश करते थे। चूंकि उन्होंने एक आम आदमी के रूप में काम किया है इसलिए जाहिर है कि लोगों को लगता है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना चाहिए।

शिंदे के इस रंग बदलते बर्ताव के बारे में भाजपा को पहले से अंदाजा था और इसलिए भाजपा ने अभी तक महाराष्ट्र सरकार के गठन और मुख्यमंत्री के नाम के एलान कुछ भी औपचारिक तौर पर नहीं कहा, खासकर से पार्टी लेवल से फडणवीस का मुख्यमंत्री पद के लिए नाम भी नहीं लिया गया, यही वजह है कि लोग अनुमान लगा रहे हैं कि भाजपा कुछ सरप्राइज़ प्लान कर रही है, हो सकता है वो राजस्थान और मध्य प्रदेश की तरह कोई ऐसा चेहरा सामने पेश करे जिससे सब हैरत में पड़ जांय। वैसे कहा जाता है कि भाजपा जब भी मुख्यमंत्री के नाम पर देरी करती है, सरप्राइज़ करती है लेकिन फिलहाल तो सरप्राइज़ एकनाथ शिंदे की तरफ से आ रहे हैं. पल में तोला पल में माशा, यानि गिरगिट की तरह रंग बदलने की बात. एक तरफ वो मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला मोदी और शाह पर छोड़ते हैं और फिर कहते हैं कि महाराष्ट्र के लोग उन्हें देखना चाहते हैं. लुका छिपी का खेल दोनों तरफ से खेला जा रहा है, इस खेल का अंत पता नहीं कब होगा लेकिन कुछ तो है जिसकी पर्दादारी की जा रही है.

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